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राजनीति की प्रयोगशाला बनी शोहरतगढ़ विधानसभा सीट, भाजपा के बाद अब सपा ने भी सहयोगी दल पर लगाया दांव

सिद्धार्थनगर। सिद्धार्थनगर जिले के शोहरतगढ़ विधानसभा क्षेत्र राजनीति दलों की प्रयोगशाला बनती जा रही है। पिछले चुनाव से शुरू हुआ यह सिलसिला इस बार के चुनाव में भी जारी रहा। भाजपा के बाद सपा भी इस दौड़ में शामिल हो गई। दोनों पार्टियों ने टिकट की चाह रखने वाले अपने नेताओं को दरकिनार कर इस सीट से सहयोगी दल के प्रत्याशियों पर दांव लगाना उचित समझा।
पिछली बार की तरह इस चुनाव में भी भाजपा ने शोहरतगढ़ सीट को अपने सहयोगी अपना दल एस के खाते में डाल दिया तो वहीं सपा भी उसी राह पर चलती हुई नजर आ रही है। टिकटों के लिए पार्टी नेताओं में मची होड़ को नजरअंदाज कर सपा ने यह सीट अपने सहयोगी दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को दे दिया है।
शोहरतगढ़ विधानसभा क्षेत्र में भाजपा और सपा के दावेदारों के बीच टिकटों के लिए मचे घमासान पर विराम लग गया है। भाजपा ने पिछले चुनाव की तरह एक बार फिर अपने सहयोगी अपना दल एस के प्रत्याशी को यहां से चुनाव लड़ाने का फैसला किया। भाजपा का यह प्रयोग वर्ष 2012 में सफल भी हुआ था और अपना दल एस के चौधरी अमर सिंह चुनाव जीतने में सफल हुए थे। अमर सिंह के सपा में जाने के बाद स्थानीय भाजपा नेताओं में टिकट के लिए अंतिम समय तक होड़ मची रही।
बावजूद इसके सारे दावों को दरकिनार करते हुए भाजपा ने पुराने इतिहास को दोहराने का निर्णय लिया और यह सीट एक बार फिर अपने सहयोगी अपना दल एस को दे दी। अपना दल एस ने विनय वर्मा को प्रत्याशी बनाया और नामांकन के आखिरी दिन उन्होंने पर्चा दाखिल किया। विनय वर्मा के पर्चा दाखिले के बाद शोहरतगढ़ में भाजपा की रणनीति पूरी तरह से स्पष्ट हो गई और पिछले एक पखवारे से टिकट के लिए चल रही सारी कायासबाजियों पर विराम लग गया।
वहीं दूसरी ओर सपा ने भी नया प्रयोग करते हुए यह सीट सहयोगी दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के लिए छोड़ दी। सुभासपा की ओर से प्रेमचंद निषाद ने पर्चा दखिल किया है। हालांकि, आदर्श आचार संहिता लगने के साथ ही शोहरतगढ़ मेें सपा के टिकट को लेकर कई मजबूत दावेदारों के बीच पेंच उलझा हुआ था। टिकट की चाह में पार्टी नेता अंत समय तक पूरी तरह से लगे रहे।
अपना दल एस छोड़कर सपा का दामन थामने वाले मौजूदा विधायक चौधरी अमर सिंह, पिछला चुनाव लड़ चुके उग्रसेन सिंह और जमील सिद्दीकी का नाम टिकटों की रेस में सबसे आगे रहा। टिकट को लेकर इस खींचतान को शांत करने के लिए पार्टी आलाकमान ने अमर सिंह को बांसी से टिकट दे दिया। बावजूद इसके गतिरोध नहीं थमा और अमर सिंह ने बांसी से चुनाव न लड़ने का फैसला करते हुए 10 फरवरी को शोहरतगढ़ से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में पर्चा दाखिल कर दिया। मौजूदा विधायक के इस निर्णय से शोहरतगढ़ में सपा के टिकट को लेकर जारी खींचतान की गुत्थी सुलझने के बजाए और भी उलझ गई। बंासी की रिक्त हुई सीट से पार्टी ने अंत समय में निर्णय लेते हुए मोनू दूबे को प्रत्याशी बनाकर वहां की स्थिति संभालने को कोशिश की, जबकि शोहरतगढ़ को लेकर ऊहापोह की स्थिति 10 फरवरी तक कायम रही। नामांकन के आखिरी दिन सपा ने सारे कयासों पर विराम लगाते हुए इस सीट से पर्चा दाखिल कर चुके सुभासपा प्रत्याशी प्रेमचंद निषाद के नाम पर मुहर लगा दिया।
जिसके बाद सारी चर्चाओं पर विराम लग गया और स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट हो गई कि इस बार सपा शोहरतगढ़ सीट से अपने सहयोगी को चुनाव लड़वाएगी। फिलहाल भाजपा ने जहां दूसरी बार, वहीं सपा ने पहली बार प्रयोग करते हुए इस सीट पर अपने सहयोगी दल को चुनाव लड़ाने का फैसला किया है। भाजपा और सपा का यह प्रयोग इस बार के विधानसभा चुनाव में कितना कारगर साबित होगा, यह देखना दिलचस्प होगा।
गठबंधन की राजनीति ने बदली शोहरतगढ़ की तस्वीर
शोहरतगढ़ विधानसभा की बात करें तो यहां वर्ष 1974 से लेकर वर्ष 2017 तक हुए कुल बारह विधानसभा चुनावों में छह बार कांग्रेस जीतने में सफल रही है, जबकि तीन बार भाजपा और एक बार उसके सहयोगी अपना दल एस के खाते में यह सीट गई है। जनता पार्टी और सपा एक-एक बार यहां से कामयाब रही। आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि शोहरतगढ़ में कांग्रेस, भाजपा और सपा के साथ बसपा जैसे प्रमुख दलों के चुनाव लड़ने और जीतने-हारने का इतिहास रहा है।
गठबंधन की राजनीति के दौर में पुरानी राजनीतिक परिपाटी बदलती जा रही है। क्षेत्र में पहले अपना दल एस और अब उसके बाद सुभासपा की मजबूत दखल देखी जा रही है। वर्ष 2017 में पहली बार भाजपा ने अपने सहयोगी अपना दल एस को यह सीट दी और कामयाब रही। जिसके बाद यहां की राजनीति में अपना दल एस की इंट्री हुई। इस बार के चुनाव में सपा द्वारा अपने सहयोगी दल के लिए सीट छोड़ने के बाद अब शोहरतगढ़ में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की भी उपस्थिति दर्ज हो गई है।

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