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हर माँ का एक ही सपना, स्वस्थ रहे बच्चा अपना

लखनऊ | हर माँ का सपना होता है कि वह एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे | एक माँ के लिए 9 माह का समय बहुत ही महत्वपूर्ण होता है और जन्म के बाद यह आवश्यक होता है कि नवजात (विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 0-28 दिन के बच्चे को नवजात कहा जाता है) को पौष्टिक आहार व संक्रमण मुक्त वातावरण उपलब्ध कराया जाये क्योंकि नवजात की प्रतिरक्षा प्रणाली इतनी विकसित नहीं होती है कि वह संक्रमण से लड़ पाये | इन बातों को ध्यान में रखते हुये माँ व परिवार के सदस्यों को कुछ बातें जरूर अपनानी चाहिए ताकि बच्चा संक्रमणमुक्त व स्वस्थ रहे |
नवजात की देखभाल के लिए माँ व परिवार इन बातों का रखे ध्यान-
नवजात को जन्म के एक घंटे के भीतर ही माँ का गाढ़ा पीला दूध जिसे आम बोलचाल में खीस कहते हैं, पिलाना चाहिए | नवजात को 6 माह तक केवल माँ का दूध देना चाहिए | जन्म के प्रथम माह में पोलियो से बचाव के लिए पोलियो कि खुराक व टीबी से बचाव के लिए बीसीजी का टीका अवश्य लगवाना चाहिए |
नवजात की देखभाल के लिए माँ व परिवार इन बातों से करे परहेज़-
नवजात को जन्म के तुरंत बाद नहीं नहलाना चाहिए | माँ के दूध के अलावा कुछ भी नहीं देना चाहिए यहाँ तक कि 6 माह तक पानी भीं नहीं देना चाहिए क्योंकि माँ के दूध में पर्याप्त मात्रा में पानी होता है | नवजात की नाल पर कुछ भी नहीं लगाना चाहिए | उसे सूखने देना चाहिए |
रानी अवन्तीबाई जिला महिला अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सलमान बताते हैं कि नाल जितनी सूखी रहेगी उतनी जल्दी गिरेगी | अगर नवजात का जन्म समय से हुआ हो तो नाल गिरने के बाद और यदि समय से पहले जन्म हुआ हो तो जब तक नवजात का वजन 2.5 किलो न हो जाये तब तक उसे नहीं नहलाना चाहिए | यदि नवजात का वजन 1800 किग्रा से कम है तो खतरे की संभावना अधिक होती है | ऐसे में नवजात को जिला अस्पताल के सिक न्यूबोर्न केयर यूनिट (एस.एन.सी.यू.) में भर्ती करवाना चाहिए | नवजात को खीस या कोलोस्ट्रम अवश्य देना चाहिए क्योंकि इसमें नवजात के लिए आवश्यक पोषक तत्व व एंटीबोडीस होते हैं जिनमें बीमारियों से लड़ने की क्षमता होती है | नवजात को 6 माह तक सिर्फ माँ का दूध ही देना चाहिये क्योंकि इसमें सभी आवश्यक पोषक तत्व होते हैं जिनकी बच्चे को आवश्यकता होती है | इससे डायरिया व निमोनिया का खतरा भी कम होता है |
डॉ. सलमान ने बताते है कि बच्चे को तेल नहीं लगाना चाहिए और न ही नाक और कान में तेल डालना चाहिए | आँखों में काजल भी नहीं लगाना चाहिये क्योंकि काजल लगाने से आंख की एक नली होती है जो कि बंद हो जाती है जिस वजह से आँखों में कीचड़ व पानी आने लगता है |
यह भी जानें –
हाइपोथर्मिया
जब नवजात के शरीर का तापमान 36.5 डिग्री से कम हो जाता है या शरीर पर्याप्त गर्मी पैदा नहीं कर पाता है तब हाइपोथेर्मिया की स्थिति पैदा हो जाती है | इसे ठंडा बुखार भी कहा जाता है | यदि नवजात के हाथ, पैर व पेट ठंडा हो तो सबसे पहले माँ के सीने से लगाकर उसे केएमसी देकर उसके शरीर का तापमान नियंत्रित किया जा सकता है और कमरे को गरम करना चाहिए | यदि इसके बाद भी नवजात का शरीर गरम न हो तो उसे तुरंत ही चिकित्सक को दिखाना चाहिए |
कंगारू मदर केयर (केएमसी)
ऐसे बच्चे जिनका जन्म समय से पहले हो जाता है और वजन 2.5 किग्रा से कम होता है, ऐसे नवजात में हाइपोथर्मिया या ठंडे बुखार के होने की संभावना अधिक होती है | इस स्थिति से निपटने के लिए कंगारू मदर केयर (केएमसी) विधि का प्रयोग किया जाता है | इस विधि में नवजात शिशु को माता-पिता या देखभालकर्ता द्वारा त्वचा से दी जाने वाली थेरेपी देकर तापमान को नियंत्रित किया जाता है |
होम बेस्ड न्यूबोर्न केयर (एचबीएनसी) कार्यक्रम
होम बेस्ड न्यूबोर्न केयर (एचबीएनसी) कार्यक्रम के तहत आशा कार्यकर्ता को प्रशिक्षित किया गया है, जिसमें आशा संस्थागत प्रसव या घर के प्रसव के पश्चात 42 दिन तक क्रमशः 6 या 7 दिन गृह भ्रमण करती है | इन गृह भ्रमणों में वह नवजात में खतरे के लक्षणों जैसे कम या ज्यादा बुखार, नवजात का कम वजन होना, हाथ या पैर का ठंडा पड़ना ( हाइपोथर्मिया ), तेज सांस चलना, घबराहट, कम भूख लगना, ठीक से दूध न पी पाना, शरीर के किसी भाग में स्राव, मूत्र का नहीं आना और उल्टी होना, स्तनपान करने में दिक्कत होना, जन्म के पहले दिन से पीलिया होना या 14 दिन के बाद भी पीलिया बना रहना, झटके आना, उल्टी या मल में खून आना इत्यादि को पहचानती है |आशा उपरोक्त लक्षणों की पहचान कर नवजात को संदर्भन इकाई भेजती है जहां उसे तुरंत प्रशिक्षित डॉक्टर द्वारा उपचार प्राप्त हो सके ।

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