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जमानत अर्जी दाखिल करना प्रत्येक बंदी का मौलिक अधिकार

प्रयागराज। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक मामले में कहा है कि कानून के मुताबिक और बगैर विलंब किए सक्षम अदालत के समक्ष जमानत के लिए अर्जी दाखिल करना प्रत्येक बंदी का मौलिक अधिकार है। उत्तर प्रदेश के जौनपुर में हत्या के आरोपी अनिल गौर नाम के एक व्यक्ति द्वारा दायर जमानत की अर्जी पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति अजय भनोट ने यह टिप्पणी की। याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि यद्यपि उसका मुवक्किल प्राथमिकी में नामजद नहीं था, फिर भी वह छह दिसंबर 2017 से जेल में निरुद्ध है। याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं है और हत्या करने की उसकी कोई मंशा नहीं थी और यह परिस्थितिजन्य साक्ष्य का मामला है। सोमवार को जमानत मंजूर करते हुए अदालत ने कहा, ‘‘इस मामले में न्याय मिलने में विफलता का कारण गरीबी, सामाजिक बहिष्कार, विधिक निरक्षरता और कानूनी सहायता नहीं मिलना है। अदालतों का भी यह सुनिश्चित करने का दायित्व है कि कानूनी सहायता, आपराधिक मुकदमों में पेश होने वाले बंदियों की पहुंच में हो। अदालतें मूक दर्शक नहीं बनी रह सकतीं। मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता आर्थिक रूप से वंचित तबके से है और जेल जाने के बाद उसके करीबी लोगों ने उससे मुंह मोड़ लिया। वह जेल जाने के एक साल बाद निचली अदालत में जमानत की अर्जी लगा सका जिसे चार जून, 2019 को खारिज कर दिया गया। इसके तीन साल बाद वह उच्च न्यायालय में जमानत याचिका दाखिल कर सका। अदालत ने कहा कि ढेरों ऐसे मामले हैं जहां बंदियों को कानूनी सहायता नहीं मिलने की वजह से अनुचित विलंब के बाद जमानत की अर्जी दाखिल की गयी।

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