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इमाम-ए- हुसैन के रौजे की हुबहू कांपी है चांदी और तांबे से बनी जरीह

नवाब आसिफुद्दौला के कमांडर हाजी अली शाह के इमामबाड़े में है चांदी और तांबे का

अजीजुद्दीन सिद्दीकी
मनकापुर गोंडा। नवाब आसिफुद्दौला के कमांडर हाजी अली शाह द्वारा वर्ष 1176 में रिज्वी नगर बौगड़ा में बनाए गये इमामबाड़े में लकड़ी के ही नहीं, बल्कि चांदी और तांबे का अलम भी है। नवाब के कमांडर वर्ष 1174 मे ईरान के शब्दवार निशापुर से आताताई  हलाकू के कहर से हिंदुस्तान आए थे। उन्हें नवाब आसिफुद्दौला ने अपने फौज का कमांडर बना लिया। उस समय वजीरगंज को नवाब ने अपनी राजधानी बना रखी थी।  कमांडरी मिलते ही नवाब के वजीर अमजद अली को सीरिया कर्बला भेजा। वापस आकर इमाम-ए- हुसैन के रौजे की हुबहू जरीह बनाई।मुहर्रम माह में हर साल कर्बला के शहीदों को याद किया जाता है। इमामबाड़ों और घरों पर मजलिसें होती हैं। अजादार अलम और ताजियों का जुलूस निकालते हैं। जंजीरों और छूरियों का मातम करते हैं, जिससे वे लहुलुहान भी हो जाते हैं। वजीरगंज के बौगड़ा में नवाब आसिफुद्दौला के कमांडर हाजी अली शाह के खानदान के लोग भी लंबे समय से कर्बला के शहीदों की याद में अजादारी करते आ रहे हैं। यहां तीन इमाम बाड़े हैं। आजादी से पहले इमामबाड़ा नवाब के राजधानी बारादरी मे ही नवाब के परिवार के साथ ही कमांडर के खानदान के लोग अजादारी करते रहे लेकिन, बारादरी खंडहर में तब्दील हो जाने के बाद बौगड़ा गांव में इमामबाड़ा बनाया गया। इसके अलावा वर्ष 1952 में गांव में मस्जिद के पास बड़ा इमामबाड़ा बना। मौजूदा समय में मुहर्रम माह चल रहा है और इमामबाड़ों में मजलिस हो रही है। लेकिन कोरोना के चलते पांच से छह लोग ही शामिल हो पा रहे हैं। पहले वहां अजादारों की भीड़ लगी रहती थी।

दरगाह हजरत अब्बास के स्ट्रांग रुम में रखे जाते हैं अलम

वरिष्ट पत्रकार सुल्तान रजा रिज्वी बताते हैं कि इमामबाड़े में पांच सौ अलम हैं। बड़े इमामबाड़ा में चांदी के अलम हैं। तीनों इमामबाड़ों के अलम दरगाह हजरत अब्बास अलैहिस्सलाम के स्ट्रांग रुम में रखे जाते हैं। इनकी सुरक्षा गांव के लोग ही करते हैं। मुहर्रम माह में ही अलम बाहर निकालते हैं। बड़े इमामबाड़े में चांदी की बनी जरीह है, जो हजरत इमाम-ए- हुसैन के रौजे की कांपी है। इस जरीह को बनवाने से पहले नवाब ने अपने वजीर अमजद अली को कर्बला भेजा था।

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