लखनऊ (यूएनएस)। आदि गुरु शंकराचार्य प्रकाट्योत्सव चिनहट अनौरा कला पपनामऊ स्थित वेदांत सत्संग आश्रम में गुरुवार 9 मई को मनाया गया। वहां 2 फरवरी 2007 में स्थापित दक्षिणामूर्तेश्वर महादेव मंदिर का पूजन अनुष्ठान किया गया। उसमें गंगाजल, दूध, दही सहित अष्ट द्रव्यों से अभिषेक के बाद फूल, धतूरा, बेलपत्र अर्पित किया गया। सत्संग भवन में आदि शंकराचार्य, व्यास महाराज, चिन्मय महाराज की तस्वीरों और उनके समक्ष पात्र में शिवलिंग रख कर पूजन आरती की गई। इस अवसर पर लुधियाना से आये स्वामी ब्रह्मेशानंद सरस्वती की अगुआई में सभी अनुष्ठान हुए। उन्होंने पंचदशी ग्रंथ पर चर्चा की। इस अवसर पर भक्तों ने छप्पन भोग का प्रसाद चढ़ाया। मुख्य सेवादार के.के.जे.नाम्बियार के साथ अन्य ने विष्णु सहस्त्र नाम का सरस पाठ किया। अनुयायियों ने चारों वेदों का पूजन किया और पुस्तकालय में धर्मग्रंथों का मनन किया। कठहल की सब्जी के साथ पूड़ी और दाल चावल का भंडारा भी हुआ। केन्द्र के प्रमुख आचार्य स्वामी ओंकारानंद ने आदिशंकराचार्य के बारे में बताया कि आदि शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना की थी। उन्होंने संदेश दिया कि परमात्मा एक ही समय में सगुण और निर्गुण दोनों ही स्वरूपों में रह सकती है। उनका जन्म 788 ईसवीं में केरल में में हुआ था। चूंकि शिवाराधना से पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई थी इसलिए वह शंकरा कहलाये। उनके ज्ञानार्जन की इतनी अधिक ललक थी कि केवल छह साल की अल्पायु में वह ज्ञानी हो गए थे। यही नहीं उन्होंने आठ साल की उम्र में ही सन्यास ले लिया था। स्वामी ओंकारानंद ने बताया कि आश्रम परिसर में निरूशुल्क सात साल का संस्कृत का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। वहां महज 12 साल तक के लड़कों को ही प्रवेश दिया जाता है। उत्तीर्ण होने के बाद शिक्षक के रूप में युवाओं को रोजगार भी मिल रहा है।