तीन तलाक पर संगोष्ठी का आयोजन हुआ
लखनऊ। महिलाओं के खिलाफ हिंसा के उन्मूलन के अंतर्राष्ट्रीय दिवस की पूर्व संध्या पर, आली जो कि महिला मानवाधिकारों के संरक्षण तथा उनके हित में कार्यरत एक संगठन के रूप में पिछले 19 वर्षों से काम कर रही है, ने एक प्रेस सम्मेलन के माध्यम से सरकार द्वारा एक बैठक में दिए गए तीन तलाक को दंडनीय अपराध क़रारकरने की ख़बर पर चिंता जतायी व इस बात-चीत के माध्यम से महिलाओं के शादी में अधिकारों की वर्तमान स्थिति और न्याय की पहुंच पर चर्चा की ।
सुप्रीम कोर्ट के तीन तलाक़ को गैर संवैधानिक करार करने के तीन महीने बाद यह ख़बर छपी की केंद्र सरकार एक बैठक में दिए गए त्वरित तीन तलाक़ को दंडनीय अपराध बनानेकी दिशा में कदम उठाने जा रही है । अगस्त में फैसला सुनते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने पूछा था कि जब इस्लामिक देशों ने सदियों पुरानी प्रथा को खत्म कर दिया तो भारत ऐसा नहींकर सका। संसद के शीतकालीन सत्र में तीन तलाक़ को एक दण्डनिए अपराध बनाने के लिए एक विधेयक लाने की संभावना है । आली का अनुभव दर्शाते है कि जिन महिलाओं को एक में त्वरित तीन तलाक़ या जबरन उनको अपने वैवाहिक घरों से बाहर कर दिया गया, वे अपने बुनियादी अधिकारों ka संरक्षणचाहती हैं जैसे कि रहने के लिए सुरक्षित स्थान, आर्थिक स्थिरता और समाज द्वारा कलंकित या बहिष्कृत न किये जाने की चाह रखती है । 2017 में भी, महिलाओं को कई सामाजिकऔर प्रणालीगत बाधाओं का सामना करना पड़ता है, पुलिस व्यवस्था तक पहुँच में और पुलिस से समर्थन लेने पर उनको नीची नज़रों से देखा जाता है । हमारे अनुसार, पुरुषों द्वारा‘एक बैठक में त्वरित तीन तलाक’ के उच्चारण को रोकने के लिए आपराधिक प्रावधान एक व्यवहारिक प्रस्ताव नहीं है क्योंकि यह न केवल आपराधिक न्याय प्रणाली पर बोझबढ़ाएगा बल्कि उन प्रताड़ित महिलाओं के लिए सामाजिक मुश्किलें भी बढ़ाएगा जिनको उनके पतियों द्वारा छोड़ दिया गया है । हमारे पास 498 ए में एक स्पष्ट उदाहरण है जहाँ किसमाज का एक बड़ा तबका इसे ग़ैर इस्तेमाल के नज़रिया से देख रहा है । यह महिलाओं की न्याय तक पहुंच और हमने गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार और हिंसा एवं भेदभावमुक्त जीने के अधिकार के विपरीत ही हो गया है । पिछले 5 सालों में, आली से, 368 महिलाओं ने, जिनको उनके पतियों द्वारा छोड़ दिया गया और वैवाहिक घर से जबरन निकाल दिया गया, क़ानूनी सहायता ली है । इनमें से 273महिलाएँ हिन्दू हैं और 95 मुसलमान । यह अकड़ें स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि समस्या पत्नि को छोड़ने या तलक के तरीक़े में नहीं है, और यह भी कि समस्या का सामना सिर्फ मुसलमान महिलाएँ नहीं कर रही – बल्कि इसमें कि समाज में महिलाओं को कैसे सामान्य रूप से आसानी से छोड़ दिया जा सकता है, और द्वितीय श्रेणी की नागरिकों के रूप में देखा जाता है ।की महिलाओं के अधिकारों को सुनिश्चहित व संरक्षित करना सरकार की प्रायऑरिटी नहीं है ।एक बैठक में त्वरित तीन तलाक की क़ानूनी स्थति, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद स्पष्ट है – यह कानून के नजर में गलत माना गया है इसलिए तलाक की यह प्रक्रिया अमान्य है । इसतरह से किसी भी तलाक का कोई कानूनी प्रभाव नहीं होना चाहिए । मतलब यदि किसी पति ने अपनी पत्नी को एक बैठक में त्वरित तलाक देकर घर से बाहर निकाल दिया है तो वह न केवल अभी भी शादीशुदा होने के सभी अधिकार रखती है, बल्कि घरेलू हिंसा के खिलाफ विभिन्न अदालतों में इंसाफ की मांग कर सकती है।