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व्हाट्सऐप के माध्यम से पत्रकारिता, विश्वसनीयता पर लग रहा प्रश्नचिन्ह, एंड्रॉयड मोबाइल ने बना दिया हर तीन में एक व्यक्ति को पत्रकार

निघासन खीरी। पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ भी कहा जाता है। पत्रकारिता ने लोकतंत्र में यह महत्त्वपूर्ण स्थान अपने आप नहीं हासिल किया है बल्कि सामाजिक सरोकारों के प्रति पत्रकारिता के दायित्वों के महत्त्व को देखते हुए समाज ने दर्जा दिया है। कोई भी लोकतंत्र तभी सशक्त है जब पत्रकारिता सामाजिक सरोकारों के प्रति अपनी सार्थक भूमिका निभाती रहे। सार्थक पत्रकारिता का उद्देश्य ही यह होना चाहिए कि वह प्रशासन और समाज के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी की भूमिका निभाये। पत्रकारिता के इतिहास पर नजर डालें तो स्वतंत्रता के पूर्व पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्ति का लक्ष्य था। स्वतंत्रता के लिए चले आंदोलन और स्वाधीनता संग्राम में पत्रकारिता ने अहम और सार्थक भूमिका निभाई। उस दौर में पत्रकारिता ने पूरे देश को एकता के सूत्र में पिरोने के साथ-साथ पूरे समाज को स्वाधीनता की प्राप्ति के लक्ष्य से जोड़े रखा। समय के साथ-साथ संचार तंत्रों ने जितनी तेजी से रफ्तार पकड़ी उतनी ही तेजी से पत्रकारिता भी बहुआयामी और अनंत हो चली। वर्तमान समय में किसी भी घटना की जानकारी पलक झपकते ही उपलब्ध हो जाती है। जिसका नतीजा है कि मीडिया अब बहुत सशक्त, स्वतंत्र और प्रभावकारी हो गई है। संचार क्रांति तथा सूचना के आधिकार के अलावा आर्थिक उदारीकरण ने पत्रकारिता के चेहरे को पूरी तरह बदलकर रख दिया है। विज्ञापनों से होने वाली अथाह कमाई ने पत्रकारिता को काफी हद तक व्यावसायिक बना दिया है। मीडिया का लक्ष्य आज अधिक से अधिक कमाई का हो चला है। मीडिया के इसी व्यावसायिक दृष्टिकोण का नतीजा है कि उसका ध्यान सामाजिक सरोकारों से भटक गया है। मुद्दों पर आधारित पत्रकारिता समाप्त होकर अब कमाई का पेशा और चाटुकारिता पर आधारित होती जा रही है। जिसका मुख्य कारण संचार के क्षेत्र में आई क्रांति से इंटरनेट की व्यापकता और सार्वजनिक पहुँच के कारण उसका दुष्प्रयोग होना। एंड्रॉयड फोन रखने वाला हर वो व्यक्ति अपने को खुद को पत्रकार समझने लगा है। ऐसा ही कर रहे हैं वहाट्सएपिया पत्रकार जो ‘सोने पर सुहागा’ की कहावत को चरित्रार्थ करते नजर आ रहे हैं। व्हाट्सऐप की शुरुआत के बाद पत्रकारिता के क्षेत्र में ऐसी क्रांति आई कि हर वो व्यक्ति जिसका पत्रकारिता से कोई नाता नहीं है वो भी व्हाट्सऐप न्यूज ग्रुप बनाकर अपने को सबसे बड़ा पत्रकार समझने लगा है और मीडिया कर्मियों, पुलिस अधिकारियों व प्रशासनिक अधिकारियों के नम्बर ढूंढ कर उनको ग्रुप जोड़ कर पत्रकारिता करने लग रहे हैं। इन्हीं ग्रुपों के माध्यम से वहाट्सएपिया पत्रकार पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों के यहाँ अपनी पैठ बना कर लोगों पर रौब गांठने हैं। ये ऐसे लोग हैं जिनका न तो किसी समाचार पत्र/न्यूज चैनल से कोई सरोकार नहीं होता है। इसी वहाट्सएपिया ग्रुपों के चलते पुलिस का सूचना तंत्र कमजोर होने लगा है और पुलिस के तेज तर्रार अधिकारी भी इन्हीं वहाट्सएपिया पत्रकारों के अधीन होने लगे हैं। ये उन पत्रकारों का सिंडिकेट है जिनकी खबरों को समाचार पत्रों से जुड़े पत्रकारों ने भी माध्यम बना लिया है और एक ही स्थान पर बैठ कर अपनी पत्रकारिता की दुकानदारी चमकाते नजर आते हैं। यदा-कदा मीडिया के इस बहुपयोगी साधन पर यदि अंकुश लगाने की बहस छिड़ भी जाती है तो एक दूसरों को सुझावों और शिकायतों तक ही सीमित रहती है। लोकतंत्र के हित में यही है कि जहाँ तक हो सके पत्रकारिता को स्वतंत्र और निर्बाध रहने दिया जाये और पत्रकारिता का अपना हित इसी में है कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग समाज और सामाजिक सरोकारों के प्रति अपने दायित्वों के ईमानदार निवर्हन के लिए करती रहे। ताकि निष्पक्ष पत्रकारिता की साख कलंकित न हो सके।

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