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जनाक्रोश से जनाधार की चाह

कांग्रेस की कमान पूरी तरह अपने हाथ में लेने के बाद पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने जिस तरह दिल्ली में पहले महाधिवेशन किया और फिर जनाक्रोश रैली की, उसे देखकर लगा कि देश की इस सबसे पुरानी पार्टी में नेतृत्व के साथ-साथ संस्कृति में भी बदलाव हो रहा है। रविवार को दिल्ली की गर्मी में रामलीला मैदान कांग्रेस कार्यकर्ताओं की भारी भीड़ जुटी। अब तक इस तरह के आयोजनों में आसपास के राज्यों से पार्टी पदाधिकारी और कार्यकर्ता आ जाते थे। लेकिन इस बार दूर-दराज के प्रदेशों से भी कार्यकर्ता और समर्थक जुटे। दरअसल महाधिवेशन में राहुल गांधी ने मंच खाली रखकर स्पष्ट संकेत दिए थे कि इसे भरने के लिए साधारण कार्यकर्ताओं में से कोई भी आ सकता है। अब जनाक्रोश रैली में कार्यकर्ताओं को उनकी अहमियत और ताकत का एहसास कुछ और विस्तार से कराया गया है। राहुल गांधी का बीच-बीच में अचानक देश के बाहर चले जाना या छुट्टी लेना प्रेक्षकों को हैरान कर देता है। उनके विरोधी तो इस बात पर उनका खूब मजाक भी उड़ाते हैं।कर्नाटक चुनाव के बाद भी वे कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जाना चाहते हैं। लेकिन इसके लिए उन्होंने बाकायदा जनाक्रोश रैली में कार्यकर्ताओं से अनुमति मांगी और इसके पीछे कारण भी बताया। दरअसल राहुल गांधी 26 अप्रैल को जिस चार्टर विमान से कर्नाटक जा रहे थे, उसमें अचानक तकनीकी खामी आ गई और विमान एक तरह झुककर लगभग 8 हजार फीट नीचे की ओर गिरने लगा। विमान की किसी तरह इमरजेंसी लैंडिंग कराई गई। इस घटना का जिक्र करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि मुझे लगा कि मेरी गाड़ी निकल गई और तभी मन में ख्याल आया कि कैलाश मानसरोवर जाना है। अब तक अपनी निजी बातों को कांग्रेस हाईकमान इस तरह से कार्यकर्ताओं के साथ साझा नहीं करता था, लेकिन अब बदलाव हो रहा है। आम कार्यकर्ताओं से राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस आपकी पार्टी है। आपके खून-पसीने की पार्टी है। आप चाहे युवा हों, या बुजुर्ग हों, आप सबका इस पार्टी में आदर होगा। अगर नहीं होगा तो मैं अध्यक्ष होने के नाते उस पर कार्रवाई करूंगा। उनका यह कथन कार्यकर्ताओं में जोश भरने वाला है। जनाक्रोश रैली की दूसरी बड़ी सफलता यह रही कि इसमें दिल्ली प्रदेश कांग्रेस का दम देखने मिला। 15 साल की सत्ता के बाद दिल्ली से कांग्रेस लगभग गायब हो चुकी है। आपसी कलह के कारण भी यहां काफी नुकसान हुआ। लेकिन बीते दिनों अजय माकन और शीला दीक्षित में सुलह देखने मिली, अमरिंदर सिंह लवली भी वापस आ गए हैं। इस सबका फायदा रैली की सफलता के रूप में देखने मिला, क्योंकि इसके आयोजन की जिम्मेदारी अजय माकन पर थी। जनाक्रोश रैली की तीसरी सफलता पार्टी के अंदरूनी लोकतंत्र की मजबूती का संकेत देने को माना जा सकता है। बीते दिनों सीजेआई दीपक मिश्रा पर महाभियोग नोटिस को लेकर सलमान खुर्शीद ने पार्टी लाइन से अलग विचार व्यक्त किए थे और बाबरी मस्जिद पर भी खून से हाथ रंगे होने की बात कही थी। जिस पर रैली में राहुल गांधी ने कहा कि हमारी पार्टी में अलग-अलग राय होती है। सलमान खुर्शीद जी ने कुछ दिनों पहले अलग राय दी थी लेकिन अलग राय देने की वजह से मैं उनकी रक्षा करूंगा। साथ ही उन्होंने कहा कि बीजेपी अध्यक्ष और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसा नहीं कर सकते हैं क्योंकि उनकी पार्टी में एक ही आदमी की चलती है। इस एक वाक्य से उन्होंने भाजपा में बढ़ती तानाशाही प्रवृत्ति के बरक्स कांग्रेस के बढ़ते लोकतांत्रिक चरित्र को प्रस्तुत कर दिया। रैली में राहुल गांधी, सोनिया गांधी और डा.मनमोहन सिंह ने मोदी सरकार की नीतियों, योजनाओं, वादों और जुमलों की खूब बखिया उधेड़ी। सरकार की निंदा में वही सारी बातें थीं, जो पहले भी संसद समेत अलग-अलग मंचों से की जा चुकी हैं। इनमें नयापन केवल यही था कि इस बार इसे 2019 की चुनावी रणनीति के तहत प्रस्तुत किया गया। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने जनाक्रोश रैली का मजाक उड़ाते हुए इसे परिवार आक्रोश रैली बताया। वे कांग्रेस मुक्त भारत के ख्वाब देखते हैं, तो उनकी झल्लाहट स्वाभाविक है। लेकिन राजनैतिक विश्लेषक इसे अगले आम चुनाव का बिगुल फूंकना मान रहे हैं। राहुल गांधी ने कर्नाटक के साथ-साथ आम चुनावों में जीत का दावा कार्यकर्ताओं के सामने करके उनमें उत्साह जगाने की कोशिश की है। अब यह वक्त बताएगा कि जनाक्रोश से कितना जनाधार कांग्रेस पार्टी को मिलता है।

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