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छपरौली में दशकों से कायम चौधरी परिवार की चौधराहट

सबने ठुकराया तब भी छपरौली ने अपनाया
लखनऊ। पश्चिमी यूपी में एक हफ्ते के भीतर देखते-देखते क्या से क्या हो गया। पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह को मरणोपरांत भारत रत्न का ऐलान गठबंधन की औपचारिक घोषणा के लिए मील का पत्थर था।इस नए राजनीतिक घटनाक्रम के बहाने जयंत के राजनीतिक भविष्य और आरएलडी के सियासी आधार को लेकर खूब बातें हो रही हैं।उत्तर प्रदेश विधानसभा की छपरौली ने जब सबने ठुकराया तब भी आरएलडी को अपनाए रखा।। इस सीट पर दशकों से चौधरी परिवार की चौधराहट कायम है।राष्ट्रीय लोकदल तो अस्तित्त्व में 1996 में आया मगर इस पार्टी की नींव पड़ी थी 1967 में, जब चौधरी चरण सिंह ने भारतीय क्रांति दल यानि बीकेडी का गठन किया था।भारतीय क्रांति दल की स्थापना के बाद जब उत्तर प्रदेश में पांचवीं विधानसभा का गठन हुआ तो चौधरी चरण सिंह छपरौली सीट से चुनकर विधानसभा पहुंचे।चरण सिंह इससे पहले भी इसी सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुने जा चुके थे।बाद में वे केंद्र की राजनीति करने लगे।बागपत जिले की पांच विधानसभा सीटों में से एक छपरौली सीट 1967 ही में परिसीमन के बाद वजूद में आई।2019 के चुनाव का आधिकारिक डेटा अगर लें तो करीब 3 लाख 30 हजार के करीब इस सीट पर मतदाता हैं और इनका बहुतायात हिस्सा दशकों से राष्ट्रीय लोकदल को वोट करता रहा है।पार्टी की स्थापना के बाद ही से 1996 से लगातार आरएलडी के विधायक इस सीट से चुने जाते रहे हैं। गजेंद्र कुमार, अजय कुमार, अजय तोमर, वीर पाल, सहेंदर सिंह रमाला और फिर से पिछले चुनाव में अजय कुमार. चुनाव दर चुनाव भले विधायकों के नाम बदल गए मगर पार्टी वही रही। राष्ट्रीय लोक दल के अजय कुमार 2022 के विधानसभा चुनाव में करीब 30 हजार के वोट से जीते।छपरौली आरएलडी का अभेद्य किला है।1996 के बाद चौधरी चरण सिंह के परिवार का भले कोई इस सीट से न लड़ा हो मगर 1985 में चरण सिंह की बेटी सरोज वर्मा और फिर बाद में 1991 में उनके बेटे अजित सिंह यहां से विधायक बन विधानसभा पहुंचे। 2017 के विधानसभा चुनाव में जब आरएलडी के सभी कैंडिडेट हार गए, तब भी पार्टी का उम्मीदवार इस सीट से जीत गया। 2014, 2019 के लोकसभा चुनाव में रालोद 1 सीट भी नहीं जीत सकी मगर इनके फौरन बाद हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी ये सीट बचा ले गई।इस सीट पर राष्ट्रीय लोक दल की जीत की वजह यहां का सियासी समीकरण है।यहां चुनावी ऊंट हर दफा गन्ना किसानों के मुद्दे, दर्द और जातीय समीकरण ही के बिनाह पर राष्ट्रीय लोकदल के पक्ष में बैठता रहा है इस सीट पर जाट समुदाय की संख्या 1 लाख 32 हजार के करीब है जबकि मुस्लिम मदतादा 61 हजार के आसपास हैं। कश्यप समुदाय के 26 हजार, दलित आबादी 21 हजार और गुर्जर समुदाय के लोग 15 हजार के लगभग बताए जाते है। आरएलडी को जाट समुदाय का वोट तो एकतरफा मिलता ही रहा है। दूसरी जाति और धर्मों के लोग भी रालोद के साथ रहे हैं जिसकी वजह से यह पार्टी इस सीट पर अपनी मजबूत पकड़ पांच दशक से भी अधिक समय से बरकरार रखे हुए है।
आरएलडी की स्थापना 1996 में हुई. चौधरी चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह ने ही इस पार्टी की स्थापना की।कभी किसान और उसका हल पार्टी का निशान था मगर अब पार्टी हैंडपंप के सहारे किसानों की राजनीति करने का दावा करती है। किसानों के हक के अलावा जाटों की बेहतरी पार्टी अपना चुनावी मुहिम बताती है। उत्तर प्रदेश विधानसभा में पार्टी के पास 9, राजस्थान में 1 विधायक हैं जबकि आरएलडी के केवल 1 सांसद राज्यसभा में हैं और लोकसभा में जीरो है।

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