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क्रान्तिदूत योगेश्वर श्रीकृष्ण” योगेश्वर श्री कृष्ण जी का लगभग 5247 वा जन्म दिवस मना रहे हैं।

अवध की आवाज ब्यूरो चीफ विनोद कुमार सिंह।

गोंडा। श्री कृष्ण जन्माष्टमी कोविड-19 को मध्य नजर रखते हुए हिंदू भाइयों ने हर्षोल्लास के साथ शांति पूर्ण रुप से मनाया। बताते चलें कि जिला गोंडा के मनकापुर विकासखंड की न्याय पंचायत बीरपुर क्षेत्र में कई ग्राम सभाओं में कई ग्राम पंचायतों में लोगों ने श्री कृष्ण जन्माष्टमी मनाई किसी प्रकार की दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा क्योंकि शासन सत्ता और थाना कोतवाली मनकापुर तथा थाना मोतीगंज के थाना प्रभारी ने पुलिस बल के साथ क्षेत्रों में सभी क्षेत्रीय ग्रामीण लोगों को निर्देशित किया था कि श्री कृष्ण जन्माष्टमी शांतिपुर से मनाते हुए संपन्न करें अन्यथा सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी। योगेश्वर श्री कृष्ण जी का जन्म जिस समय हुआ उस समय भारत वर्ष की दशा अच्छी नहीं थी।
भारतवर्ष उस समय में 3000 से अधिक छोटी- छोटी रियासतों में बंटा हुआ था।
मांडलिक राजा आपस में द्वेष भाव रखते और लड़ते रहते थे। योगेश्वर श्री कृष्ण जी ने सभी राजाओं को एक झंडे के नीचे किया और भारत राष्ट्र को एक संघीय राष्ट्र बनाया।
योगेश्वर श्रीकृष्ण जी को दोनों ही पक्ष बड़े मनोभाव से स्वीकार करते हैं और सदैव श्रद्धा पूर्वक मानते हैं।
एक पक्ष जो अपने आप को सनातन धर्मी कहता है। उन्हें परमात्मा का अवतार मानकर परमात्मा ही मानता है।
दूसरा पक्ष अवतारवाद को स्वीकार नहीं करता और श्री कृष्ण जी को आप्त पुरुष, महापुरुष स्वीकार करता है। उसके चरित्र पर चलकर अपनी संस्कृति को बचाने में सहयोग प्रदान करता है। दूसरे लोग रासलीला रचाकर जहां परमात्मा मानकर पूजते हैं वहीं दूसरी तरफ ऐसी उस महान पुरुष का अपमान भी करते हैं।
ऐसे महापुरुषों के प्रति हमें श्रद्धा रखनी चाहिए, और सावधानी रखनी चाहिए। कहीं किसी प्रकार से हमारे महापुरुष का अपमान ना हो जाये। श्री कृष्ण को भगवान मानकर उन्हें पूजते हैं, तो इस तरह हम को मानना उनके बारे में कहना अनुचित ही होगा।
श्री कृष्ण जी के उज्जवल चरित्र के बारे में कालजयी अमर ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश में *महर्षि दयानंद सरस्वती लिखते हैं–” देखो श्री कृष्ण का चरित्र महाभारत में •अति उत्तम है उनका गुण कर्म स्वभाव और सहित आप पुरुषों के सदृश जिसमें कोई अधर्म का आचरण श्री कृष्ण जी ने जन्म पर्यंत बुरा काम कुछ भी किया हो ऐसा नहीं लिखा। महाभारत का कृष्ण चक्रधर है, गदाधर है,।
(भागवत-10-69-18)
नारद ने आकर देखा की वहीं पर श्री कृष्ण मौन होकर बैठे प्रकृति से भी परे पारब्रह्म परमेश्वर का ध्यान कर रहे हैं।
श्री कृष्ण का ईश्वर किसी मंदिर, शिवालय में नहीं बल्कि समस्त प्राणियों के हृदय में निवास करते है।
सर्वभूतानाम् ह्रेदेशे से अर्जुन तिष्ठति।।
गीता हे अर्जुन! ईश्वर समस्त भूत प्राणियों के हृदय में वास करता है।
यद्दाचरतिश्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।स यत्प्रमाणं कुरूते लोकस्तदनुवर्तते।।गीता।।

