सोशल मीडिया जनसंचार का एक बेहद सशक्त माध्यम है इसके द्वारा लोगों के मध्य एक पारस्परिक अंतरजाल का निर्माण होता है, और इससे जुड़े लोग आपस में एक आभासी समूह निर्मित करते हैं। सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफार्म है जहां लोगों को अपनी बात रखने के लिए किसी दूसरे का सहारा नहीं लेना पड़ता। इंटरनेट से जुडा हुआ प्रत्येक व्यक्ति उसके विचारों से प्रभावित होता है। अत्याधुनिक डिजिटलीकृत समाज में प्रत्येक व्यक्ति अपनी एक अलग पहचान बनाने की जद्दोजहद में जुटा है। फेसबुक, व्हाट्सएप, टि्वटर, यूट्यूब, टिक टॉक आदि जगहों पर अपनी प्रत्येक गतिविधि को वह साझा करता है। अमूमन किसी व्यक्ति के लोकप्रिय होने का पता इस युक्ति द्वारा लगाया जाता है कि उसके द्वारा साझा किए गए पोस्ट पर कितने लाइक्स और कमेंट्स आए हैं। कई बार कम लाइक आने पर व्यक्ति अपने आप में वंचना एवं अभाव हीनता की मनोस्थिति को महसूस करता है। अमेरिकी प्रोफेसर ऑफिर तुरिल अपने एक शोध में पाया कि फेसबुक की लत मानव मस्तिष्क के उस भाग को सक्रिय करता है जो प्रायः कोकीन के सेवन से होता है। और सोशल मीडिया प्रयोग करने वाले में अधिकांश लोग इसके एडिक्शन से जूझ रहें हैं। सोशल मीडिया की लत को छुड़ाने हेतु विश्व के अनेक क्षेत्रों में ऐसे क्लीनिक खोले गए हैं भारत में `उदय फाउंडेशन’ नामक एनजीओ इस दिशा में अपना सक्रिय योगदान दे रहा है। अगर इसके सकारात्मक पक्ष को देखा जाए तो सोशल मीडिया एक ऐसा मंच है जहां व्यक्ति रातो रात शोहरत के शिखर पर पहुंच जाता है इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हाल ही में एक सड़क छाप गायिका रानू मंडल हैं जिनका एक वीडियो वायरल हुआ, और जिससे रातों-रात वह प्रसिद्ध हो गई और बॉलीवुड गानों में उन्हें गाने का मौका भी मिला। वहीं कई बार ऐसा भी देखा गया है कि व्यक्ति प्रसिद्ध होने के लिए किसी व्यक्ति विशेष, संप्रदाय विशेष या धर्म विशेष के खिलाफ अभद्र टिप्पणी करता है और जिससे वह न्यूज़ सेंसेशन बन जाता है। इस प्रकार सोशल मीडिया अपराध एवं वैमनस्यता को प्रसारित करने का मंच भी है। अतः यदि सोशल मीडिया का सकारात्मक रूप से सदुपयोग किया जाए तो यह समाज और व्यक्ति दोनों के लिए लाभकारी सिद्ध होगा, और व्यक्ति को एक अलग पहचान बनाने का अवसर प्रदान करेगा।
अजय कुमार शुक्ला शोधार्थी- लखनऊ विश्वविद्यालय