Home > विचार मंथन > पढ़ाई, शादी की उम्र को लेकर प्रदेश की किशोरियां पहले से अधिक जागरुक

पढ़ाई, शादी की उम्र को लेकर प्रदेश की किशोरियां पहले से अधिक जागरुक

तरुण जयसवाल
लखनऊ | शहर में दिन बृहस्पतिवार को किशोर-किशोरियों के साथ जमीनी स्तर पर काम करने के नतीजे अब सामने आने लगे हैं, 2018 में हुए स्वंयसेवी संस्था ब्रेकथ्रू के सर्वे के मुताबिक 84 फीसदी किशोरियां अब उच्च शिक्षा को लेकर बात करने लगी हैं, जबकि 2015 में यह आंकड़ा 61 प्रतिशत था। साथ ही विवाह की उम्र को लेकर भी उत्साहजनक परिणाम सामने आएं हैं, सर्वे के मुताबिक 56 फीसदी किशोरियां अब परिवार में शादी की उम्र को लेकर आवाज उठाने लगी हैं जबकि 2015 में यह दर सिर्फ 8 फीसदी थी। उन्होंने कहा कि ये प्रयास हमें बेहतर दिशा में ले जा रहे हैं,लेकिन इस सफर को जारी रखने की जरूरत है जिसमें समुदाय,मीडिया,स्वंयसेवी संस्थाओं,सरकार सहित सभी हितधारकों का सहयोग अपेक्षित है।यह सर्वे ब्रेकथ्रू के लिए एनआरएमसी ने किया था शहर के एक होटल में प्रेस कांफ्रेस को संबोधित करते हुए ब्रेकथ्रू की सीईओ सोहिनी भट्टाचार्या ने कहा कि 2015 से ब्रेकथ्रू उत्तर प्रदेश के सात जिलों (लखनऊ, गोरखपुर, सिद्दार्थनगर, महाराजगंज, गाजीपुर, वाराणसी और जौनपुर ) के कुल 21 ब्लॉक, 514 ग्राम पंचायत और 715 स्कूलों में कार्यक्रम ‘दे ताली’- बनेगी बात साथ-साथ के माध्यम से किशोर-किशोरी सशक्तीकरण मुद्दे पर काम कर रहा है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य किशोर-किशोरियों का सर्वागीण विकास है। जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, जेंडर, कम उम्र में शादी, लैंगिक भेदभाव, समान अवसर जैसे मुद्दे शामिल हैं। इस कार्यक्रम के माध्यम से हम लगभग चार लाख किशोर-किशोरियों तक पहुंच कर उनके जीवन में बदलाव लाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि 2015 में जब हमने काम करना शुरू किया था तब से लेकर किशोर-किशोरियों की शिक्षा, शादी, आकांक्षाएं को लेकर काफी बदलाव जाहिर होने लगे हैं। हम देख रहे हैं कि शिक्षा देरी से शादी के मामले में एक साधन के रूप में काम करती है, कक्षा 12 तक शिक्षा किशोरियों के लिए पर्याप्त समझी जाती है लेकिन जिन लड़कियों का स्कूल छूट जाता हैं वो खुद भी शादी के लिए तैयार रहती हैं। 35 फीसदी किशोर-किशोरियां जीवनसाथी को लेकर अपनी पसंद और नापसंद को लेकर बात करने लगी है। जबकि पहले इस मुद्दे को लेकर कोई चर्चा नही होती थी। व्यक्तिगत स्तर पर जहां सकारात्मक बदलाव देखने को मिला है वहीं दूसरी तरफ कम उम्र में शादी को लेकर सामाजिक सोच में ज्यादा बदलाव नहीं आया है। अगर किशोर किशोरियों की आंकाक्षाओं के बारे में बात करें 2015 की अपेक्षा इसमें 42 फीसदी बढ़ोत्तरी हुई है और इनमें से 35 फीसदी ने अपने परिजनों से एक से अधिक बार आंकाक्षाओं (आशाओं) की बात को मजबूती से रखा है। उनकी पढ़ाई को अब उनके रोजगार से जोड़ कर भी देखा जाने लगा है, जो कि एक सकारात्मक बदलाव है। 95 फीसदी लड़कियां कितनी कक्षा तक पढ़ना है इस पर बात करने लगी हैं। इनमें से 38 फीसदी लड़किय़ा नियमित बात करती हैं जबकि बेसलाइन सर्वे में सिर्फ 50 फीसदी लड़किया इस पर बात करती थीं। किशोर-किशोरियों ने कैरियर को लेकर कई सारे विकल्पों पर चर्चा करनी भी शुरू कर दी है लेकिन उसको प्राप्त कैसे करेगें इसको लेकर अभी उनमें स्पष्टता नहीं है।
किशोर-किशोरियों के बीच बातचीत को लेकर रूढ़ीवादी सोच में कमी आई है, पहले 50 फीसदी किशोर-किशोरियां मानते थे कि ये गलत है और अब 13 फीसदी ही ऐसा सोचते हैं। लेकिन ये बदलाव माताओं और समुदाय के सदस्यों के बीच खुले तौर अभी स्वीकारा नही गया है। उनका मानना है कि अगर कोई जरूरी काम हो तभी लड़के-लड़कियों का आपस में बातचीत करनी चाहिए। वहीं घर के काम से अलग खुद के समय के मामले में भी बदलाव देखने को मिला है। इसको लेकर किशोरियां अपना पक्ष रखने लगी हैं। 30 फीसदी लड़कियां ही पहले इस मुद्दे (खुद के समय) को लेकर अपने माता-पिता से बात करती थी,जो बढ़कर 75 फीसदी हो गया है। लेकिन लड़किया घरेलू काम का बोझ कम करने के लिए अपनी घरों में बात नही कर पा रही हैं। अपने खाली समय को लेकर किशोरों की अपेक्षा किशोरियां परिवार में अधिक चर्चा करती हैं इसका एक कारण ये भी है कि किशोरियों को घर के काम से अपने लिए फुरसत नहीं के बराबर मिल पाती है। दूसरी तरफ अकेल बाहर जाने को लेकर किशोरियां अपने परिवार में अब पहले से ज्यादा (90 फीसदी) बात करने लगी हैं, जो कि पहले 59 फीसदी था। जबकि परिवार में अभी भी आवागमन के मुद्दे पर किशोरियों को सुरक्षा के नाम पर गांव से बाहर जाने से रोका जाता है। वहीं समुदाय के स्तर नागरिक समाज लड़कियों के पढ़ाई के लिए बाहर जाने की स्वीकार करने तो लगा है। सुरक्षा की दृष्टि से किशोरियों के आवागमन रोक लगाते हैं। समुदाय का मानना है कि किशोरियां आस-पास के इलाके में स्थित स्कूलों में पढ़ाई के लिए समूह में जा सकती हैं। किशोर-किशोरियां अब 12वीं तक की पढ़ाई करने लगे हैं। लेकिन 15—16 साल की किशोरियों में स्कूल छूटने के मामले अभी भी सामने आ रहे हैं। जो गांव शहरी इलाकों के करीब हैं वहां पर किशोर-किशोरी उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज भी जा रहे हैं। वहीं जहां पर उच्च शिक्षा के मौके कम हैं वहां किशोर व्यवसायिक शिक्षा जैसे आईटीआई में पढ़ने जा रहे हैं। इस अवसर किशोर-किशोरी सशक्तिकरण कार्यक्रम के अन्तर्गत ‘बड़ी सी आशा’ का आयोजन किया गया जिससें सभी प्रमुख हितधारक भी शामिल हुए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *