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अतीक- अशरफ हत्याकांडः पुलिस पर उठ रहे सवाल

पत्रकारवार्ता क्यों कराई पुलिस ने
लखनऊ। आज मुझे इलाहाबाद में धमकी दी गई है कि दो सप्ताह के भीतर आपको जेल से फिर किसी बहाने से बाहर निकाला जाएगा और आपको निपटा दिया जाएगा। यह जानकारी एक बड़े अधिकारी ने मुझे दी है। 29 मार्च को पुलिस की कैदी गाड़ी के भीतर से झाँकते हुए पत्रकारों से बात कर रहे अतीकघ् अहमद के साथ मारे गए उनके भाई अशरफ ने ये डर जाहिर किया था। इसके दो हफ्ते बाद 15 अप्रैल की रात पुलिस सुरक्षा में मेडिकल जाँच के लिए ले जाते समय अतीक और अशरफ की हत्या कर दी गई।पत्रकार बनकर आए तीन हमलावरों ने लाइव कैमरों के सामने अतीक और अशरफ की हत्या की। घटना के वीडियो लगातार टीवी चौनलों पर प्रसारित किए जा रहे हैं और सोशल मीडिया पर शेयर किए जा रहे हैं। हत्याकांड की जाँच के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया है। पुलिस ने घटना की तह तक पहुँचने के लिए विशेष जाँच दल गठित किया है। ये दल तीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की निगरानी में जाँच करेगा। गुजरात की साबरमती जेल में बंद अतीक, अहमद को जब प्रयागराज में जाँच में शामिल होने के लिए लाया गया था, तब मीडिया में उनकी गाड़ी पलटने के कयास लगाए गए थे। मीडिया की भाषा में गाड़ी पलटने का मतलब है पुलिस एनकाउंटर में मौत। जुलाई 2020 में कानपुर के बिकरू कांड के अभियुक्त विकास दुबे को मध्यप्रदेश से उत्तर प्रदेश लाते समय कथित एनकाउंटर में मार दिया गया था। पुलिस ने अधिकारिक बयान में कहा था कि गाड़ी पलट जाने के बाद विकास दुबे ने भागने की कोशिश की और फिर एनकाउंटर में वो मारा गया। सुप्रीम कोर्ट के जज बीएस चौहान की निगरानी में जाँच हुई।जांच आयोग ने पाया कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने विकास दुबे और उसके पाँच साथियों के एनकाउंटर में कुछ गलत नहीं किया है।16 मार्च को अतीक अहमद को पहली बार साबरमती जेल से उमेश पाल हत्याकांड मामले में पूछताछ के लिए कड़ी सुरक्षा में प्रयागराज लाया गया था। पत्रकारों को भी उनके करीब तक नहीं पहुँचने दिया गया था। 11 अप्रैल को अतीकघ् अहमद को एक बार फिर साबरमती जेल से प्रयागराज लाया गया। इस बार पुलिस ने उनकी रिमांड मांगी थी। 15 अप्रैल को जब अतीक अहमद की हत्या हुई, तब उन्हें पुलिस रिमांड से फिर से न्यायायिक हिरासत में भेजा जाना था। पुलिस हिरासत में अतीकघ् अहमद और अशरफ की हत्या के बाद कई गंभीर सवाल खड़े हुए हैं। दोनों की हत्या की एफआईआर में लिखा है कि अतीक और अशरफ ने बताया कि दोनों को काफी घबराहट हो रही थी। एनकाउंटर में मारे जाने के बाद अतीक के बेटे असद को उसी दिन दोपहर में दफनाया गया था।पुलिस के मुताबिक दोनों की बिगड़ती हालत को देखते हुए 10 बजकर 19 मिनट पर थाना धूमनगंज के एसएचओ राकेश कुमार मौर्य ने 18 पुलिसकर्मियों के साथ एक बोलेरो गाड़ी और एक जीप में अतीक और अशरफ को कॉल्विन अस्पताल पहुँचाया। एफआईआर में लिखा है कि पुलिस रात 10 बजकर 35 मिनट पर दो गाड़ियों में अतीकघ् और अशरफ को लेकर मेडिकल परीक्षण के लिए कॉल्विन अस्पताल पहुँची। दोनों को एक ही हथकड़ी में बांधा गया था। गाड़ी से उतरने के बाद 10 से 15 कघ्दम चलने के बाद अतीक और अशरफ को मीडिया के हुजूम ने घेर लिया. वे बाइट लेने की कोशिश करने लगे ।पुलिस का कहना है कि अतीक और अशरफ बाइट देने के लिए रुकने लगे तो पुलिस ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए धक्का दिया लेकिन उसके बाद तुरंत गोलियाँ चलने लगीं और अतीक और अशरफ जमीन पर गिर गए। उसके बाद तीनों हमलावर ने आत्मसमर्पण कर दिया। अतीक के वकील ने पुलिस पर कई सवाल उठाए। अतीक अहमद के वकील विजय मिश्रा उनकी परछाई बन कर चलते थे। जब साबरमती से अतीक अहमद का काफिला चला था, तो वो पूरे रास्ते उस काफिले के साथ अपनी गाड़ी से पीछे चल रहे थे।वो बताते हैं, हाईकोर्ट ने भी अशरफ की सुरक्षा का संज्ञान लेते हुए आदेश दिया था कि उनकी सुरक्षा का विशेष ध्यान दिया जाए।सुप्रीम कोर्ट ने भी अतीकघ् अहमद की सुरक्षा से जुड़ी याचिका पर सुनवाई की थी, लेकिन उन्हें यह गुहार हाई कोर्ट से करने को कहा था।विजय मिश्रा कहते हैं, इससे पहले कि हाईकोर्ट जाकर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से पेशी और सुनवाई की मांग करते, उससे पहले ही अतीक की हत्या हो गई। अशरफ की सुरक्षा के लिए हाई कोर्ट ने आदेश दिया था कि उनकी पेशी के लिए आते-जाते हर वक्त वीडियोग्राफी हो। वज्र वाहन की जगह खुली पुलिस जीप में क्यों अस्पताल ले जाया गया। 15 अप्रैल की रात अतीक अहमद और अशरफ को एक ही हथकड़ी में बांधकर खुली पुलिस जीप में 17 पुलिस जवानों की सुरक्षा में थाने से कॉल्विन मेडिकल कॉलेज तक ले जाया गया। जीप से उतरकर अतीक और अशरफ चंद कघ्दम ही चले थे कि पत्रकारों ने उनसे सवाल पूछने शुरू किए।अतीकघ् का जवाब पूरा भी नहीं हो पाया था कि पत्रकार बनकर आए तीन हथियारबंद हमलावरों ने ताबड़तोड़ फायरिंग की और दोनों भाइयों की हत्या कर दी।हत्या की घटना के बारे में विजय मिश्रा कहते हैं, जब कॉल्विन अस्पताल अतीक और अशरफ को लेकर पहुँचे,ल तो वहाँ कोई पुलिस का वीडियो कैमरा नहीं था।सिर्फ 6 से 7 पुलिसकर्मी ही थे।विजय मिश्रा हत्या के चश्मदीद थे। वो कहते हैं, काफी मीडियाकर्मी थे और जो पुलिसकर्मी चल रहे थे, वो काफी पीछे चल रहे थे।विजय मिश्रा कहते हैं कि कम पुलिस फोर्स की बात उन्होंने धूमनगंज पुलिस थाने के एसएचओ राकेश कुमार मौर्य से भी कही थी।विजय मिश्रा कहते हैं, हमने धूमनगंज थाने के एसएचओ से कहा भी की हमें यहाँ कोई सुरक्षा व्यवस्था दिख नहीं रही है। दोनों तरफ बैरिकेडिंग लगाइए, केवल थाने के सिपाही हैं, जिनका इस मामले से मतलब नही हैं। मैंने कहा आप हैं, आपको सुरक्षा व्यवस्था का विशेष ध्यान देना चाहिए। तो उन्होंने कहा कि आप निश्चिंत रहिए हम सुरक्षा व्यवस्था का पूरा ध्यान दे रहे हैं। सुरक्षा व्यवस्था को लेकर उन्होंने मुझे आश्वस्त किया था ।वो कहते हैं कि घटना के समय एसएचओ मौर्या मौजूद थे, और मैं खुद वहाँ मौजूद था। मैंने उनसे कहा कि इस समय पुलिस के कर्मी बहुत की कम मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि और पुलिस अभी आ रही है।सवाल उठ रहा है कि भारी पुलिस सुरक्षा में रहने वाले अतीक अहमद को खुली पुलिस जीप में क्यों अस्पताल लाया गया और मीडिया को उनके इतना कघ्रीब कैसे पहुँचने दिया गया।