समस्त मनुष्य समुदाय उसी के अनुसार बरतने लग जाता है। निसंदेह महाभारत में कृष्ण के चरित्र का अति उज्जवल वर्णन मिलता है। भारतीय पूरा सर्वेक्षण के सहायक अधीक्षक एस पी तिवारी ने लखनऊ में एक गौष्ठी से पूरा शास्त्रियों को बताया कि कृष्ण से संबंधित भागवत पुराण, विष्णु पुराण, हरिवंश पुराण में राधा का जिक्र तक नहीं है।
ही नहीं और इनकी जोड़ी बाद में बनाई गई है। भारत में उसकी कम लोकप्रियता से निष्कर्ष निकाला है कि कृष्ण की मूल गाथा में राधा नहीं थी और यही गाथा दक्षिण भारत में पहुंची उनका मत है कि भागवत विष्णु और हरिवंश पुराण नवी और 10 वीं सदी में दक्षिण भारत में गए श्रीकृष्ण को 5,247 हजार वर्ष हो चुके हैं। यदि उनके समय में राधा नाम की कोई स्त्री जिसका श्री कृष्ण से किसी प्रकार का संबंध रहा होता तो नवीं और दसवीं सदी अर्थात् अब से 1000 वर्ष पूर्व की लिखी में पुराणों में अवश्य वर्णन किया गया होता। इससे यह सिद्ध होता है कि राधा नाम की स्त्री की कल्पना 10 वीं सदी के बाद ही की गई है।राधा जिसके नाम से वे दादि सत्य शास्त्रों के ज्ञाता योगेश्वर श्रीकृष्ण को सारे जग में बदनाम कर दिया जब कोई थी ही नहीं और थी तो !कौन थी यह पता होना ही चाहिए।
श्री कृष्ण के विषय में ऋषि दयानंद सत्यार्थ प्रकाश के 11 समुल्लास में लिखा है- महाभारत,भागवत, विष्णु पुराण और हरिवंश पुराण में राधा का कहीं नाम नहीं है।
श्रीकृष्ण के साथ उनके किसी प्रकार के संबंध का प्रश्न ही नहीं है।( परोपकारी माक्षिक पत्र) किंतु राधा और श्रीकृष्ण के संबंधों की कहानी ब्रह्मवैवर्त पुराण से शुरू होती है। निश्चित रूप से इसकी रचना 10 वीं सदी के बाद मुस्लिम काल में हुई होगी।
इस पुराण में राधा और श्रीकृष्ण के कई प्रकार के संबंधों का वर्णन मिलता है।इससे यह भी सिद्ध होता है कि इस पुराण की किसी एक लेखक ने एक समय में रचना नहीं की, बल्कि समय-समय पर विभिन्न लेखकों ने अपनी मनमानी की है।
निम्न प्रमाण द्वारा सभी जन राधा कृष्ण को समझने का प्रयास करेंगे श्री कृष्ण के साथ राधा का नाम जोड़ना कितना उचित है।
१•राधा कृष्ण की पुत्री- आविर्बभुव कन्यैका कृष्णस्य वाम पार्श्वतः।तीनराधा समाख्याता पुराविद्भद्विजोत्तमः।।25,26।।(ब्रह्मखण्ड अध्याय 5)
कृष्ण के वाम पार्श्व से एक कन्या उत्पन्न हुई पूरा कल्प को जानने वाले ब्राह्मणों ने उसे राधा नाम दिया। २•राधावृषभानु की पुत्री– वृषभानु सुता सा च माता तस्य कलावती।।कृ•पू•ख•19-92।। राधा वृषभानु की पुत्री जिसकी माता कलावती थी ।
३•राधा कृष्ण की पत्नी– स्वयं राधा कृष्ण- पत्नी कृष्ण-वक्षः स्थलारिथता।।प्र•ख•अ•48-47।।
यहां राधा को कृष्ण की पत्नी कहां है जिसका विवाह संस्कार स्वयं ब्रह्मा ने कराया था-पाणिजग्राह राधाया: स्वयं ब्रह्मा पुरोहितः।।कृ•ज•खण्ड उत्तरार्द्ध 115-58।।
राधा कृष्ण की मामी थी। उक्त प्रमाणों से सिद्ध है कि राधा मात्र एक कल्पना की वस्तु है श्री कृष्ण के समय राधा नाम की कोई स्त्री नहीं थी। इस प्रकार से भागवत पुराण में जो 16,108 रानियों की और प्रत्येक से 10- 10 पुत्र होने की अथवा अन्य गोपियों की कहानी गढ़ी गई है। तथा उनसे जो श्री कृष्ण के साथ अनैतिक संबंध बतलाए गए हैं। वे योगेश्वर श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व के साथ अशोभनीय अनुचित है।
श्री कृष्ण द्वारा ओम का जाप–
श्री कृष्ण परमेश्वर के मुख्य नाम ओम उसी के जाप से परम गति मानते हैं। जिस अक्षर को वेद विद लोग जानते हैं। जिसके बाद से परम ब्रह्म के ध्यान में वीतराग यति लोग रात दिन प्रविष्ट रहते हैं।
जिस ब्रह्म को पाने के लिए सब धर्मात्मा ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। उस अनादि अनंत अक्षर को मैं तुझे कहता हूं। शरीर के नव द्वारों को बंद करके मन को हृदय में रोककर अपने प्राणों को सिर में चढ़ा कर मेरा अनुसरण करता हुआ ओम इस एक अक्षर का उच्चारण करता हुआ।

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