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जीवन के उत्कर्ष के लिए,संतों,महापुरुषों का अनुसरण आवश्यक: डॉ अमरजीत यादव

लखनऊ। शिव सत्संग मण्डल के प्रांतीय धर्मोत्सव में लखनऊ विश्वविद्यालय के प्राध्यापक/राज्य सरकार के आयुष सलाहकार डॉ अमरजीत यादव ने कहा कि जीवन के उत्कर्ष के लिए संतों महापुरुषों का अनुसरण आवश्यक है।
वह खुन खुन जी गर्ल्स पी जी कालेज,चौक लखनऊ के प्रांगण में शिव सत्संग मण्डल द्वारा आयोजित धर्मोत्सव में श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि भारत विविध संस्कृतियों का देश है।भारतवर्ष के मनीषियों ने जीवन के उद्देश्य बताए हैं।जीवन का उद्देश्य आत्म कल्याण है।जीवन के उत्कर्ष के लिए अच्छे संस्कार जरूरी हैं।ताकि एक कर्मयोगी की तरह जीवन को उन्नत कर पाएं।उनका कहना था कि मनुष्य जीवन में धर्म अध्यात्म का समावेश आवश्यक है।आत्म कल्याण ही जीवन का लक्ष्य है। डॉ यादव ने कहा कि अध्यात्म का मतलब वेश भूषा से नहीं है।जीवन में सत्य ,अहिंसा,अस्तेय ,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य का कितना अनुपालन होता है।यह व्यक्ति पर निर्भर करता है।संतों,महापुरुषों का अनुसरण कर व्यक्ति शरीर, मन और आत्मा को एकाकार कर सकता है।आध्यात्मिकता का पुण्य पथ अनगिनत उदाहरणों से भरा पड़ा है।जहां भक्ति मार्ग पर चलकर संतों भक्तों ने परमात्मा को साधा है।
केन्द्रीय संयोजक अम्बरीष कुमार सक्सेना ने कहा कि महात्मा बुद्ध,स्वामी विवेकानन्द, आद्य शंकराचार्य,स्वामी दयानंद जैसे महान संतों ने धर्म पथ को सुशोभित किया और साधारण मनुष्य को भी परमेश्वर की कृपा का सहज मार्ग दिखाया।कहा कि एक गृहस्थ व्यक्ति के लिए यही उचित है कि वह परिवार, राष्ट्र और समाज के प्रति अपनी अपेक्षित जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए भक्ति मार्ग पर चलता रहे और स्वयं की क्षमतानुसार ज्ञान,भक्ति और कर्म के मार्ग पर अग्रसर हो।
बरेली के सत्संगी रवि वर्मा ने कहा कि अष्टांग योग के अंतर्गत प्रथम पांच अंग (यम, नियम, आसन, प्राणायाम तथा प्रत्याहार) ‘बहिरंग’ और शेष तीन अंग (धारणा, ध्यान, समाधि) ‘अंतरंग’ नाम से प्रसिद्ध हैं। बहिरंग साधना यथार्थ रूप से अनुष्ठित होने पर ही साधक को अंतरंग साधना का अधिकार प्राप्त होता है। ‘यम’ और ‘नियम’ वस्तुतः शील और तपस्या के द्योतक हैं।कहा कि द्विज का अर्थ,दो बार जन्म से है। द्विज शब्द का प्रयोग हर उस मानव के लिये किया जाता है जो एक बार पशु के रुप में माता के गर्भ से जन्म लेते है और फिर बड़ा होने के वाद अच्छी संस्कार से मानव कल्याण हेतु कार्य करने का शिव संकल्प लेता है।
लखीमपुर के जिला प्रमुख जमुना प्रसाद ने कहा कि सतसंगति से सुख होता है और कुसंग से दुःख होता है। इसलिए हमेशा वहां जाना चाहिए जहाँ पर साधु संत हो। क्योंकि वहां पर आनंद ही आनंद होता है।
हरदोई के जिला महामंत्री रवि लाल ने बताया कि वेद ज्ञान मनुष्य मात्र को पवित्र करता है।असत्य और अंधविश्वास से मुक्त होकर ही सत्य की राह पर चल सकते हैं।
वरिष्ठ सत्संगी रामअवतार ने दान के महत्व पर प्रकाश डालते हुए दानवीर कर्ण,महर्षि दाधीच,राजा शिवि के प्रसंग सुनाए।
व्यवस्था प्रमुख यमुना प्रसाद ने कहा कि भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक मूल्यों को आत्मसात करते हुए भक्ति मार्ग पर चलेंगे तो निश्चित ही उस प्रकाश स्वरूप परमेश्वर का साक्षात्कार कर सकेंगे।
शाहजहांपुर के जिलाध्यक्ष डॉ0 कालिका प्रसाद ने बताया कि ईश्वर की भक्ति से ही मनुष्य भव सागर से पार हो सकता है।सत्संग,सेवा और सुमिरन से ही मुक्ति के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं।
मंडलाध्यक्ष आचार्य अशोक ने कहा कि सत्संग ही ऐसी पद्धति है जिससे हमारे अन्दर मनुष्यता आती है।जो भक्त पग पग पर प्रभु का स्मरण करता है।वह भक्त समाज के कल्याण में सहायक हो,परमार्थ करता है।
कार्यक्रम में सत्संगी राम निवास,नन्हेलाल शिवोपासना पर प्रकाश डाला।
धर्मोत्सव का शुभारम्भ डॉ अमरजीत यादव ने दीप प्रज्ज्वलित कर एवं सत्संगी श्रीकृष्ण की सामूहिक ईश प्रार्थना से हुआ।कार्यक्रम की अध्यक्षता मंडल के योग प्रशिक्षक राज किशोर चौरसिया ने की।सत्संगी राजकुमार ने प्रेरणादायी भजन सुनाकर श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर लिया।
इस धर्मोत्सव में राष्ट्रीय महासचिव त्रिपुरेश पांडेय,लखनऊ के अध्यक्ष राजेश पांडेय,महामंत्री डॉ संदीप चौरसिया,मनीष कुमार,नंद कुमार यादव,कोषाध्यक्ष हरिओम पांडेय,रक्षित,आकाश,तुषार श्रीवास्तव,लकी एवं बृजेश पांडेय आदि ने धर्मोत्सव को भव्य बनाने में विशेष योगदान दिया।

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