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सी.एस.आई.आर.-भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्‍थान , लखनऊ में हिंदी सप्‍ताह समारोह का उद्घाटन

लखनऊ । सीएसआईआर-भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान(सीएसआईआर-आईआईटीआर), लखनऊ में आज दिनांक 14 सितंबर को प्रातः 10:30 बजे एस.एच. जैदी सभागार में हिंदी सप्‍ताह के उद्घाटन समारोह का आयोजन किया गया। समारोह के मुख्‍य अतिथि श्री राम नाईक, माननीय राज्यपाल, उत्तर प्रदेश थे। सर्व प्रथम माननीय राज्यपाल महोदय ने दीप प्रज्ज्वलन कर समारोह का शुभारंभ किया । इसके उपरांत सीएसआईआर-आईआईटीआर द्वारा विषविज्ञान विषय पर एक पुस्तक, ““विषविज्ञान” अनुसंधान के नए आयाम”, संस्थान की छमाही राजभाषा पत्रिका ““विषविज्ञान संदेश” ” के अंक 29 का विमोचन किया तथा इसके साथ-साथ “खाद्य एवं उपभोक्ता सुरक्षा समाधान””“ वेबसाइट का प्रमोचन(लाँच) किया । इसके अतिरिक्त पेयजल, पॉलीथिन व प्लास्टिक तथा ओनीर पर विवरणिका का भी विमोचन किया गया । इस अवसर पर मुख्‍य अतिथि महोदय ने अपने संबोधन में कहा कि विषविज्ञान संदेश, विषविज्ञान” अनुसंधान के नए आयाम, इसके अतिरिक्त पेयजल, पॉलीथिन व प्लास्टिक तथा ओनीर, खाद्य एवं उपभोक्ता सुरक्षा समाधान (फूड एंड कंज़्यूमर सेफ़्टी सल्यूशन(फ़ोकस) पर जो विवरणिका (लघु पुस्तकें) आईआईटीआर द्वारा हिंदी में प्रकाशित की जा रही हैं यह अति प्रशंसनीय कार्य है । हिंदी में प्रकाशित यह सामग्री आम जनता के लिए लाभकारी है । इन विवरणिकाओं का अधिक से अधिक प्रकाशन किया जाना चाहिए जिससे जनता इसका लाभ उठा सके । सीएसआईआर – आईआईटीआर हिंदी भाषा में उल्लेखनीय कार्य कर रहा है । अन्य संस्थानों हेतु यह अनुकरणीय है । प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में हिंदी का उपयोग हुआ और आज़ादी मिलने तक उपयोग होता रहा । इसके उपरांत संविधान सभा में देश की राजभाषा कौन हो इस पर बहुत विचार हुआ, तदुपरांत हिंदी को 14 सितंबर, 1949 को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया । आज हिंदी भाषा केवल हिंदी भाषी क्षेत्र तक सीमित न होकर संपूर्ण भारत में फैल चुकी है । आंकड़ों के अनुसार आज लगभग 70 करोड़ लोग हिंदी भाषा प्रयोग कर रहे हैं । यह संख्या इससे अधिक भी हो सकती है । हिंदी साहित्य की भाषा है । मैं महाराष्ट्र का हूँ परंतु सरलता से हिंदी बोलता हूँ । हिंदी के सरल शब्दों का प्रयोग करना चाहिए जिससे सभी लोग समझ सकें । हम सभी को विचार करना चाहिए कि हिंदी का और विकास, प्रचार तथा प्रसार कैसे हो । विज्ञान और विधि के क्षेत्र में हिंदी भाषा संबंधी कार्य और होना चाहिए । सर्वोच्च और उच्च न्यायालय अपने निर्णय हिंदी में प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हैं ।
इस अवसर पर संस्थान के निदेशक, प्रोफेसर आलोक धावन ने अपने संबोधन में विमोचन की जाने वाली पुस्तकों एवं संस्थान के इनोवेशन संबंधी गतिविधियों के बारे में जानकारी प्रदान करते हुए कहा कि संस्थान के वैज्ञानिकों ने सरल हिंदी भाषा में एक पुस्तक, विषविज्ञान अनुसंधान के नए आयाम लिखा है। हमने विगत तीन वर्षों के अनुसंधान कार्यों को हिंदी पत्रिका के माध्‍यम से आम लोगों तक पहुँचाया है । आम जनता से संबंधित विषयों पर हिंदी में अनेक विवरणिकाएं प्रकाशित की हैं । पर्यावरण प्रदूषण विषय पर हिंदी माध्‍यम में राष्‍ट्रीय एवं अंतरराष्‍ट्रीय वैज्ञानिक संगोष्ठियों का सफल आयोजन किया जा चुका है । संस्‍थान का वार्षिक प्रतिवेदन विगत कई वर्षों से हिंदी में प्रकाशित किया जा रहा है। संस्‍थान के शोध कार्यों को हिंदी के समाचार पत्रों एवं इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया में प्रमुखता से प्रकाशित/प्रसारित किया जाता है, साथ ही डी.डी. किसान चैनल और अन्‍य चैनलों के माध्‍यम से किसानों तक जानकारी पहुँचाई जाती है। हमारे संस्‍थान को भारत सरकार, गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग द्वारा हिंदी भाषा के कार्यान्‍वयन के लिए प्रथम पुरस्‍कार तथा संस्‍थान की छमाही राजभाषा पत्रिका विषविज्ञान संदेश को लगातार तीन बार प्रथम पुरस्‍कार प्रदान किए गए हैं एवं कई बार अन्‍य पुरस्कार भी प्राप्‍त हुए हैं । अनुसंधान में हम प्रमुख रूप से खाद्य, पेयजल और पर्यावरण के क्षेत्र में कार्यरत हैं। हमारा संस्‍थान स्‍वच्‍छ भारत, स्‍वस्‍थ भारत, स्‍टार्टअप जैसे कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से योगदान दे रहा है। भारत सरकार के नमामि गंगे कार्यक्रम के अंतर्गत सात स्‍थानों पर जल का विश्‍लेषण कर रहा है । इससे पूर्व डॉ. पूनम कक्कड़, मुख्य वैज्ञानिक ने माननीय राज्यपाल महोदय का स्वागत किया ।
संस्‍थान के हिंदी अधिकारी श्री चन्‍द्र मोहन तिवारी ने कहा कि हिंदी सप्ताह के दौरान प्रश्‍नोत्‍तरी (क्विज), स्लोगन (आदर्श-वाक्य), वाद-विवाद, आशुभाषण, हिंदीतर भाषी का हिंदी ज्ञान, लेख, अनुवाद, प्रस्तुतीकरण, कविता/कहानी की रचना और कवि सम्मेलन प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाएगा । प्रतियोगिताओं में वैज्ञानिक, तकनीकी एवं प्रशासनिक अधिकारी/कर्मचारी/शोध-छात्र बढ़-चढ़कर भाग लेते है । राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ और डॉ. डी. कार चौधुरी, मुख्य वैज्ञानिक ने धन्यवाद ज्ञापित किया ।
अत: अनुरोध है कि उपर्युक्‍त समाचार को अपने प्रतिष्ठित समाचार पत्र में प्रकाशित करने की कृपा करें।

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