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भाई-बहन के प्यार और विश्वास से सजा रक्षाबंधन पर्व हर्षोल्लास से मनाया गया. बहनों ने भाई के कलाई में बांधी राखी।

गोंडा। कोविड-19 को मध्य नजर रखते हुए जिला गोंडा में शासन के आदेशों का पालन करते हुए भाई बहनों का यह त्यौहार लोगों ने हर्षोल्लास के साथ मनाया। इस त्योहार के आने से पहले ही इसकी खुशी हर भाई-बहन के चेहरे पर साफ नजर आने लगती है. इस दिन बहनें अपने प्यारे भाई को टीका करती हैं और उसकी कलाई पर राखी बांधती हैं.,वहीं, भाई अपनी बहनों को उनकी रक्षा का वचन और उपहार देते हैं. इस दिन हर तरफ खुशनुमा माहौल रहता हैं. ऐसे ही हम खुशी के साथ सालों से श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन का त्योहार मनाते आ रहे हैं, लेकिन क्या आप ये जानते है कि आखिर क्यों या किस कारण से रक्षाबंधन मनाया जाने लगा और इस दिन का क्या महत्व है. दरअसल, हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रक्षाबंधन मनाने के पीछे कुछ कथाएं हैं.
लक्ष्मी-राजा बलि की कथा
कथा भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ी है. भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर असुरों के राजा बलि से तीन पग भूमि का दान मांगा. दानवीर बलि इसके लिए सहज राजी हो गया. वामन ने पहले ही पग में धरती नाप ली तो बलि समझ गया कि ये वामन स्वयं भगवान विष्णु ही हैं. बलि ने विनय से भगवान विष्णु को प्रणाम किया और अगला पग रखने के लिए अपने शीश को प्रस्तुत किया. विष्णु भगवान बलि पर प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को कहा. असुर राज बलि ने वरदान में उनसे अपने द्वार पर ही खड़े रहने का वर मांग लिया. इस प्रकार भगवान विष्णु अपने ही वरदान में फंस गए. तब माता लक्ष्मी ने नारद मुनि की सलाह पर असुर राज बलि को राखी बांधी और उपहार के रूप में भगवान विष्णु को मांग लिया.
द्रौपदी- श्रीकृष्ण की कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत में शिशुपाल के साथ युद्ध के दौरान श्री कृष्ण जी की तर्जनी उंगली कट गई थी. यह देखते ही द्रोपदी कृष्ण जी के पास दौड़कर पहुंची और अपनी साड़ी से एक टुकड़ा फाड़कर उनकी उंगली पर पट्टी बांध दी. इस दिन श्रावण पूर्णिमा थी. इसके बदले में कृष्ण जी ने चीर हरण के समय द्रोपदी की रक्षा की थी.।

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