अतीकघ् अहमद ने कई बार अपनी सुरक्षा की गुहार लगाई थी। सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की थी। उन्होंने बार-बर अपनी जान को खघ्तरा बताया था। अतीक के अस्पताल जाने की खघ्बर मीडिया को लगी और पत्रकारों को उनके करीब पहुँचने दिया गया, इसे लेकर सवाल उठ रहे हैं।उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व महानिदेशक विक्रम सिंह कहते हैं, पुलिस हिरासत का मतलब है कि सही सलामत बिना नुकघ्सान के न्यायिक हिरासत में उन्हें वापस पहुँचाया जाए। कस्टडी रूल्स के तहत किसी भी तरह अमानत में खघ्यानत नहीं होनी चाहिए, जो हुई।पुलिस सुरक्षा नहीं दे पाई। पूर्व आईपीएस अधिकारी विभूति नारायण राय कहते हैंइलाहाबाद में अतीक और उनके भाई की हत्या में सुरक्षा की बड़ी लापरवाही दिखाई देती है।वो पुलिस की हिरासत में थे, हिरासत अदालत ने दी थी। राज्य की जिम्मेदारी है कि उनकी सुरक्षा का ध्यान रखा जाता और उन्हें जीवित रखा जाता।विक्रम सिंह कहते हैं,एक्सेस कंट्रोल नहीं था जो होना चाहिए था, तलाशी के बिना किसी को भी उनके करीब नहीं पहुँचने दिया जाना था, लेकिन ना सिर्फ लोगों को उनके करीब पहुँचने दिया गया बल्कि अनाधिकारिक रूप से एक तरह से प्रेसवार्ता कराई गई। हमलावर पत्रकार बनकर पहुँचे और चंद सेकंड में गोलियाँ दाग दीं। पुलिसकर्मी तमाशबीन बने रहे। अतीक और उनके भाई अशरफ अहमद हत्याकांड के चश्मदीद शरीफ अहमद बताते हैं कि वो अस्पताल के दरवाजे से सटे एक सुलभ शौचालय में पिछले ढाई-तीन साल से रह रहे हैं।वो बताते हैं कि शुक्रवार को जब अतीकघ् अहमद और अशरफ को मेडिकल के लिए अस्पताल लाया गया तो मैंने सोचा ये है बंदोबस्त।अहमद बताते हैं कि हत्या की रात के एक दिन पहले जब अतीकघ् और अशरफ को मेडिकल के लिए लाया गया था, तब भी गाड़ी बाहर रुकी थी।वो कहते हैं कि शुक्रवार को आराम से गए हैं और आराम से 20 मिनट बाद बाहर निकाल कर ले गए।अहमद कहते हैं कि शनिवार के दिन आए तो एकदम से लापरवाही देखी। उनके मुताबिकघ् उन्होंने अंदाजन सिर्फ 10 पुलिसकर्मियों को देखा।कॉल्विन अस्पताल में जब किसी अपराधी को मेडिकल के लिए लाया जाता है, तो क्या गाड़ी को गेट के बाहर ही रोक दिया जाता है?शरीफ अहमद कहते हैं, नहीं साहब, मुजरिम भी आता है, प्रशासन भी आता है, पूरी गाड़ी अंदर लेकर आते हैं। वो दरवाजे के बाहर इशारा करते हुए सवाल करते हैं, वहाँ क्यों रोका? ऐसा तो मैंने देखा नहीं।अहमद कहते हैं कि गाड़ी इसलिए अंदर आती है, क्योंकि अंदर मोड़ने की जगह पर्याप्त है।वो कहते हैं, यह सब साधन बनाए हैं और आप भी सरकार वाले हो, तो फिर क्यों आपनी गाड़ी अंदर नहीं लाए? अगर वो डॉन है, माफिया है, तो इतने बड़े बदमाश के लिए तुम गाड़ी अंदर क्यों नहीं लाए?शरीफ अहमद कहते हैं कि उन्हें मीडिया को दूर रखने के कोई इंतजाम नहीं नजर आए. वो कहते हैं, कोई नजर नहीं आए.सब मीडिया वाले माइक मुँह में घुसेड़ रहे थे। वो कहते हैं, एक बार कसारी मसारी मामले में कितनी फोर्स लेकर गए थे। पीएसी लेकर गए थे। जेल से लाए तो कितनी फोर्स लेकर आए।अहमद पूछते हैं, इसमें फोर्स लेकर क्यों नहीं आए?
