डॉ. हनुमंत यादव
भारत में नोटबंदी के 6 माह बाद पुनरू व्यक्तिगत व व्यवसायिक लेनदेन नकदी के माध्यम से होने लगे हैं। आज भी लोग डिजिटल व ऑन लाइन भुगतान की बजाय एटीएम से नकदी प्राप्त करके नकदी में भुगतान करते हैं । यदि दो दिन भी बैंकों के एटीएम में नकदी नहीं रही तो जनता एवं मीडिया में त्राहि त्राहि मच जाती है। सरकार भले ही दावा करती रहे कि उसने बड़ी मात्रा में डिजिटल लेनदेन से नकदी लेन देन को प्रतिस्थापित कर दिया है। किंतु असलियत में देश भर के छोटे बड़े दुकानदारों को लाखों की संख्या में दी गई पोस मशीनें अब उनकी अलमारियों और टेबल की ड्रावरों में बंद हो गई हैं। विदेश मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव ए. गीतेश सार्मा ने विगत सप्ताह संयुक्त राष्ट्रसंघ की आर्थिक एवं सामाजिक परिषद के विकास की आगे की कार्यवाही हेतु अर्थप्रबंधन मंच के न्यूयार्क में आयेाजित एक कार्यक्रम में बताया कि भारत में नोटबंदी एवं जीएसटी से 18 लाख नए लोग आयकर के दायरे में आए हंै तथा 1 जुलाई 2017 से जीएसटी अर्थात माल एवं सेवाकर लागू करने से अप्रत्यक्ष कर दाताओं की संख्या में 50 प्रतिशत बढ़ेात्तरी हुई है। इस प्रकार सरकार द्वारा उठाए गए इन आर्थिक सुधारों से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर दोनों ही कर राजस्व में वृद्धि हुई है।
सरकार ने नोटबंदी द्वारा सफलतापूर्वक नकदी लेनदेन में कमी लाकर डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा दिया है। उन्होंने कहा कि भारत विश्व व्यापार के मूलभूत सिद्धांतों पर भारत कायम है तथा भारत विकास की आगे की कार्यवाही के अर्थप्रबंधन में भारत समुचित योगदान कर रहा है। यहां यह बताना जरूरी है कि संयुक्त रार्ष्टसंघ की आर्थिक एवं सामाजिक परिषद के विकास एफएफडी फोरम की तीसरी बैठक का आयोजन इसके न्यूयार्क स्थित मुख्यालय में 23 से 26 अप्रेल 2018 तक किया गया था। भारत सरकार के वित मंत्रालय के अनुसार वित्त वर्ष 2015-16 में आयकर रिटर्न भरने वालों की संख्या 4.07 करोड़ थी, जिसमें से केवल 2.06 करोड़ व्यक्तियों ने आयकर भरा था, शेष 2.01 करोड़ व्यक्ति आयकर छूट की सीमा में रहने के कारण आयकर से मुक्त रहे । 2016-17 में आयकर रिटर्न भरने वालों की संख्या बढ़कर 4.20 करोड़ हो गई, उनमें से 2.82 करोड़ आयकर सीमा में आने के कारण आयकर दाता बने। इस प्रकार 76 लाख व्यक्ति नए आयकर दाता बने। आयकर दाताओं की संख्या में वृद्धि का एक कारण नोटबंदी भी बताया जाता है। वित वर्ष 2017-18 के दौरान आयकर रिटर्न दाखिल करने वालों की संख्या 6.84 करोड़ तक पहुच गयी है । आयकर रिटर्न भरने वालों की संख्या में वृद्धि का एक कारण लाखों व्यवसायियों का जीएसटी रिटर्न भरने के कारण आयकर की परिधि में आ जाना था। इस प्रकार 2017-18 में आयकर दाताओं की संख्या में वृद्धि का कारण नोटबंदी के साथ-साथ जीएसटी भी रहा । आयकर दाताओं की संख्या में जो वृद्धि हुई है, उसमें व्यक्तिगत आयकर दाता एवं कार्पोरेट करदाता दोनो शामिल हैं। 27 अप्रेल 2018 को वित्तमंत्रालय द्वारा जारी सूचना के अनुसार 1 जुलाई 2017 से 31 मार्च 2018 की 9 माह की अवधि में कुल जीएसटी प्राप्ति 7.41 करोड़ रुपए रही है। इसमें केंद्रीय जीएसटी प्राप्ति 1.19 लाख करोड़ रुपए, राज्य जीएसटी प्राप्ति 1.72 करोड़ रुपए, एकीकृत जीएसटी 3.66 लाख करोड़ रुपए और उपकरों से हासिल 62,021 करोड़ रुपए शामिल हैं। एकीकृत जीएसटी में आयात शुल्क के 1.73 करोड़ रुपए तथा उपकरों से प्राप्ति में आयात पर सेस के 5702 करोड़ रुपए शामिल हैं । 2017-18 के 8 महीनों में केन्द्र सरकार द्वारा राज्यों को क्षतिपूर्ति के रूप में कुल 41,147 करोड़ रुपए दिए गए हैं, यह इसलिए कि माल एवं सेवा कर कानून के तहत इस नई कर व्यवस्था के कारण राज्यों के राजस्व में होने वाली राजस्व में कमी की क्षतिपूर्ति केन्द्र सरकार करेगी । राजस्व हानि की गणना के लिए 2015-16 की कर आय को आधार बनाते हुए उसमें सालाना 14 प्रतिशत वृद्धि को सामान्य संग्रह माना गया है।