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पत्रकारों व सम्पादकों पर हमलो पर योगी सरकार मौन क्यों ?

कानपुर । कानपुर का एक प्रकरण है जिसमें साजिस करके के डी ए के साथ मिलकर रतन ज्योति साप्ताहिक समाचार पत्र  के कार्यालय कॊ एक माह पूर्व ध्वस्त करा दिया था । कार्यालय तोड़ने वाले अभी तक सलाखों के पीछे क्यों नहीं ? 112/ 287 नगर  कानपुर रतन ज्योति का कार्यालय बना हुआ था । केडीए से मिलकर एक साजिश के तहत कार्यालय को तोड़ा गया।सम्पादक गीता पाल की अनुपस्थिति मैं  कार्यालय तोड़ा गया । उसमे रखे हुए ढाई तीन लाख का सामान जप्त कर लिया गया । स्वरूप नगर थाने में पूछताछ करने पर मालूम हुआ कि उनका कोई हाथ नहीं है । उन्होंने कहा केडीए से पूछे । केडीए से पूछा तो कोई जवाब नहीं मिला । आरटीआई डाला गया तो केडीए की MD सौम्या अग्रवाल जी का जवाब आता है कि आशा पाल की एप्लीकेशन में यह हमें ज्ञात हुआ था कि अवैध निर्माण  बनाया जा रहा है उसे रुकवाया जाए । मैंने उस एप्लीकेशन में उसे गिराने का परमिशन दिया।  कोई अपनी दुश्मनी निकालने के लिए केडीए को एप्लीकेशन देता है तो क्या उसी में कारवाही शुरू कर देनी चहिए । एक 80 साल की विधवा के मकान को गिराने का परमिशन दे दिया जाता है । क्या सौम्या अग्रवाल जी को वहां जाकर देखना नहीं चाहिए कि वह सही बना है या गलत ? अब उनसे जो गलती हो गई है लीगल मकान को गिराकर वह कैसे शांत बैठ सकती है ? क्या माननीय योगी जी को इस से कोई एक्शन नहीं लेना चाहिए। सम्पादक गीता पाल आज भी न्याय के लिए दर दर भटक रही है कि उनको न्याय कब मिलेगा । 

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