जीवन का सामान्य कार्य भी बिना कर्म नहीं चलता। कर्म ऊर्जा मांगते हैं। प्रत्यक्ष रूप में सभी कर्मों में शारीरिक ऊर्जा लगती है। लेकिन कर्म करने के पूर्व किसी कर्म का निश्चय करने में मनो संकल्प की आवश्यकता होती है। दृढ़ निश्चय के कारण ही कर्म में पूरा मन लगता है। फिर कर्म कुशलता की जरूरत होती हैं। गीता में कर्म की कुशलता को योग बताया गया है। एक निश्चित निश्चयात्मक केंद्र पर पूरी जीवन ऊर्जा को लगा योग है। पूजा आराधना में भी आधी अधूरी ऊर्जा से काम नहीं बनता यहां समूची ऊर्जा कत्तापनऔर निजात को समेट कर समर्पण की आवश्यकता होती है। देवता प्रकृति की शक्तियां हैं कुछ दृश्य हैं कुछ अदृश्य हैं अग्नि सूर्य जल आदि देवता प्रत्यक्ष है इंद्र वरुण अनुभूति वाले हैं इनको आराधना भी आंतरिक समृद्धि देती है लेकिन पूरे मन से की गई कर्म आराधना ही उपयोगी है।
पत्रकार सुरक्षा महासमिति प्रदेश उपाध्यक्ष गुड्डू मिश्रा