तो क्या पुलिस शरीफ अहमद से बात कर रही है? उन्होंने इतने कघ्रीब से यह घटना देखी, तो क्या उनका स्टेटमेंट लिया गया?जब गोलियाँ चलीं तो पुलिस वालों की कैसी प्रतिक्रिया रही? पुलिस ने हमलावरों को कैसे दबोचा?शरीफ अहमद कहते हैं, अरे, सब भाग गई थी।दो पुलिसकर्मी होम गार्ड की तरह खड़े रहे। हथियार फेंकने के बाद उन्होंने नारा लगाया। सामान फेंकने के बाद पुलिस वालों ने पकड़ा।मालूम नहीं यह कैसे वर्दी पहने है। आपने मारा क्यों नहीं गुंडे लोगों को? बदमाश को पकड़ना चाहिए तो टांग में मारो। एक भी गोली नहीं थी, उनके पास. बंदूक थी कि मालूम नहीं। मैंने निकालते हुए देखा ही नहीं। मेडिकल चेकअप के लिए अस्पताल क्यों ले जाया गया?विश्लेषक मानते हैं कि अतीक को अस्पताल ले जाने की कोई जरूरत नहीं थी।अतीकघ् और अशरफ को मेडिकल चेकअप के लिए अस्पताल ले जाए जाने पर भी सवाल उठ रहे हैं।विभूति नारायण राय कहते हैं, मेडिकल कराया जाना अदालत का रूटीन आदेश होता है, खघसकर तब जब कोई अभियुक्त ये आशंका जाहिर करे कि हिरासत में उसके साथ मारपीट हो सकती है। अतीकघ् के मेडिकल का आदेश अदालत ने ही दिया था लेकिन ये मेडिकल थाने में ही डॉक्टर को बुलाकर कराया जा सकता था।उन्हें अस्पताल ले जाना अनिवार्य नहीं था। सामान्य जाँच थाने में ही हो सकती थी, हो सकता है कोई और जटिलता रही हो और इसलिए उन्हें अस्पताल ले जाया गया। बहुत कम सुरक्षा में उन्हें अस्पताल ले जाया गया, ये बड़ी लापरवाही हुई। अस्पताल की मुख्य चिकित्साधिकारी ने भी मीडिया को दिए बयान में कहा है कि अगर पुलिस ने मांग की होती, तो डॉक्टर भेजकर थाने में चेक अप कराया जा सकता था। इस बारे में विजय मिश्रा कहते हैं, यह तो रूटीन चेकअप था और यह तो पुलिस थाने में भी हो सकता था। यह तभी किया जाता है, जब अभियुक्त मांग करे कि हमारी थोड़ी तबीयत खराब है। उन्होंने ऐसी कोई मांग भी नहीं की थी। सिर्फ रूटीन चेकिंग के नाम पर उन्हें वहाँ ले जाया गया।सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मी इतने लापरवाह क्यों, बुलेट प्रूफ जैकेट क्यों नहीं पहनी?अतीक और अशरफ पर जब गोलियाँ चलीं, तब उनकी सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मी हमलावरों पर जवाबी कार्रवाई करने के बजाए अपनी जान बचाने के लिए भागते नजर आए। हमलावरों ने एक दर्जन से अधिक गोलियाँ चलाई, लेकिन पुलिस की तरफ से कोई गोली नहीं चली।सुरक्षा में तैनात पुलसकर्मियों ने बुलेट प्रूफ जैकेट भी नहीं पहनी थी। इससे पहले जब भी अतीक को साबरमती जेल से लाया गया था, उनकी सुरक्षा में लगे पुलिसकर्मी बुलेटप्रूफ जैकेट पहनते थे। अब सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मी सवालों के घेरे में है।विक्रम सिंह कहते हैं, पुलिस खघ्ुशफहमी में थी और लापरवाह थी। पुलिस को उम्मीद नहीं थी कि ऐसा हो सकता है।जितना संवेदनशील ये मामला था, दो दायरे पुलिस को बनाने थे। पहला पंद्रह मीटर का जिसमें किसी की एंट्री नहीं होनी चाहिए था। दूसरा बाहरी दायरा होना चाहिए था जहाँ लोगों पर निगरानी रखी जाती। किसी संदिग्ध के दिखते ही पुलिस को गोली चलानी चाहिए थी, जो पुलिस ने नहीं चलाई।यहाँ तो दिख ये रहा है कि पुलिस ने कुछ नहीं किया। हमलावरों ने पाँच सेकंड में खेल खघ्त्म कर दिया।हमलावरों ने पुलिस पर गोली क्यों नहीं चलाई?तीनों हमलावरों ने सिर्फ अतीकघ् और उनके भाई अशरफ को निशाना बनाया। उन्होंने उनकी सुरक्षा में तैनात किसी पुलिसकर्मी पर कोई गोली नहीं चलाई। