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औषधीय पौधें एवं मानव स्वास्थ्य विषय पर एक स्वास्थ्य प्रबोधन कार्यक्रम का आयोजन सम्पन्न

लखनऊ | किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन स्थित ब्राउन हाॅल में औषधीय पौधें एवं मानव स्वास्थ्य विषय पर एक स्वास्थ्य प्रबोधन कार्यक्रम का आयोजन आरोग्य भारती अवध प्रांत एवं के0जी0एम0यू0 के संयुक्त तत्वाधान में सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डाॅ0 रकेश पण्डित, राष्ट्रीय अध्यक्ष वन औषधीय प्रचार प्रसार विभाग आरोग्य भारती द्वारा पावर प्वाइंट प्रस्तुतीकरण के माध्यम से औषधीय पौधे के गुण, प्रयोग एवं उसके प्रबंधन के बारे मे बताया गया। उन्होने बताया की भारत क्षेत्रफल की दृष्टि से पूरे विश्व का 2.5 प्रतिशत भाग है किन्तु यहां विश्व के कुल फूलो की प्रजातियों में से 8 प्रतिशत प्रजातियां यहा पाई जाती है। भारत में 45000 प्रकार के पौधे पाये जाते हैं जिसमें 25000 पौधे औषधीय गुणों से युक्त है तथा 8000 औषधीय पौधों का विभिन्न प्रकार की दवाओं के उत्पादन में प्रयोग किया जाता है। डाॅ0 पण्डित ने बताया कि आयुर्वेद, यूनानी डाॅक्टरों एवं ट्रेडहिलर-गुनी, वैद, तांत्रीक आदि द्वारा विभिन्न औषधीय पौधें का प्रयोग मरीजो के उपचार के लिए किया जा रहा है। डाॅ0 पण्डित ने बताया जिस प्रकार से मलेरीया, तपेदीक आदि के रोगोे में इनके जीवाणु, विशाणु जीस प्रकार से दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर रहे है ऐसे में सभी पैथो के डाॅक्टरों और वैज्ञानिकों द्वारा इन औषधीय पौधें से इनके उपचार के लिए नई दवाओं की खोज करनी चाहीए। डाॅ0 पण्डित द्वारा अपने प्रबोधन में विभिन्न प्रकर के औषधीय पौधें जैसे , अर्जुन, ब्राह्मि, शतवारी, तुलसी, गिलोय जैसे कुछ पौधोें के प्रयोग और उनके पहचान एवं प्रबंधन आदि के बारे मे भी बताया गया।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि डाॅ0 ए0के0 माथुर, पूर्व मुख्य वैज्ञानिक एवं सलाहकार सीमैप द्वारा अपने प्रबोधन में कहा गया कि आज का आधुनिक विज्ञान प्रकृति से जुड़कर लोगो को स्वस्थ रखने के लिए कार्य करने की ओर अग्रसर है। भारत जैसे देश में पौधों का धार्मीक दृष्टि से भी विशेष महत्व है और यह जरूरी है कि लोगो का विश्वास पौधे के उपर बना रहे और उसे वैज्ञानिक सहयोग भी मिले। आज दवाओं में इस्तेमाल होने वाले 80 प्रतिशत हर्बल कच्चे उत्पाद जंगलो से प्राप्त किया जाता है उनका अभी भी खेती नही की जा रही है।
आज कल आयुर्वेदीक उत्पाद के नाम पर लोगो को छला जा रहा है। मार्केट मे कई ऐसे उत्पाद है जिनको हर्बल कह कर लोगो के मानसीक भवना से खिलवाड़ किया जात है जब कि ऐसे उत्पाद में भी विभिन्न प्रकार के रशायन मिले होते है ऐसे उत्पाद आयुर्वेदीक उत्पाद नही कहे जा सकते है। 1992 के बाद मार्केट में कोई नई एंटीबायोटिक नही आई है इसका मुख्य कारण है कि फार्मास्यूटिकल कंपनिया नई एंटी बायोटिक बनाकर लोगो को स्वस्थ करने के बजाय जीवनचर्या से जुड़े बीमारीयों के उपचार के लिए दवाएं बनाने में रूची ले रही है। इस प्रकार औषधीय पौधों की कृषी के लिए एक राष्ट्रीय योजना बनानी पड़ेगी। हम विदेशी फार्मस्यूटिकल कंपनियों और पश्चिमि देशों के लिए आयुर्वेदिक कच्चा उत्पाद देने की नीति को छोड़नी पड़ेगी। हमें सभी हर्बल उत्पाद के मानक बनाकर उसके बैच टू बैच उत्पाद में गुणवत्ता लानी पड़ेगी। पौधों मे जो औषधीय गुण होते है वो मौसम, पौधें की एज के हिसाब से उसमे उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार हमें पौधों को जब चाहें तब उपयोग नही करना चाहिए।
कार्यक्रम के अध्यक्ष्या प्रो0 बी0एन0 सिंह राष्ट्रीय उपाध्यक्ष आरोग्य भारती द्वारा आरोग्य भारती का परीचय और स्वस्थ जीवनचर्या के आयामों को बताया गया। कार्यक्रम के संयोजक प्रो0 विनोद जैन ने बताया कि विश्व स्वास्थ संगठन द्वारा भी स्वास्थ का परीभाषा देते हुये कहा गया है कि स्वास्थ्य का तात्पर्य, बौद्धिक, शारीरीक और अध्यात्मिक स्वास्थ्य से है। उन्हों ने बताया सुबह का नास्ता सबसे अच्छा होना चाहिए और भरपूर होना चाहिए, रात का खाना सूर्यास्त से पहले होना चाहिए। हमे समाहीक भोजन करना चाहिए। मौसमी फलों को खायें और अपने आवास के क्षेत्र में उपलब्ध होने वाले फलों और सब्जियों को खाना चाहिए। स्वस्थ रहने के लिए व्यायाम भी बहुत जरूरी है एक स्वस्थ व्यक्ति को प्रत्येक दिन कम से कम 10000 कदम चलना चाहिए।
कार्यक्र में उपस्थित अतिथियों और वक्ताओं को प्रो0 विभा सिंह द्वारा धन्यावद दिया गया।

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