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बिका हुआ मैं मुक़र्रिर हूँ उनके हाथों में, मैं उनसे पूछ लूँ तब तो ख़िताबे क़ौम करूँ,, कशफी

उरई। जनपद की क्रियाशील साहित्तक समाजिक संस्था पहचान की एक काव्य गोष्ठी न्यू लाइफ में वरिष्ठ साहित्यकार यगदत्त त्रिपाठी की अध्यक्षता उस्ताद शायर अब्दुल मलिक अब्बासी साक़ी के मुख्यातिथ्य में हुई । जिसमें नगर के वरिष्ठ कवि एवम शायरों और नवोदित कलमकारों ने शानदार गीत, ग़ज़ल,मुक्तक,पढ़े गोष्ठी का संचालन ज़िले के वरिष्ठ गीतकार विनोद गौतम ने किया गोष्ठी का शुभारम्भ विनोद गौतम की वाणी वन्दना और नईम ज़िया की नातेपाक से हुआ इसके बाद सौमित्र त्रिपाठी ने पढ़ा वो कहें हमें कि सितम करो, हम कहें हुजूर हो जाएगा,,खूब तालियाँ बटोरीं फिर पढ़ने आये गोपाल गुप्ता ने पढ़ा हमे उनसे हुई ये क्या कम हादसा है ।परवेज़ अख़्तर ने सुनाया । आज फिर वक़्ते माज़ी याद आया । आज बरसों में हंसी आई है ।फिर संचालक ने आवाज़ दी दिव्यांशु दिव्य को उन्होंने पढा ।ब्रिजवासिन को लाल मेरो घनश्याम है । फ़राज़ ने पढ़ा बेकार हो गई सालों की इबादत तमाम ।वो ऊँचे लहजे में माँ से बात कर बैठे ।ओज के कवि वीरेंद्र तिवारी ने शहीदों को याद करते हुए पढा । शत शत नमन करूँ ऐसे वीर बांकुरों ।देश की सुरक्षा में जो शीश को चढाते है । शायर फरीद अली बशर ने पढ़ा ।फितना साज़ी से बहारों का नशेमन जल गया ।इस कदर शोला फिशा गुल थे कि गुलशन जल गया खूब वाहवाही लूटी कवियत्री शिखा गर्ग ने पढ़ा ।दिन भर फुदके घर आँगन में मीठे गीत सुनाए ।प्यारी सी नन्ही गौरैया मन मेरा भरमाये ।शानदार गीत सुनाया राघवेन्द्र कनकने ने शानदार ग़ज़ल
पढ़ी ।कुछ वक़्त तो दो इन ज़ख्मों को ।ये खुद ब खुद भर जाएंगे। बुंदेली एवम हास्य कवि कृपाराम कृपालु ने राजनीत पर करारी चोट की उन्होंने पढा ।तुम चुनाव में बिज़ी ही नही तुम्हारी चूक ।कालू हार जीवन गया फिर से जीती भूख ।नगर की शानदार कवियत्री प्रिया श्रीवास्तव दिव्यम ने पढ़ा ।प्रेम का रूप माँ तुम ही साकार हो ।मेरी पूजा का माँ तुम ही आधार हो ।
अनुपम ने पढ़ा ।मैं आशावादी हूँ अनुपम हो सकता कभी निराश नहीं ।ओम जी ने कहा ।दिलों में प्रेम रखना जी ।तुम्हे एक रोज़ जाना है। फिर संचालक ने आवाज़ दी पहचान संस्था के अध्यक्ष शफीकुर्रेहमान कशफी को उन्होंने पढा ।बिका हुआ मुक़ररिर हूँ उनके हाथों में ।मैं उनसे पूछ लूँ तब तो खिताबे क़ौम करूँ । पढ़ कर आज की सियासत पर करारा तंज़ किया नईम ज़िया ने पढ़ा ।इनकार हुआ है कभी इक़रार हुआ है।ऐसा तो मेरे साथ कई बार हुआ है ।सन्चालन कर रहे श्रेष्ठ गीतकार विनोद गौतम ने पढ़ा । मैंने तुमसे प्यार किया है बस इतना स्वीकार कीजिये ।फिर चाहे जिसके हाथों में मेंहदी वाले हाथ दीजिये ।खूब तालियाँ बजवाई उन्होंने गोष्ठी में कई और गीत भी पढ़े गोष्ठी के मुख्य अतिथि शायर साक़ी साहब ने पढ़ा ।हमेशा का ये फितना सर्द होता। न दिल होता न दिल में दर्द होता । गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार यगदत्त त्रिपाठी ने पढ़ा ।वयाल डाह दुर्मिच प्रथम तो उनको ही डसते हैं।जो इनके अपने होते हैं और निकट बस्ते हैं । आखिर में अशोक होतवानी ने आये हुए सभी कलमकारों का आभार व्यक्त किया।

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