Home > पूर्वी उ०प्र० > परीक्षा में कम अंक, फेल होने, मोबाइल गेम्स से आत्महत्या को मिल रहा है बढ़ावा

परीक्षा में कम अंक, फेल होने, मोबाइल गेम्स से आत्महत्या को मिल रहा है बढ़ावा


  • बलरामपुर 25 जुलाई। क्या आपका बच्चा भी दिनभर मोबाइल में लगा रहता है। छीनने पर रोने, लड़ने लगता है या फिर सिर फोड़ने लगता है, यदि ऐसा है तो सतर्क हो जाएं। मोबाइल से चिपके रहना कोई अच्छी आदत नहीं बल्कि मोबाइल एडिक्शन (लत) है। इसके अलावा परीक्षा में कम अंक लाने, फेल होने, मोबाइल गेम्स या अन्य कारणों से भी लोग आत्म हत्या कर रहे हैं। बच्चों में बढ़ती इस प्रवृत्ति को राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम में भी शामिल कर लिया गया है। इस प्रवृत्ति को छुड़ाने के लिए प्रदेश के सभी जिला अस्पतालों में मन कक्ष बना कर विशेष काउंसलिंग की जाएगी। बलरामपुर में इसकी शुरुआत जिला मेमोरियल चिकित्सालय से होगी।
    स्वास्थ्य विभाग ने स्कूली बच्चों पर एक सर्वे कराया तो पता चला कि मोबाइल एडिक्शन के चलते बच्चों का बचपन गुम हो रहा है। वे चिड़चिड़े और गुस्सैल हो रहे हैं। पबजी और ब्लूव्हेल जैसे घातक ऑनलाइन गेम लक्ष्य पूरा ना होने पर आत्महत्या की प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रहे हैं। सरकार ने बच्चों में ऐसी भयावह स्थिति को देखते हुए इससे निपटने के उपाय किए हैं। प्रदेश के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य महानिदेशक मधु सक्सेना ने राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत सभी जिला चिकित्सालय में मन कक्ष स्थापित करने का आदेश जिलाधिकारियों एवं मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को दिया है। जिसमें काउंसलिंग और औषधियों द्वारा प्रथम चरण में ही इस प्रवृत्ति को रोककर मानव जीवन बचाया जा सकता है।
    मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ घनश्याम सिंह ने गुरूवार को बताया कि जिला मुख्यालय के जिला मेमोरियल चिकित्सालय में पहले से ही ‘‘मन कक्ष’’ बनाया गया है। शासन के पत्र का संज्ञान लेते हुए जल्द ही नवीन मनोंविकार, बच्चों को मोबाइल नशा मुक्ति व आत्महत्या रोकथाम की पहल की जाएगी जिसमें बच्चों की उम्र के हिसाब से निःशुल्क काउंसलिंग शुरू होगी।
    इसलिए घातक है मोबाइल
    चिकित्सक डा. राजेश कुमार ने बताया कि 12 से 18 महीने की उम्र के बच्चों में स्मार्ट फोन के इस्तेमाल की बढ़ोतरी देखी गई है। इस वजह से कम उम्र में बच्चों की आंखें खराब हो रही हैं। स्मार्टफोन चलाने के दौरान बच्चे पलके कम झपकाते हैं, इससे होने वाली बीमारी को कंप्यूटर विजन सिंड्रोम कहते हैं। इस बीमारी में आंखों का पानी सूखने से नजरें तिरछी होने लगती हैं। कम उम्र में स्मार्टफोन की लत की वजह से बच्चे सामाजिक तौर पर विकसित नहीं हो पाते हैं और कार्टून कैरेक्टर की तरह ही हरकतें करने लगते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *