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पपीता किसानों की आय का अच्छा साधन तथा गंभीर बीमारियों में भी लाभकारी। डॉ सत्येंद्र

संवाददाता राज इटौंजा
अवध की आवाज समाचार

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ विधानसभा बख्शी का तालाब के क्षेत्रों में फलों की श्रेणी में पपीता एक ऐसा फल है जो 1 वर्ष में किसानों के खेत में तैयार हो जाता है और पूरे वर्ष पाया जाता है। पपीता पोषक तत्वों का पावर हाउस होता है इसके फल खाने में बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं तथा यह बहुत ही स्वास्थ्यवर्धक होता है। इस के पूरे भाग जिसमें प्रमुख रुप से पत्तियां, छाल, गुदा बीज में औषधि गुण प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। पपीता में तीन प्रमुख विटामिंस ए, सी और ई प्रचुर मात्रा में पाई जाती है, तथा पपीता मैग्नीशियम एवं पोटाश का अच्छा स्रोत है, इसमें विटामिन बी, पेनंटाथोनिक अम्ल, फोलेट तथा फाइबर भी अधिक मात्रा में पाया जाता है।
पपीते में अन्य फलों की अपेक्षा एंजाइम बहुत अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं। इसमें प्रोटियॉलिटिक एंजाइम पपेन, कायमोपपेन अधिक पाए जाते हैं जो लोग मांसाहारी होते हैं मीट के शौकीन होते हैं। उनमें मांस में पाए जाने वाले प्रोटीन को प्रोटियॉलिटिक एंजाइम शीघ्र पाचन का कार्य करता है। शरीर में प्रोटीन के संपूर्ण पाचन का कार्य पपेन एंजाइम बड़ी सरलता से कर देता है। इसमें पाया जाने वाला कायमोपपेन शरीर में रीड की हड्डी में समस्या होने पर यह एंजाइम अच्छा कार्य करता है। ब्रेकफास्ट, लंच एवं डिनर के बाद पपीते का प्रयोग करने से पाचन क्रिया शीघ्र पूर्ण हो जाती है।
पपीते की पत्तियों में औषधि गुण बहुत अधिक मात्रा में पाए जाते हैं यह डेंगू बुखार में काफी प्रभावी होती हैं तथा शरीर में बन रही कैंसर की कोशिकाओं को संपूर्ण नष्ट करने का काम करती हैं इनकी पत्तियों में एंटीमलेरियल, एंटीप्लाज्मोडियल, एंटीवायरल, एंटी बैक्टीरियल एवं एंटी फंगल विशेष औषधिय गुण पाए जाते हैं जिसके कारण इन की पत्तियों का जूस प्रमुख रूप से डेंगू फीवर होने पर लगातार गिर रही प्लेटलेट्स को बढ़ाने का काम करता हैं। पपीते में पाया जाने वाला फोलिक अम्ल हृदयाघात को रोकने में सहायक होता है। शरीर में मस्से, एग्जिमा, टीवी, ट्यूमर, ब्लड प्रेशर प्रजनन संबंधी बीमारियां, आंखों से कम दिखाई देना, हृदय संबंधी बीमारियां तथा अर्थराइटिस में काफी प्रभावी होता है।
वैश्विक महामारी कोविड-19 में पपीता अच्छा एंटी ऑक्सीडेंट होने के कारण पपीता की उपयोगिता काफी बढ़ गई है, जिससे यह अधिक उपयोग में लाया जाने लगा है, इसकी 5 ग्राम हरी पत्ती को पीसकर हल्के गुनगुने पानी में सुबह के समय प्रयोग करने से खांसी कफ से बहुत राहत मिलती है साथ में यह शरीर में ऑक्सीजन के स्तर को भी बढ़ाता है। पपीते के पौधे का पूरा भाग अपने औषधीय गुणों से जाना जाता है। यह एक अच्छा इम्यूनिटी बूस्टर का काम करता है। छोटे बच्चों ने पपीते के फलों को खाने की आदत डालनी चाहिए जिससे उनकी आंखों की रोशनी बढ़ेगी।
प्रदेश में इसकी खेती को बढ़ावा देना अति आवश्यक है, हमारे किसान भाई प्रभावी बिंदुओं को ध्यान में रखकर अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। समय से नर्सरी तैयार करके इस फसल का अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है, नर्सरी तैयार करने से पहले प्रमुख रूप से गाइनोडायोसियस जातियों का चयन कर लेना चाहिए इसमें रेड लेडी, सूर्या, कुर्ग हनी ड्यू, पूसा नन्हा, पूसा मजिस्ट्री बहुत अच्छी प्रजातियां हैं, इनका चयन करना चाहिए, नर्सरी तैयार करते समय अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद के साथ नीम की खली तथा ट्राइकोडरमा का प्रयोग करने से नर्सरी में बीमारियों का प्रकोप बिल्कुल नहीं होता, पपीते की नर्सरी हर स्थिति में दिसंबर के अंतिम सप्ताह तक कर लेनी चाहिए। जो किसान भाई आलू की खेती करते हैं वह पपीता का बाग आसानी से लगा सकते हैं, मार्च के पहले सप्ताह में अच्छी तरीके से खेत की तैयारी करके 150 से 200 टन अर्च्छी सड़ी हुई गोबर की खाद तथा ट्राइकोडरमा जैविक फफूंदी जनित उत्पाद का 20 किलोग्राम पाउडर खेत में अच्छी तरीके से भुरकाव कर दें जिससे उत्पादन बहुत अच्छा होगा। पौध रोपाई हेतु लाइन से लाइन की दूरी 8 फिट तथा पौधे से पौधे की दूरी 7 फिट रखना चाहिए जिससे हवा का आवागमन होगा और उत्पादन अच्छा होगा। पपीते में प्रमुख रूप से पौध गलन की अधिक समस्या रहती है इसके लिए जल निकास का उचित प्रबंध होना चाहिए किसानों को ढाई फिट की मेड बनाकर पौधों का रोपण करना चाहिए। चंद्र भानु गुप्ता कृषि स्नातकोत्तर महाविद्यालय बक्शी का तालाब लखनऊ के सहायक आचार्य डॉ सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया की पपीते में मौजेक बहुत बड़ी समस्या है बरसात हो जाने के बाद यह बीमारी बहुत रफ्तार में फैलती है इस बीमारी का प्रसारण एक सफेद मक्खी के द्वारा होता है उसको प्रबंधित करने के लिए इमिडाक्लोप्रिड नामक कीटनाशक की 1.5 ग्राम मात्रा को 1 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव प्रभावी होता है। पपीते में फलों के पकते समय एंथ्रेक्नोज बीमारी का अधिक खतरा रहता है इसके लिए सोडियम बाई कार्बोनेट का समय-समय पर 1% का छिड़काव करते रहना चाहिए जिससे इस समस्या से बचा जा सकता है।

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