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अशोक गहलोत को लेकर सचिन की तल्खी बरकरार।

क्या अब सत्ता और संगठन में पायलट का पहले जैसा रुतबा कायम रहेगा?

क्या गांधी परिवार के फैसले को सीएम गहलोत मन से स्वीकार करेंगे?

संवाददाता अखिलेश दुबे
लखनऊ। आखिरकार सचिन पायलट अपने बगावती तेवर छोड़कर कांग्रेस के साथ खड़े हो गए हैं। इससे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी राहत मिली है। कहा जा रहा है कि गहलोत ने जो रणनीति अपनाई उसी की वजह से पायलट को सरेंडर होना पड़ा, लेकिन 10 अगस्त की रात को दिल्ली में पायलट ने जो बयान दिया, उससे साफ जाहिर है कि अशोक गहलोत को लेकर तल्खी बरकरार है। सोनिया गांधी, प्रियंका और राहुल गांधी से वार्ता के बाद पायलट ने दो टूक शब्दों में कहा कि विधानसभा चुनाव में हमने जो वायदे किए थे,उन्हें सरकार बनने के डेढ़ वर्ष बाद भी पूरा नहीं किया जा सका है। मुझे मेरे पद की चिंता नहीं है, लेकिन जिन कार्यकर्ताओं ने पांच वर्ष संघर्ष किया, उन्हें सरकार में सम्मान मिलना चाहिए। पयालट ने इस बात पर संतोष जताया कि पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उनकी शिकायतों को सुना है। पायलट को उम्मीद है कि हाईकमान जो कमेटी बना रही है, उससे सभी समस्याओं का समाधान निकलेगा। पायलट के बयान से ऐसा नहीं लग रहा था कि उन्होंने किसी मजबूरी अथवा लाचारी से समझौता किया है। भले ही पायलट से प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और डिप्टी सीएम का पद छीन लिया गया हो, लेकिन दिल्ली में गांधी परिवार ने सीएम गहलोत की उपस्थिति के बगैर ही सचिन पायलट के साथ समझौता कर लिया। शायद गांधी परिवार ने भी यह महसूस किया होगा कि राजस्थान में संगठन की मजबूती के लिए पायलट का होना जरूरी है। भले ही पिछले एक माह की अवधि में पायलट पर भाजपा की गोद में बैठने का आरोप लगा हो, लेकिन अब गांधी परिवार पायलट को ही अपने भरोसे का आदमी माना है। पायलट से समझौते में सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही है कि प्रदेश प्रभारी की भूमिका निभा रहे राष्ट्रीय महासचिव अविनाश पांडे को भी दूर रखा गया। विवेक बंसल जैसे राष्ट्रीय सचिव भले ही जैसलमेर में विधायकों के साथ जोगिंग करते नजर आए हो, लेकिन ऐसे नेताओं को भी दूर रखा गया। जानकारों की माने तो पायलट ने राहुल गांधी को बताया कि अविनाश पांडे, विवेक बंसल जैसे प्रभारियों ने सत्ता में कैसा कोहराम मचाया। राहुल गांधी को कई मंत्रियों के बारे में भी जानकारी दी गई। ऐसी जानकारियों के बाद भी गांधी परिवार ने एक तरफा निर्णय लेते हुए पायलट को वापस कांग्रेस के साथ खड़ा कर लिया। सवाल उठता है कि क्या अब पायलट का पहले जैसा रुतबा होगा? फिलहाल पायलट के लिए यह सबसे बड़ी उपब्धि है कि उन पर गांधी परिवार ने भरोसा कर लिया है। सीएम गहलोत ने जिन सचिन पयालट को गद्दार, मक्कार, निकम्मा, नकारा कहा वहीं पायलट अब गांधी परिवार के साथ खड़े हैं। राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं होता है।
सचिन पायलट के वापस कांग्रेस के साथ खड़े हो जाने के बाद सवाल उठता है।कि क्या सीएम गहलोत इस समझौते को मन से स्वीकार करेंगे? इसमें कोई दो राय नहीं कि अशोक गहलोत संवेदनशील इंसान है। पायलट के 18 विधायकों के साथ दिल्ली चले जाने के बाद गहलोत ने कांग्रेस की सरकार बचाने के लिए पूरी ताकत लगा दी। विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए 100 विधायकों को एकजुट रखा। राजभवन में पांच घंटे तक धरना प्रदर्शन किया। पिछले एक माह में गहलोत ने अपनी गांधीवादी छवि के विपरीत प्रदर्शन किया। लेकिन ऐनमौके पर कांग्रेस आलाकमान ने गहलोत की उपस्थिति के बगैर ही सचिन पायलट से समझौता कर लिया। अब देखना होगा। कि गहलोत मुख्यमंत्री पद का दायित्व कैसे निभातते हैं। यदि आलाकमान को समझौता ही करना था। तो फिर गहलोत से इनती मशक्कत क्यों करवाई?

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