लखनऊ। गंगा-जमुनी तहजीब वाले रामपुर के दो पहलू संस्कृति और सियासत हैं। एक ओर नवाबी खानदान इस शहर को अब भी रियासती रवायत से जोड़ता है तो दूसरी ओर सपा नेता आजम खां ने 10 बार रामपुर विधानसभा सीट जीत कर ऐसी बड़ी सियासी लकीर खींची है जो किसी दूसरे नेता के लिए बड़ी चुनौती है।सपा की प्रतिष्ठा दांव पर है क्योंकि आजम जेल में हैं, उनके अनुयायी कोई करिश्मा दिखा पाते हैं या नही,इस पर सबकी नजरें होंगी।लोकसभा चुनाव के पहले चरण की नामांकन प्रक्रिया पूरी होने के साथ यह सीट चर्चा में है। भाजपा पूरे एनडीए कुनबे के साथ चुनावी मैदान में पूरा जोर लगा रही है तो यूपी में मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी में घमासान छिड़ा हुआ है।आजम खां ने सपा मुखिया अखिलेश यादव को चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन वह नहीं माने,उल्टा आजम के करीबी के बजाय मौलाना मोहिबुल्ला नदवी को प्रत्याशी बना दिया। सपा की स्थानीय इकाई ने पहले तो चुनाव का बहिष्कार किया लेकिन फिर आजम के करीबी आसिम राजा ने सपा से नामांकन कर दिया। नामांकन पत्रों की जांच में उनका पर्चा खारिज हो गया। पार्टी रणनीति बनाने के बजाए खेमेबाजी से निपटने में जुटी है। आजम के गढ़ में सपा को भाजपा से अपनी छीनी सीट की वापसी चुनौती है।रामपुर की असल पहचान चाकू उद्योग और विश्व प्रसिद्ध रजा लाइब्रेरी से है।प्रदेश से लेकर केंद्र तक की सियासत में रामपुर का अहम योगदान रहता है। रामपुर ने देश को पहला शिक्षा मंत्री दिया।1951 से लेकर अब तक के लोस चुनाव परिणामों को देखें तो रामपुर में 17 चुनाव और उप चुनाव हुये है।18 चुनावों में10 बार कांग्रेस, एक बार बीएसडी यानि भारतीय लोकदल, चार बार भाजपा और तीन बार सपा जीती है। आम चुनावों में सपा और भाजपा का 3-3 की बराबरी पर है।पहली लोकसभा में अबुल कलाम आजाद सरीखा शिक्षामंत्री देने वाले रामपुर ने 1998 में भाजपा के अल्पसंख्यक चेहरे मुख्तार अब्बास नकवी और 2004 और 2009 में फिल्मों से सियासत के मैदान में उतरीं जयाप्रदा को संसद में भेजा। 2024 का लोकसभा चुनाव रामपुर की तकदीर लिखने वाला है, क्योंकि आजम खान जेल में हैं। उनके अनुयायी रामपुर समाजवादी पार्टी का परचम लहरा पाते हैं या एनडीए का पलड़ा भारी रहेगा,देखना है।