बजट 2017-18 पर दलित संगठनों ने संगोष्ठी का आयोजन किया
लखनऊ। राजधानी के प्रेस क्लब में रविवार को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी राज्य बजट में दलितों की हिस्सेदारी को लेकर एक सम्वाद का आयोजन किया गया। दलित आर्थिक अधिकार आंदोलन, नेशनल कैम्पेन आन दलित ह्यूमन राइट्स, रिहाई मंच, बुंदेलखंड दलित अधिकार मंच, राष्ट्रीय समतामूलक मंच, राष्ट्रीय भागीदारी आंदोलन तथा डायनामिक एक्शन ग्रुप के सदस्यों ने परिचर्चा में भाग लिया। वक्ताओं ने यूपी सरकार के वर्ष 2017-18 के बजट में दलितों के लिए विभिन्न मदों में बजट आवंटन न करने को लेकर विचार व्यक्त किए। बुंदेलखंड दलित अधिकार मंच के संयोजक कुलदीप कुमार बौद्ध ने यूपी बजट में अनुसूचित जाति उपयोजना आवंटन के विश्लेषण को रखतें हुए कहा कि सरकार ने बड़े पैमाने पर दलितों के बजट का दूसरे मदों में आवंटित कर दिए हैं जो कि पूरी तरह से पहले से जारी गाइड लाइन का उलंघन है। प्रदेश में 5 करोड़ दलित आबादी है पर उनके लिए मुख्यतया कुछ नहीं किया गया है। योगी सरकार पर बजट आवंटन में अनुसूचित जाति उपयोजना की गाइडलाइंस की अनदेखी करते हुए 7.57% की जगह 6.15% धनराशि आवंटित की है। दलितों के पैसों को अन्य योजनाओं में खर्च करने की बात करते हुए कहा कि दलितों को आईएएस- पीसीएस कोचिंग के लिए मात्र एक करोड़ रुपए के बजट की घोषणा की है जो प्रदेश में दलितों की आबादी 21% को देखते हुए बहुत ही कम है। इसी तरह प्रदेश में भूमि सुधार के लिए मात्र एक लाख रुपए का बजट आवंटित किया है जो अपने आप में एक मजाक की तरह है। राष्ट्रीय समतामूलक मंच के अध्यक्ष मनोज चौधरी ने कहा कि यूपी सरकार ने अनुसूचित जाति उपयोजना की अवहेलना करते हुए दलितों के बजट से कर्ज माफी, पुल- हाइवे निर्माण और पूर्वांचल एक्सप्रेस वे को धनराशि आवंटित कर दी है जो कि सरासर ग़लत है। राष्ट्रीय भागीदारी आंदोलन के अध्यक्ष पी सी कुरील ने कहा कि योगी सरकार ने 57 दलित हितैषी स्कीमों को बंद कर दिया है जिनमें से दलित लड़कियों के विवाह के लिए दिए जाने वाले अनुदान की राशि 20 हजार रुपए भी शामिल है।