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पाकिस्तान ईद मनाए, या कि मुहर्रम

पुष्परंजन
ग्लोबल टाइम्स चीन का सरकारी अखबार है, यह बात बाहरी दुनिया मान कर चलती है। यह भी मान लिया गया है कि जो कुछ यहां प्रकाशित होता है, वह चीनी सरकार का दृष्टिकोण है। 9 अगस्तको इसी अखबार में हू वेईचिया की रिपोर्ट छपी है, जिसमें उन्होंने भविष्यवाणी की है कि जम्मू-कश्मीर, लद्दाख में जो कुछ हुआ, उसके आर्थिक दुष्परिणाम कुछ दिनों बाद देखने को मिलेंगे। हू वेईचिया ने लिखा, चीन यह चाह रहा था कि कश्मीर को पाकिस्तान और भारत के सहकार के साथ समृद्ध किया जाए। मगर मोदी सरकार के इस फैसले ने सबपर पानी फेर दिया। इस टिप्पणी से जाहिर है कि चीन, कश्मीर में मान न मान मैं तेरा मेहमान बनने की मंशा रखता था। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के उत्साहवर्द्धक बयान पीओके भी हम लेकर रहेंगे, से चीन के कान खड़े हुए हैं। पाक कब्जे वाले कश्मीर में चीन की जल विद्युत और अधोसंरचना से जुड़ी परियोजनाएं इस धमकी से रुक जाएंगी, कहना कठिन है। पर चीन इसकी समीक्षा कर रहा है। लद्दाख पर चीन की आपत्ति के खिलाफ विदेश मंत्रालय ने तुर्की ब तुर्की जवाब दिया कि यह भारत का आंतरिक मामला है। क्या चीन ठंडा होकर बैठ गया? अभी से कहना जल्दबाजी होगी। चीन ने तीन दिन पहले मानसरोवर के यात्रियों को किसी तकनीकी कारण से वीजा प्रक्रिया में देर कर दी, उस समय लगा था कि उसकी वजह लद्दाख हो सकती है। मगर, चीन ने वीजा प्रक्रिया आरंभ कर अटकलों पर विराम लगाया है। चीनी राष्ट्रपति शी चिनपिंग अक्टूबर 2019 में वाराणसी आने वाले हैं, उन्हें पीएम मोदी के कार्यालय से न्योता भी भेजा जाना है। यह सितंबर में ही समझ में आयेगा कि दोस्ती की दिशा में सबकुछ इज गोइंग है, या गड़बड़ है। क्या चीन से बगलगीरी के कारण पाकिस्तान का व्यापार लहलहाने लगा? ग्लोबल टाइम्स के रिपोर्टर हू वेईचिया इसकी पड़ताल करते तो जन्नत की हकीकत का उन्हें भी पता चल जाता। चीन, पाकिस्तान का ऑल वेदर फ्रेंड है, बावजूद इसके, पाकिस्तान मात्र डेढ़ अरब डॉलर का निर्यात जुलाई 2018 से जून 2019 तक कर पाया है। ग्लोबल टाइम्स,आंकड़ों के जरिए तहकीकात कर ले, कि 2017 से चीन-पाकिस्तान के सालाना व्यापार में झटका दर झटका कैसे लगा है। चीन ने इस मुल्क को जिस तरह बाजार में बदल दिया है, उसे आम पाकिस्तानी समझना नहीं चाहता। 2018 से जून 2019 तक की अवधि में चीन ने 6.63 अरब डॉलर का माल पाकिस्तान भेजा है। यानी दोनों पक्षों में कोई व्यापार संतुलन नहीं है।पाकिस्तान सरकार इस समय पूरे दबाव में है। कश्मीर को सूंघने में पाक इंटेलीजेंस पूरी तरह से विफल रहा है, इसकी भी बौखलाहट है। देशव्यापी प्रदर्शन व रैलियों ने इमरान की पार्टी, पीटीआई के लिए सांप-छछुंदर वाली स्थिति पैदा कर दी है। सदन में इमरान, विपक्षी नेता शाहबाज शरीफ पर भड़क गए। बोले, श्आप क्या चाहते हैं, भारत पर हमला कर दें?श् इमरान ने कहा कि एक और पुलवामा संभव है, और वे हमपर दोषारोपण करेंगे। इमरान खान को डान जैसे अखबार ने शुक्रवार के संपादकीय में सलाह दी है कि दिल्ली द्वारा उकसाने के क्रम में वे जो कुछ बयान दें, सोच-समझकर दें। अखबार लिखता है, श्युद्ध की आग भड़काने वाला इंडिया ऐसे अवसर की ताक में है। इसलिए बेहतर यही है कि पीएम इमरान इस पूरे मामले को कूटनीतिक फ्रंट पर लडेंघ्।