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प्रोटोकाल के पालन के साथ एक साल से जिम्मेदारी निभा रहीं डॉ. दीप्ति

पूरी एहतियात बरतने का ही परिणाम है कि वह कोरोना से पूरी तरह रहीं सुरक्षित
लखनऊ। पिछले एक साल से हम कोरोना के साथ ही जी रहे हैं। इस समय यह और अधिक तीव्रता से लोगों को प्रभावित कर रहा है। इस आपदा से निपटने में स्वास्थ्य विभाग सबसे आगे है और इसके सभी अधिकारी और कर्मचारी दिन – रात सेवा में जुटे हुए हैं।
ऐसी ही एक चिकित्सक हैं डा. दीप्ति अग्रवाल जो कि सरोजिनी नगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के तहत राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम टीम में चिकित्सक हैं। डा. दीप्ति बताती हैं – वह पिछले एक साल से सावधानी बरतते हुए लगातार काम कर रही हैं और अभी तक कोविड से ग्रसित नहीं हुयी हैं। वह कहती हैं पिछले साल कनिका कपूर का केस जब सामने आया था तब मेरी ड्यूटी मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय में टेलीफोनिक सर्विलांस में लगा दी गयी थी जिसमें हम मरीज के सम्पर्क में आने वाले लोगों से फोन पर बात कर यह पता करते थे कि उनमें कोरोना के कोई लक्षण तो नहीं हैं। मई 2020 से मेरी ड्यूटी एअरपोर्ट पर लगा दी गयी, जहां मुझे इंटरनेशनल टर्मिनल, नेशनल टर्मिनल और स्टेट हैंगर तीनों जगह ही काम करना होता था। पूरे समय पीपीई किट पहनकर आने – जाने वाले यात्रियों की थर्मल स्कैनिंग,कोरोना एंटीजन टेस्ट और शवों का क्लियरेन्स आदि कार्यों को देखना होता था।
पिछले एक साल से मैनें छुट्टी भी नहीं ली लेकिन मैनें यह निश्चय किया कि मैं पूरा प्रयास करुँगी कि मैं कोरोना की चपेट में न आने पाऊं क्योंकि मेरी 12 और नौ साल की दो बेटियां हैं और पति भी चिकित्सक हैं जो कि निजी प्रैक्टिस करते हैं। कहीं मेरे कारण मेरा परिवार प्रभावित न हो जाए। इसलिए मैं नियमित प्राणायाम करती हूँ, काढ़ा पीती हूँ और कोरोना से बचाव के सभी प्रोटोकॉल – मास्क लगाना, दो गज की सामाजिक दूरी और बार –बार हाथ धोने का पालन करती हूँ। अभी तक मैं कोरोना पॉजिटिव नहीं हुयी हूँ। मैं नियमित रूप से गुनगुना पानी ही पी रही हूँ। वैसे मुझे बीच-बीच में खांसी- जुकाम हुआ मैनें तुरन्त ही जाँच करायी लेकिन मैं पॉजिटिव नहीं हुयी हूँ।
मैं लोगों से यह कहना चाहूंगी कि आज के समय में यदि उन्हें खांसी, जुकाम , गले में खराश अन्य कोई असामान्य लक्षण दिखें तो वह तुरन्त ही जाँच कराएँ। कोरोना से बचाव के प्रोटोकॉल का पालन करें।
डा. दीप्ति कहती हैं – इन तेरह महीनों में मुझे परिवार के लिए भी वक्त नहीं मिलता है। मेरी बेटियों की भी तबियत खराब हुयी लेकिन मैं बहुत अधिक समय उन्हें नहीं दे पाई। कई-कई दिनों तक तो अपने पति से भी बात नहीं हो पाती है। घर के बड़ों ने नौकरी छोड़ने की सलाह दी कि जान चली जाएगी लेकिन मैंने कहा जब समाज और देश को सबसे ज्यादा हमारी जरूरत है तब ही हम अपने उत्तरदायित्व से पीछे हटें। मेरा जमीर मुझे इसकी इजाजत नहीं देता और मैं अपने काम में आज तक लगी हूँ। अब मेरी ड्यूटी वापस सीएचसी पर लगा दी गयी है।
उनके इसी जज्बे को देखते हुए विभाग द्वारा डा. दीप्ति को कोरोना वारियर से भी नवाजा गया है।

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