1981 से 89 तक का बाकी है किराया
लखनऊ। हुकूमत में रहते राजनीतिक दल अपनी रैलियों आदि के लिए सरकारी सेवा का इस्तेमाल कर किराया व भाड़ा अदा करने में आनाकानी कर वर्षों तक केस लड़ते हैं। ऐसा ही मामला यूपी कांग्रेस का है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने यूपी कांग्रेस को तीन महीने में उप्र राज्य सड़क परिवहन निगम यूपीएसआरटीसी को बकाये का दो करोड़ 66 लाख रुपये अदा करने का आदेश दिया। न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति मनीष कुमार की खंडपीठ ने वर्ष 1998 में दाखिल यूपी कांग्रेस की याचिका पर उसे बकाए की तिथि से पांच फीसदी ब्याज देने का भी आदेश दिया।याचिकाकर्ता यूपी कांग्रेस ने लखनऊ के सदर तहसीलदार की 10 नवंबर 1998 को जारी वसूली नोटिस को चुनौती दी थी। वसूली की कार्यवाही परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक के कहने पर शुरू हुई थी। उनका दावा था कि याची पर 2,68,29,879 रुपये बकाया है। यह धनराशि प्रदेश में कांग्रेस के सत्ता में रहने के दौरान परिवहन निगम से 1981 से 1989 के बीच ली गईं बसों व टैक्सियों का बिल है। जिन्हें तत्कालीन सत्ताधारी दल के मुख्यमंत्री व संबंधित मंत्रियों के निर्देशों पर उपलब्ध कराया था। याची ने दलील दी कि 1972 के कानून के तहत इस धनराशि की वसूली नहीं की जा सकती है। इसका विरोध करते हुए परिवहन निगम के वकील ने कहा कि यह धनराशि जनता का धन है, जिसकी वसूली हो सकती है। दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि यह ऐसा केस है, जिसमें राजनीतिक दल ने अपने प्रभाव के जरिये राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जनसंपत्ति का इस्तेमाल किया और बिल भेजने पर भुगतान की उपेक्षा की।पहले का बिल बकाया होने के बावजूद सत्ता में रहते हुए परिवहन निगम को भुगतान किए बिना सेवाएं लीं। ऐसे में सरकार बदलने पर राजनीतिक विद्वेषवश गलत वसूली का तर्क देकर बिलों के भुगतान की छूट नहीं दी जा सकती है। मामले में जनकोष शामिल होने से याची वसूली की धनराशि अदा करने के लिए बाध्य है। कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ यूपी कांग्रेस को तीन माह में बकाया धनराशि अदा करने का आदेश देते हुए याचिका का निस्तारण कर दिया।