श् इमरान का रिमोट कंट्रोल सेना के पास है। पाक सेना को अपनी इज्जत भी बचानी है, इसे ध्यान में रखकर इंटर सर्विस पब्लिक रिलेशंस के डीजी आसिफ गफूर ने चेतावनी दी है कि भारत श्मिसएडवेंचरश् न करे। गीदड़ भभकी का यह सिलसिला चलता रहेगा। पाकिस्तान का निजाम और उसकी सेना को भी मालूम है कि वे कितने पानी में हैं। कश्मीर के बहाने नवाज शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग अपनी राजनीति को पुनर्जीवित करना चाहती है। मगर, वहां असल खेल जमाते इस्लामी ने खेलना शुरू किया है। मुल्तान, गुजरांवाला, फैसलाबाद, सरगोधा, पेशावर, कोहाट, मरदान, डेरा इस्माइल खान, खार, मीरपुर, कलाया, हांगू, मुजफ्फराबाद, रावलकोट, झेलम घाटी में उन्मादी रैलियों का सिलसिला जमाते इस्लामी में जिस तरह शुरू किया है, उसके आगे इमरान खान की पार्टी श्पाकिस्तान तहरीके इंसाफ भी फीकी पड़ चुकी है। जमाते इस्लामी के नेता सीनेटर सिराजुल हक, सेक्रेट्री जनरल अमीरूल अजीम के बयानों से स्पष्ट हुआ है कि जमाते इस्लामी पाकिस्तान में कश्मीर की निर्वासित सरकार का प्रस्ताव रखना चाहती है। अजेंडा यह है कि ऐसी निर्वासित सरकार पीओके में निर्मित हो। सीमा पार से तथाकथित रूप से सताए लोग और अलगाववादी नेता कश्मीर की निर्वासित सरकार में शरीक हो जाएं। उधर से ही नारा-ए-तकबीर लगाएं। मगर, इसके लिए पाकिस्तान पैसा और संसाधन कहां से जुटाएगा? इन चक्करों में कहीं गुलाम कश्मीर भी पाकिस्तान के हाथ से न निकल जाए। दूसरी तरफ, मुसलमान देश भी समझते हैं कि पाकिस्तान कश्मीर के मूल मुद्दे को धार्मिक रंग क्यों देना चाहता है। पाक विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी मंगलवार को जेद्दा पहुंच गये थे, जहां 57 सदस्यीय मुस्लिम देशों का संगठन आर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (ओआईसी) का मुख्यालय है। जेद्दा में कुरैशी का शिगूफा था, दक्षिण एशिया में इस्लाम और डेढ़ अरब मुस्लिम आबादी खतरे में है। पाकिस्तान कश्मीर पर ओआईसी की आपात बैठक चाह रहा था। यह कार्ड नहीं चला, तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की इमरजेंसी मीटिंग का गुब्बारा फुलाया गया है। पाकिस्तान की मानवाधिकार मंत्री शीरीन मजारी ने सदन को बताया कि हमने संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंटोनियो गुटेरस को भी इमरजेंसी मीटिंग बुलाने के वास्ते पत्र लिखा है। मजारी ने सदन में सवाल किया कि जम्मू-कश्मीर के मुसलमानों पर जुल्म होते ओआईसी कैसे देख सकता है? इस बयान से ही बात समझ में आ रही है कि पाक विदेशमंत्री कुरैशी ऽोद्दा से खाली हाथ लौटे हैं। सऊदी अरब की खामोशी से भी पाकिस्तान हताश है।यों, 4 अगस्त को ओआईसी ने बयान जारी कर दिया था कि भारत, अंतरराष्ट्रीय समुदाय के जरिये कश्मीर का शांतिपूर्ण हल निकाले। ओआईसी जनरल सेक्रेटेरियट ने कश्मीर में अर्द्धसैनिक सुरक्षा बलों की बढ़ाई गई संख्या पर भी चिंता व्यक्त की है। ऐसे मातमी वक्त में इमरान खान ने तुर्की के राष्ट्रपति रिसेप तैयप एर्दोआन और मलेशिया के प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद से अपनी वेदना साझा की। दोनों से श्हम स्थिति को देख रहे हैं, पाकिस्तान को सपोर्ट करेंगेश् जैसे आश्वासन के सिवा कुछ हासिल नहीं हुआ है। सोमवार से बुधवार दोपहर तक 72 घंटे की कड़ी कूटनीतिक मेहनत का नताइज जब कुछ न निकला, तो स्वाभाविक था कि पाकिस्तान अपनी कुंठा के चरम पर पहुंचता। भारत से व्यापारिक संबंध तोड़ना, हवाई मार्ग को फिर से अवरूद्ध कर देना, अपने उच्चायुक्त को नई दिल्ली नहीं भेजने का फैसला लेना और हमारे हाई कमिश्नर अजय बिसारिया को इस्लामाबाद से निष्कासित कर देना, इसकी अपेक्षा मोदी सरकार पहले से कर रही थी। इसमें हैरत वाली कोई बात नहीं कि पाकिस्तान के वजीरे आजम की हरकत बच्चे जैसे होने लगी है। आपने व्यापार समझौता भारत से सस्पेंड कर दिया। बता भी दीजिए, उभयपक्षीय व्यापार कितने अरब डॉलर का हो रहा था? 2018-19 में भारत के टोटल ट्रेड का 0.1 प्रतिशत! भारत ने इस अवधि में 2.06 अरब डॉलर का सामान पाकिस्तान निर्यात किया था और पाकिस्तान से 49 करोड़ डॉलर का आयात हुआ था। वर्ल्ड बैंक ने 25 सितंबर 2018 को जानकारी दी थी कि दोनों देश चाहते तो सालाना व्यापार 37 अरब डॉलर तक ले जा सकते थे। आज की तारीख में विदेशी मुद्रा से लबालब भारत के खजाने से एक-डेढ़ अरब डॉलर कम भी पड़ जाये तो क्या फर्क पड़ता है? मगर, पाकिस्तान के लिए तो यह आत्मधाती कदम है। पाकिस्तान ने बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक के बाद 26 फरवरी 2019 से 2 जुलाई तक एयर रूट को बंद कर रखा था। 3 जुलाई को नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप पुरी ने राज्यसभा को जानकारी दी थी कि 126 दिनों में हमें 491 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा था। यही वो जगह है जहां पाकिस्तान, भारत को आर्थिक चोट पहुंचाने की स्थिति में है। मगर, भारत ठान ले तो पाकिस्तान को प्रदत जलधारा से छेड़छाड़ कर ही सकता है। यह सच है कि सिंधु, झेलम और चेनाब की जलधारा मोड़ने के वास्ते नहरें, अधोसंरचना तैयार करने में कई लाख करोड़ और सात से दस साल का समय लग सकता है। जब पाकिस्तान आकाश मार्ग को अवरूद्ध कर सकता है, तो भारत जल मार्ग को क्यों नहीं मोड़ सकता? तर्क करने वाले कर सकते हैं कि सतलज, रावी और ब्यास के साथ पाक भी ऐसा करे, फिर क्या होगा | वैसे भी भारत रावी और ब्यास की जल धाराओं का लाभ राज्यों में विवाद की वजह से नहीं उठा पाता। भारत ऐसा कदम उठाने से पहले पुख्ता इंतजाम अवश्य चाहेगा। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान और दिल्ली के मुख्यमंत्रियों के बीच सिंधु जल के इस्तेमाल के सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कराके इस दिशा में आगे बढ़ने का संकेत तो दिया है। रावी नदी की एक शाखा श्उझश् की धारा को मोड़ने वाली महत्वाकांक्षी परियोजना पर भी कश्मीर के गर्वनर ने हरी झंडी दे रखी है। पाकिस्तान जिस कूटनीति के जरिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय की सहानुभूति ले सकता है, वह है मानवाधिकार का सवाल। जेनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की चिंता कश्मीर की स्थिति को लेकर जाहिर हुई है। इससे पाकिस्तान को मनोबल बढ़ा है। यूरोपीय संघ, अमेरिकी कांग्रेस में पाकिस्तान लॉबी सक्रिय रही है, इस सच को समझते हुए भारतीय कूटनीति को उसकी काट तैयार रखने की आवश्यकता है। इंटरनेशनल मीडिया, खासकर मीडिल इस्ट का मीडिया पाकिस्तान से मुतमइन है, उससे सहानुभूति वाली रिपोर्टें दिखने लगी हैं, पता नहीं भारत सरकार को यह सब नजर क्यों नहीं आता |

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