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ऐसे ही मरवाते रहेगे कभी आतंकियो से तो कभी नक्सलियों से

 सरकार को सुधारनी पडेगी पॉलसी, एक्शन लेने को कहते है लेकिन नही होती ठोस कार्यवाही
 मातम के बीच पिता ने कहा सरकार से नही कोई अपील और न ही कोई उम्मीद
कानपुर नगर, | एक पिता के उसके जवान बेटे की मौत का सदमा कितना बडा होता है यह उसे ही मालूम जसपर बीतती है। उसपर भी साहसी पिता का कहना कि यदि उनका पुत्र लडाई में शहीद होता तो उन्हे गर्व होता, लेकिन इस प्रकार से आतंकियो का शिकार होना बहुत दर्द भरा है।  कुपडावा में कल गुरूवार को सुबह सुबह हुए फिदायीय हमले में शहीद हुए कैप्टन आयुष यादव कानपुर के रहने वाले थे। कल जैसे ही उनके घर पर कैप्टन के शहीद होने की सूचना पहुंची वैसे ही घर में कोहराम मच गया। कैप्टन आयुष की मां सरला यादव का रो-रो कर बुरा हाल है। शहीद आयुष के घर सेना के कर्नल दुष्यन्त सिंह भी पहुंचे और आयुष के पिता अरूण कान्त यादव को ढांढस बंधाया। अरूण कांत भी यू0पी0 पुलिस में इंस्पेक्टर है, वह इससमय चित्रकूट में तैनात है। पिता को भी बेटे के शहीद होने का ऐसा सदमा लगा है कि उनके मुंह से कुछ भी नही निकल रहा। उन्होने बताया कि बुधवार की शाम को फोन पर आयुष से बात हुई थी और उसने हम लोगों को कश्मीर घूमने के लिए बुलाया था। कहा जब मैने कहा कि वहां पर पत्थर चल रहे है तो उसने हसते हुए कहा कि मै कुपवाडा कैम्प में हू, आप लोग क्यो चिंता करते हो। पिता ने बताया कि आयुष की एक बडी बहन है, जिसकी बीती 5 फरवरी को शादी हुई है। बताया कि आयुष पिछली बार फरवरी में शादी के अवसर पर छुटटी लेकर घर आया था। आयुष अपने परिवार का इकलोता बेटा था। बेटे की शहादत की सूचना मिलते ही कोहराम मच गया। डिफेंस कॉलोनी निवासी ही नही बल्कि चकेरी क्षेत्र के सैकडों लोग गमजदा परिवार का ढांढस बंधाने पहुंच गए। बताते चले कि जम्मू कश्मीर के कुपवाडा में गुरूवार की सुबह चार बजे पंजगाम में सेना कैंप पर फिदायीन हमला हुआ था और सेना ने इस हमले में अपने तीन बहादुरों को खो दिया। सेना के प्रवक्ता कर्नल राजेष कालिया की ओर से इस हमले के बारे में जानकारी दी गयी।
सरकार से नही कोई उम्मीद
गमगीन पिता ने बताया कि आयुष की पहली पोस्टिंग देहरादून में हुई थी, वहां से श्रीनगर और अब श्रीनगर से गुरदासपुर पोस्टिंग हो गयी थी। जुलाई में उसे गुरदासपुर जाना था, बताया आयुष बचपन से ही पढने में बहुत अच्छा था और आर्मी में जाना चाहता था। तीन-चार साल पहले ही आयुष की नौकरी लगी थी।
कुछ वर्ष पहले ही हुए थे कमीशंड
इस हमले में कैप्टन आयुष यादव शहीद हुए, जिनकी उम्र महज 26 वर्ष थी और वह कुछ वर्षो पहले ही सेना में कमीशंड हुए थे। कैप्टन आयुष के साथ एक जूनिय कमांडिग ऑफिसर और एक जवान भी शहीद हो गया। कैप्टन आयुष इस वर्ष किसी आतंकी हमले में शहीद होने वाले इंडियन आर्मी के दूसरे ऑफिसर है। इससे पहले फरवरी में मेजर सतीश दाहिया इंदवाडा में हुए एक एनकांउटर में शहीद हो गये थे। इसके अलावा एक और ऑफिसर मेजर अमरदीप सिंह चहल 23 फरवी को जम्मू कश्मीर के शोपियां में इंडियन आर्मी की पेट्रोलिंग पार्टी पर एक आतंकी हमले में बुरी तरह जख्मी हो गये थे। पिछले वर्ष इंडियन आर्मी ने अपने कई युवा ऑफीसर्स को आतंकी हमलेां में गंवा दिया था। शुरूआत फरवरी 2016 में पंपोर आतंकी हमले से हुई थी, जिसमें कैप्टन तुषार महाजन और कैप्टन पवन बेनीवाल शहीद हुए थे। वहीं इस वर्ष का अंत नगरोटा में हुए आतंकी हमले के साथ हुआ था। इस हमले में इंडियन आर्मी ने अपने पांच ऑफिसर्स की शहादत थी।

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