विरेन्द्र प्रजापति
मऊ-मधुबन,जैसे जैसे लोकसभा चुनाव की अंतिम तिथी नजदीक आती जा रही है, मौसम की तपिश के साथ ही चुनावी पारा चढ़ने लगा है।जिन्हें एयरकंडीशन गाड़ियों में रहने चलने की आदत सी बन गयी है।वो भी इस चिलचिलाती धुप में अपने अपने पार्टी के नेताओं को जिताने के लिए पसीना बहाने में लगे हुए है।हालांकि अभी बीजेपी के ही नेताओं की बड़ी रैलियां हो पाई है अन्य पार्टियों के बड़े नेता अभी रैली करने में पिछड़ से गए है।लोगों का रुझान भी घोषित प्रत्याशियों को बेचैन किये है। शहीदों की स्मृति में बना कस्बा मधुबन आजादी की लड़ाई लड़ने और शहादत देने की वजह से अपनी पहचान को मोहताज नही है।संसाधनो के अभाव के चलते मधुबन की तरक्की फ़िलहाल सन्तोषजनक नही है।यहां के लोगों ने लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं को संसद में भेजने का काम किया है।लेकिन क्षेत्रवासियों को नेताओं के छल के अलावा कुछ भी हासिल नही हुआ।क्षेत्रवासी इसे अपनी बदकिस्मती ही मानते है।कांग्रेस से बालकृष्ण चौहान,बीजेपी के हरिनारायण राजभर इस चुनाव में दूसरी बार सांसद चुने जाने के लिए अपना दम लगा रहे है तो सीपीआई के अतुल कुमार सिंह अंजान भी चौथी बार लोकसभा में जाने के लिए पुरे दमखम से अपनी किस्मत आजमा रहे है।हालाँकि अभी श्री अंजान को लोकसभा में जाने का सौभाग्य नही मिला है।देखा जाय तो मुख्य लड़ाई गठबंधन और बीजेपी के बीच ही माना जा रहा है जिसमें बालकृष्ण मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में लगे है।अब जबकि चुनाव में कुछ ही दिन बचे है चुनाव प्रचार में बीजेपी को छोड़ दे तो अन्य पार्टियों का प्रचार बहुत धीमा है। बीजेपी के तरफ से अब तक उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के अलावा क्षेत्रीय विधायक व वन मंत्री दारा सिंह चौहान,अनिल राजभर सहित स्वामी प्रसाद मौर्य ने मधुबन में सभा कर हरिनारायण के लिए वोट माँगा।इसके अलावा प्रत्याशी हरिनारायण राजभर द्वारा भी क्षेत्र के विभिन्न इलाकों में जाकर वोट माँगा जा रहा है।मजे की बात यह है कि गठबंधन के प्रत्याशी का अभी तक कम ही लोगों को दीदार हुआ होगा।बताते है कि उनके ऊपर मुकदमा दर्ज होने के कारण क्षेत्र से नदारद है।उनकी जगह कार्यकर्ताओं ने सभांल रखा है।क्षेत्र में अभी तक गठबंधन और कांग्रेस के प्रत्याशी की तरफ से कोई बड़ा नेता प्रचार में नही दिखाई दिया है।ऐसे में चुनाव का गड़ित जनता अपने अपने हिसाब से लगा रही है।खामोश वोटर 19 तारीख का इंतजार कर रहा है।वोटों के ध्रुवीकरण से नेता परेशान है।ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि मोदी लहर में हरिनारायण को दुबारा लोकसभा में जाने का मौका मिल सकता है या गठबंधन का प्रत्याशी जीतेगा अभी कहना कठिन जरूर है लेकिन नेताओं की सक्रियता और जातीय समीकरण को देखते हुए चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा,जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा यह मतगणना के बाद ही पता चलेगा।लेकिन अभी सारे प्रत्याशी अपनी अपनी जीत का दावा करने से नही चूक रहे है।यह जनता है सब जानती है।क्रमशःशेष अगले अंक में।