संयुक्त राष्ट्रर्संघ की आर्थिक एवं सामाजिक परिषद के विकास अर्थप्रबंधन मंच पर भारत द्वारा यह बताये जाने से कि नोटबंदी एवं जीएसटी की वजह से भारत में 18 लाख नए लोग आयकर के दायरे में आए हंै, अन्य देशों के प्रतिनिधियों को शायद यह लगा होगा कि आयकर दाताओं में 18 लाख की बढ़ेात्तरी सचमुच बहुत बड़ी उपलब्धि है। किन्तु आयकर दाताओं की वर्षवार संख्या देखे तो यह सामान्य वृद्धि है। वित्त विभाग द्वारा जारी आंकड़ो के अनुसार 2017-18 में आयकर दाताओं की संख्या में 1 करोड़ की बढ़ेात्तरी हुई है, उसमें से नोटबंदी एवं जी.एस.टी. के कारण 18 लाख नए आयकरदाता शामिल हुए हैं । इस प्रकार 1 करोड़ नए आयकरदाताओं में सरकार के इन दो बहुप्रचारित आर्थिक सुधारों से आयकर दाताओं की संख्या में मात्र 18 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। मोदी सरकार द्वारा जीएसटी के साथ नोटबंदी को भी आर्थिक सुधार के रूप में अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर प्रचारित करना भी भ्रामक है । एक चलती हुई प्रक्रिया को उन्नत बनाना सुधार कहलाता है, किंतु नोटबंदी ने तो चलती हुई आर्थिक गतिविधियों को ठप्प कर दिया था। मुझे तो नोटबंदी में उत्पादन उन्नत करने वाला सुधार दूर दूर तक नजर नहीं आया ।
नोटबंदी से आयकर दाताओं की संख्या में वृद्धि हुई है इसमें दो राय नहीं है । किंतु यह भी एक खुला तथ्य है कि सरकार नोटबंदी करके काला धन निकालने, जाली नोटों पर रोक तथा आंतकवादियों के धन पूर्ति पर नियंत्रण में असफल रही है। भारत में नोटबंदी के 6 माह बाद पुनरू व्यक्तिगत व व्यवसायिक लेनदेन नकदी के माध्यम से होने लगे हैं। आज भी लोग डिजिटल व ऑन लाइन भुगतान की बजाय एटीएम से नकदी प्राप्त करके नकदी में भुगतान करते हैं । यदि दो दिन भी बैंकों के एटीएम में नकदी नहीं रही तो जनता एवं मीडिया में त्राहि त्राहि मच जाती है। सरकार भले ही दावा करती रहे कि उसने बड़ी मात्रा में डिजिटल लेनदेन से नकदी लेन देन को प्रतिस्थापित कर दिया है। किंतु असलियत में देश भर के छोटे बड़े दुकानदारों को लाखों की संख्या में दी गई पोस मशीनें अब उनकी अलमारियों और टेबल की ड्रावरों में बंद हो गई हैं। डिजिटल सौदों को चलन में लाने व बढ़ावा देने के लिए दुनिया में नोटबंदी करने वाला भारत एक मात्र देश है, अन्य किसी भी देश ने नोटबंदी का सहारा नहीं लिया। सरकार द्वारा जिस नोटबंदी को आर्थिक सुधार निरूपित करके प्रचारित किया जा रहा है, उसकी लागत एवं लाभ पर एक नजर डालना भी जरूरी है। आर्थिक सुधारों से सीधे सीधे जीडीपी वृद्धि दर में सुधार होता है । नोटबंदी से भारत की सालाना जीडीपी वृद्धि दर 7.5 से गिरकर 5.9 बाजार तक गिर गई तथा 2017-18 में भी सुधरकर 7.3 प्रतिशत तक वापस आ पाई है।
मुद्रा की मांग के अनुसार रिजर्व बैंक द्वारा मुद्रा अर्थात नोटों की पूर्ति एक सामान्य प्रक्रिया है। किंतु मोदी सरकार द्वारा रिजर्व बैंक पर थेापी गई नोटबंदी ने रिजर्व बैंक के लिए मुद्रा पूर्ति का आपातकाल ला दिया। द्रुत गति से मुद्रा पूर्ति हेतु रिजर्व बैंक को नोटों की छपाई और नोटबंदी से संबंधित अन्य व्यवस्थाओं पर कुल 30 हजार करोड़ रुपए का भारी भरकम खर्च वहन करना पड़ा । लाखों लघु उद्यम नकदी के अभाव में 6 महीने तक बन्द पड़े रहे जिससे इनमें कार्यरत करोड़ों कामगार बेरोजगार हो गए। आम लोगों को बैंकों में जमा खुद का पैसा लेने के लिए हर दिन घंटों लाइन में खड़ा होकर परेशान होना पड़ा जिसका मौद्रिक मुल्यांकन संभव नहीं है। आश्चर्य की बात है कि सरकार हर मंच पर नोटबंदी को आर्थिक सुधार की संज्ञा देते हुए अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर श्रेय लेकर खुशफहम हो रही है।