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ई-रिक्शा की बढ़ती संख्या से चरमरा रही राजधानी की ट्रैफिक व्यवस्था

लखनऊ। वाहनों के बढ़ते बोझ के कारण राजधानी के विभिन्न स्थान अक्सर जाम से घिरे नजर आते है। इनमें सबसे अधिक योगदान अनियंत्रित ई-रिक्शा का है। जो बिना किसी नियम कायदे के किसी भी जगह में घुस जाते है। जिन गलियों में आम रिक्शा भी नहीं जाते है, वहां भी ई-रिक्शा नजर आते हैं। वर्तमान में ट्रांसपोर्ट नगर व देवा रोड स्थित परिवहन विभाग में पंजीकरण के अनुसार राजधानी में पचास हजार से अधिक ई-रिक्शा सड़कांे पर जाम का सबब बन रहे है। जबकि प्रतिमाह एक हजार से अधिक नये ई-रिक्शा के लिये पंजीकरण हो ही रहे है। शहर के सभी प्रमुख चौराहे और बाजार इन ई-रिक्शा के द्वारा लग रहे जाम से त्रस्त है। सूत्रों के अनुसार यातायात विभाग ने महीनों पहले ही जिलाधिकारी व जेसीपी को पत्र लिखकर नये ई-रिक्शा के पंजीकरण को रोकने की मांग की थी। परन्तु अधिकारियों इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया। नतीजा आज सामने है राजधानी की यातायात व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त है। जिन मार्गों पर ई-रिक्शा प्रतिबंधित है वहां भी धडल्ले से ये दौड़ते नजर आते है। एक अनुमान के अनुसार दस से बारह घण्टे ई-रिक्शा चलाने में प्रतिमाह आराम से पैतालीस हजार की कमाई हो जाती है। आसान फाइनंेस सुविधा, आसान पंजीकरण और मोटी कमाई के चलते एक ई-रिक्शा चालक के पास दो साल के भीतर ही पांच से आठ ई-रिक्शा हो जाते है, जिनकों वह बाकियों से किराये पर चलवाता है। बाराबंकी निवासी एक ई-रिक्शा चालक फैजल के अनुसार उनके पास छः ई-रिक्शा है जिनकों वह अपने ही गांव वालों से लखनऊ में चलवाते है और उनकों राजगार भी देते है। प्र्रति रिक्शा उनकों प्रतिदिन एक हजार रूपये किराया मिलता है। एक सौ रूपये की फुल चार्जिंग में दस से बारह घण्टे रिक्शा चल जाता है। इस प्रकार यदि देखा जाय तो बिना हाथ पैर की मेहनत के ई-रिक्शा चलाना काफी फायदे का सौदा है। मोटी कमाई का यह जरिया भी शहर में बाहर से आने वालों और रिक्शा दोनों की जनसख्यां बढ़ा रहा है जिस पर प्रशासन ध्यान नहीं दे रहा है।

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