तरुण जयसवाल
लखनऊ | मानवाधिकार और महिला मुद्दों पर काम करने वाली संस्था ब्रेकथ्रू संस्थान की सीईओ सोहनी भट्टाचार्य ने बताया मुज्जफरपुर जैसी घटनाएं हमारे समाज के साथ ही सिस्टम पर भी एक बड़ा सवाल है। सेवा संकल्प एंव विकास समिति द्वारा संचालित आश्रय गृह में 34 लड़कियों के साथ बलात्कार की घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया है। महिलाओं के साथ इस तरह की हिंसा को किसी भी सभ्य समाज में स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
आश्रय गृह से उम्मीद की जाती है कि वो जोखिम के साथ जी रही महिलाओं और लड़कियों के लिए एक सुरक्षित जगह होगी, जो उन्हें उनके ट्रामा से बाहर निकाल कर समाज की मुख्यधारा में लाने में सहयोग करेगा। यह महिलाओं और लड़कियों के लिए एक अंतिम विकल्प के रूप में होते हैं लेकिन इस तरह की घटनाएं उन्हें शारीरिक, मानसिक, यौनिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक रूप से और कमजोर बनाती है और उन्हें कभी उनके ट्रामा से बाहर ही नहीं आने देती हैं। ये घटनाएं हमारे गिरते समाजिक मूल्यों को तो दर्शाती ही हैं साथ ही सिस्टम और सरकार पर भी हमारे भरोसे को भी कम करती हैं।
यह सुनिश्चित करने के लिए कि आश्रय घरों की उपयोगिता बनी रहे और एक दूसरा मुजफ्फरपुर न हो, हमें कुछ तात्कालिक उपाय करने के साथ ही ढांचागत सुधार भी करने के लिए भी निर्णायक कदम उठाने होंगे-
1- तात्कालिक कदम के रूप में हमें लड़कियों के लिए तत्काल जांच, परीक्षण और न्याय के साथ ही दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करनी होगी जिससे हिंसा का सामना करने वालों में सिस्टम,सरकार और न्याय तंत्र पर भरोसा बना रहे।
2- लड़कियों को लगे आघात (ट्रामा) से बाहर निकालने के लिए उनके पुनर्वास के लिए मानसिक और सामाजिक सहयोग की उचित व्यवस्था की जाए।
3- बिहार सरकार ने सोशल ऑडिट की उत्साहजनक पहल के बाद टाटा इस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज की रिपोर्ट पर कार्रवाई करनें में इतनी देर क्यों की गई और आरोपी को एक और आश्रय घर चलाने का काम कैसे दे दिया गया,इससे जुड़े जिम्मेदारों के खिलाफ तत्काल कड़ी कार्रवाई की जाए।
4- इस सोशल ऑडिट की सिफारिशों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए, महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा और अधिकार सुनिश्चित करने के लिए सिस्टम के अंदर इससे जुड़ी एजेंसियों के बीच बेहतर तालमेल पर ध्यान दिया जाए।
5- सोशल ऑडिट सिस्टम, जांच करने और नियंत्रण रखने का एक अच्छा माध्यम है। हम सभी अन्य राज्य सरकारों से मांग करते हैं कि वो अपने यहां महिलाओं, बच्चों व मानसिक और शारीरिक रूप से दिव्यांग जनों के लिए बनाए गए सरकारी व सरकारी सहायता प्राप्त आश्रय घरों की सोशल ऑडिट स्वतंत्र जांच एजेंसी कराएं।
6- आश्रय घरों को बनाते समय, जिनके लिए वो बनाया जा रहा है उन लोगों की आवश्यकता का पूरा ध्यान रखा जाए। जिससे वे वहां अपने को सुरक्षित और बेहतर अनुभव करें। उनके अनुकूल माहौल मिलने पर उनको मुख्यधारा में लाना आसान होगा।
7- आश्रय घरों में महिलाओं और बच्चों को अज्ञात रिपोर्टिंग की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाया जाए जिससे उनके लिए बाहरी एजेंसियों तक पहुंच आसान हो।
हम समाज के अंतिम पायदान पर खड़ी महिलाओं और लड़कियों की ज़िम्मेदारी लेने और बेहतर तरीके से उनके जीवन को बदलने के लिए प्रभावी कदम उठाने के लिए सरकार की जवाबदेही चाहते हैं साथ ही इस दिशा में समाज को भी जागरुक होने की जरूरत है। जिससे आगे इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके।