Home > विचार मंथन > हिन्दी दिवस की सार्थकता ……

हिन्दी दिवस की सार्थकता ……

राज बहादुर सिंह ….
हिन्दी दिवस प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को मनाया जाता है। पहली बार 1953 में हिन्दी दिवस मनाया गया था। 14 सितंबर 1949 में सबसे पहले हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला था। तब से हर साल इस दिन हिंदी दिवस के तौर पर मनाया जाता है। साल 1947 में जब अंग्रेजी हुकूमत से भारत आजाद हुआ तो देश के सामने भाषा को लेकर सबसे बड़ा सवाल खड़ा था। 1946 में आजाद भारत का संविधान तैयार करने के लिए संविधान का गठन हुआ। लेकिन भारत की कौन सी राष्ट्रभाषा चुनी जाएगी ये मुद्दा खड़ा था तब हिंदी और अंग्रेजी को नए राष्ट्र की भाषा चुना गया। संविधान सभा ने देवनागरी लिपी में लिखी हिंदी को अंग्रजों के साथ राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया था। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी।
हम हिन्दुस्तान मे रहते है। कई प्रांतो मे हिन्दी को मातृभाषा के रूप मे अपनाया जाता है। हिन्दी दिवस के माध्यम से हिन्दुस्तान की जनता को यह बताया जाता है कि हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है। आजकल लोगो का रूझान अंग्रेज़ी भाषा की तरफ बढ़ता जा रहा है इस रूझान को हिन्दी भाषा की तरफ मोड़ने के लिए हिन्दी दिवस मनाना परम आवश्यक है। हिन्दी दिवस पर हिन्दी की सार्थकता को शत प्रतिशत सिद्ध करते हुए किसी कवि ने कहा है कि –
अंधकार है वहा जहां आदित्य नही,
मुर्दा है यह देश अगर इसमे साहित्य ज्ञान नही।
जैसा कि स्पष्ट है कि जहाँ पर सूर्य उदय नही होता है वहाँ पर अंधकार छाया रहता है इसी प्रकार वह देश भी एक मुर्दे की स्थिति मे होता है जहाँ पर (हिन्दी ) साहित्य का ज्ञान नही होता है।
अन्त मे मै सिर्फ इतना ही लिखूँगा  कि हिंदी दिवस मनाना हिन्दुस्तान की जनता के लिए अति आवश्यक है। हिन्दी दिवस मनाना पूर्ण सार्थकता का विषय है। अब मै अपनी बात का समापन इन चन्द लाइनो से करता हूँ ——
हर सुबह याद रखना,
हर शाम याद रखना,
हमारी राष्ट्रभाषा है हिन्दी,
हमेशा हिन्दी को याद रखना।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *