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लव कुश की कथा राम दरबार में कथक द्वारा कहेंगी नृत्यांगना डॉ० आकांक्षा श्रीवास्तव

रंजीव ठाकुर
लखनऊ । नृत्य कला कथक का जन्म रामायण काल में लव कुश द्वारा किया गया था । प्रभु राम के दरबार में लव कुश ने नृत्य तथा गायन द्वारा सीता माता की कहानी कही जो बाद में कथक कला की जन्मदाता बनी । बाद में नवाबी काल में कथक के साथ कई प्रयोग किये गये और कथक ने समय समय पर प्रयोगों को आत्मसाहित किया है । ये बातें प्रेस क्लब में पत्रकारों से करते हुए डॉ० आकांक्षा श्रीवास्तव ने कही । उन्होनें बताया कि कथक की उन्नत इस धरती पर नृत्य प्रयोगों की कड़ी में नया प्रयोग ‘रामायण काव्य गान’ 21 अप्रैल को राजधानी के कलप्रेमियों के सामने मंच पर उतरेगा। लखनऊ घराने की युवा कथक नृत्यांगना डा.आकांक्षा श्रीवास्तव की परिकल्पना, कोरियोग्राफी व निर्देशन में लव-कुश काण्ड पर आधारित यह प्रस्तुति 21 को शाम साढ़े छह बजे संत गाडगेजी महाराज प्रेक्षागृह गोमतीनगर में मंचित होगी।
इस समय दुशाम्बे ताजिकिस्तान में भारतीय सांस्कृतिक सम्बंध परिषद के सांस्कृतिक केन्द्र में प्रशिक्षक के तौर पर कार्यरत डा.आकांक्षा श्रीवास्तव ने पत्रकार वार्ता में बताया कि संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार और त्रिपुरारी महाराज के कथक वाचन शैली नृत्य मण्डल के सहयोग से हो रही है। मंच पर कुल 15 कलाकारों द्वारा कथक कथा वाचन शैली की यह नृत्य प्रस्तुति कथक का नया आयाम प्रस्तुत करेगी। प्रस्तुति में रचनाकार डा.योगेश प्रवीन मुख्यअतिथि होंगे।
इस नृत्य नाटिका में रामायण के उत्तरकाण्ड के चौरानवें सर्ग पर आधारित एक प्रमुख, अविस्मरणीय एवं महत्वपूर्ण प्रसंग लव कुश द्वारा रामायण काव्य गान को लिया गया है। यहां मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की जीवन गाथा काव्य व नर्तन के रूप में मिलती है। यहीं दोनों सुकुमारों ने अपने छिने हुये अधिकारों को पुनः प्राप्त किया। इसी प्रसंग को कथक कथावाचन शैली के अन्तर्गत प्रस्तुत करने का प्रयास है। पारम्परिक रूप से पीढ़ियों से जिन समुदायों द्वारा इस कथा वाचन शैली को किया जाता रहा है, उन्हीं लोक कलाकारों एवं लखनऊ के प्रतिभावान युवा नृत्यांगनाओं के साथ इस प्रस्तुति को नृत्य कोई सुन्दर व सहज माध्यम से संजोया गया है।
इसकी कथा लोकरंजन में मात्र मनोरंजन की दृष्टि से नहीं देखी जाती वरन् यह हमारे समाज में आदर्श भी स्थापित करती है। डा.आकांक्षा ने बताया कि इसकी गूढ़ता इसके मात्र लेखन में ही नहीं वरन् इसके दर्शन में भी है। इसी कारण इस प्रसंग को नृत्य व संगीत के माध्यम से दिखाना मेरे लिये एक नवीन हृदयस्पर्शी कार्य है। इसको मैं एक नये दृष्टिकोण से दर्शकों के समक्ष प्रस्तुत करने की इच्छुक हूँ। भारतीय सांस्कृतिक सम्बंध परिषद की सूची में पैनलबद्ध ओर राष्ट्रपति भवन में 2007 में कथक प्रस्तुति दे चुकी लखनऊ कथक घराने के गुरु पण्डित अर्जुन मिश्र की शिष्या आकांक्षा अबतक लगभग सवा सौ एकल नृत्य प्रस्तुतियां दे चुकी हैं। आकांक्षा ने शक्ति, तालचक्र, सीता स्वयंवर, कथक स्वरूप, होली, दरबार ए सलामी, सिद्धार्थ, माखन चारी, मोहन माला, चित्रांगदा, इमोशन्स, तालप्रवेश, अस्मिता, माटी के रंग, मां एक ममतामयी सागर जैसी कई नृत्य नाटिका व संरचनाओं में कोरियोग्राफी और निर्देशन देकर सराहना बटोरी है। अम्बाला, सहारनपुर सहित कई जगह कथक कार्यशालाओं का संचालन कर चुकी आकांक्षा ने इंदिरा कला विश्वविद्यालय खैरागढ़ से विषय में इसी वर्ष पीएचडी उपाधि हासिल की है। राज्य व राष्ट्रीय स्तर की अनेक प्रतियोगिताओं में प्रथम रही अवध डिग्री कालेज की आर्ट ग्रेजुएट आकांक्षा ने भातखण्डे संगीत महाविद्यालय (अब विवि) से निपुण, प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद से भी प्रवीण उपाधि हासिल की है।

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