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7 साल बाद फिर से दिसंबर में आ रहा पसीना,

इटावा रहा सबसे ठंडा, मौसम के मिजाज से वैज्ञानिक भी हैरान
लखनऊ। कम होती हरियालीॉ नंगे होते पहाड़ों और बढ़ते प्रदूषण का असर अब मौसम पर दिखने लगा है। पहाड़ों से शुरू हुआ प्रकृति का गुस्सा अब मैदानी क्षेत्र में फैलने लगा है। दिसंबर में जहां लोग गर्म कपड़ों में लिपटकर कोहरेदृपाले से बचाव करते नजर आते थेॉ वहीं इस बार पसीना,पसीना हो रहे हैं। पंखा चलाकर गर्मी से राहत पाने का प्रयास किया जा रहा है। आमतौर पर दिसम्बर की शुरुआत में ही बढ़िया ठंडक होने लगती थी, लेकिन इस सीजन में अधिकतम तापमान 26 डिग्री से कम नहीं हो रहा है। ऐसा मौसम 2015 में भी रहा था। आंचलिक मौसम केन्द्र के मुताबिक इस बार पहाड़ों पर कम बर्फबारी होना और बारिश का न होना जैसे कारणों से सर्दी नहीं हो रही है। कम होती जा रही हरियाली सहित मानव जनित अन्य कारणों से मौसम चक्र बिगड़ रहा है। मौसम की ऐसी हालत की उम्मीद किसी को नहीं थी। यह पर्यावरण के लिए भी बड़ा खतरा बनता जा रहा है। ऐसे मौसम से लोगों की सेहत और फसलों के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक फसलों की पैदावार का आधार मौसम है। तापमान कम न होने से शरदकालीन फसलों की पैदावार में भारी गिरावट आएगी। अभी तक वेस्टर्न डिटवेंर्स के चलते सर्दी के थोड़ा लेट होने का पूर्वानुमान जारी करने वाले मौसम विज्ञानी भी अब बेचौनी महसूस करने लगे हैं। तापमान में गिरावट न आने से कोहरेदृपाले की शुरुआत नहीं हो पा रही है। मौसम विशेषज्ञ हुए हैरान-परेशान मौसम के तेवरों से अब विशेषज्ञ भी परेशान हो गए हैं। आंचलिक मौसम केन्द्र के प्रभाराी निदेशक दानिश आजादा अंसारी ने दिसम्बरॉ जनवरी और फरवरी में होने वाली सर्दी का अनुमान जारी करते हुए बताया कि इस सामान्य से कम रहेगी सर्दी।उन्होंने बताया कि आमतौर पर नवम्बर के अंत में या दिसम्बर की शुरुआत में बारिश हो जाती थी। बारिश के तत्काल बाद से सर्दी होने लगती है। निदेशक ने सर्दी की कमी का दूसरा कारण पहाड़ों पर बर्फबारी का कम होना भी बताते हैं। पहाड़ों पर अधिक बर्फबारी होने के बाद उससे टकराकर आने वाली हवाए ही मैदानी इलाकों में सर्दी बढ़ाती है। लेकिन ऐसा नहीं देखने को मिल रहा है।

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