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या उन्हें पहले से ये पता था कि पुलिस उन पर जवाबी कार्रवाई नहीं करेगी। वो घटनाक्रम को लेकर इतने निश्चिंत कैसे थे?हमलावरों ने हत्या करने के तुरंत बाद हथियार फेंक दिए थे और धार्मिक नारे लगाते हुए सरेंडर कर दिया था।हमलावरों को अतीक के अस्पताल जाने के बारे में जानकारी कैसे मिली?अतीक और अशरफ के गाड़ी से उतरते ही पत्रकार बनकर आए हमलावर उनके कघ्रीब पहुँचे और हत्या कर दी।उनके पास अतीक के वहाँ पहुँचने की जानकारी पहले से थी। सवाल उठ रहा है कि उन्हें इतनी सटीक जानकारी कैसे मिली।मीडिया से बातचीत में अस्पताल की मुख्य चिकित्साधिकारी ने कहा है कि उन्हें भी कुछ मिनट पहले ही अतीक के अस्पताल आने के बारे में पता चला था, फिर हमलावरों के पास ये जानकारी कैसे थी?विक्रम सिंह कहते हैं, अनाधिकारिक प्रेसवार्ता कराई गई जिसकी जरूरत नहीं थी। हमलावर पत्रकार बनकर पहुँचे और पुलिस की लापरवाही का फायदा उठाया।अभी तक जो जानकारियाँ सामने आई हैं, उनके मुताबिकघ् तीनों हमलावर यूपी के अलग-अलग जिलों से हैं।ऐसे में सवाल उठता है कि ये तीनों एक साथ कैसे आए और क्या इनके पीछे कोई है?विभूति नारायण राय कहते हैं, जो तीन लोग पकड़े गए हैं, वो बहुत छोटे खिलाड़ी हैं, उनके पीछे कोई बड़ा खिलाड़ी जरूर होगा। अतीक के पास अहम जानकारियाँ होंगी। हो सकता है अतीकघ् का मुँह बंद करवाने के लिए भी ऐसा किया गया है। पकड़े गए तीनों अभियुक्तों की सुरक्षा का ध्यान रखा जाना अब बेहद जरूरी है। पुलिस को इन तीनों से सभी जानकारियाँ जुटानी चाहिए, तब ही उन लोगों तक पहुँचा जा सकता है, जो अतीक जैसे लोगों के लिए फाइनेंस इकट्ठा करते थे। हमलावरों के पास से ऐसे उन्नत हथियार मिले हैं, जो आसानी से उपलब्ध नहीं. पुलिस के मुताबिक चार पिस्टल जब्त किए गए हैं।तीनों हमलावर साधारण पृष्ठभूमि के हैं। उनका आपराधिक इतिहास है लेकिन अभी तक की जानकारी के मुताबिक वो पहले किसी बड़े गैंग से जुड़े नहीं रहे हैं।ऐसे में सवाल उठ रहा है कि उनके पास खघ्तरनाक हथियार कैसे आए।पुलिस पर इन हथियारों की जड़ तक पहुँचने का भी दबाव है। तीनों हमलावरों ने प्रशिक्षित अंदाज में गोलियाँ चलाईं. जिस सटीकता से उन्होंने हमला किया, उससे ये सवाल उठता है कि क्या उन्हें इन हथियारों को चलाने का प्रशिक्षण दिया गया था। विभूति नारायण राय कहते हैं, पुलिस के सामने कई बड़े सवाल हैं। गहन और ईमानदार जाँच से ही इनका जवाब मिल सकेगा. इस घटना के बाद पुलिस की साख सवालों में है, ऐसे में निष्पक्ष और गहन जाँच करना ना सिर्फ पुलिस की जिम्मेदारी है, बल्कि एक चुनौती भी। अतीक अहमद के मीडिया रिपोर्टों के अनुसार साल 1979 में पहली बार हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ। उस वकत अतीक अहमद नाबालिग थे।1992 में इलाहाबाद पुलिस ने बताया कि अतीक के खिलाफ बिहार में भी हत्या, अपहरण, जबरन वसूली आदि के करीब चार दर्जन मामले दर्ज हैं। प्रयागराज के अभियोजन अधिकारियों के मुताबिक अतीक अहमद के खिलाफ 1996 से अब तक 50 मुकदमे हैं। अभियोजन पक्ष का कहना है कि 12 मुकदमों में अतीक और उनके भाई अशरफ के वकीलों ने अर्जियां दाखिल की हैं जिससे केस में चार्जेज फ्रेम नहीं हो पाए हैं। अतीक अहमद बसपा विधायक राजू पाल ही हत्या के मुख्य अभियुक्त थे। मामले की जाँच अब सीबीआई के पास थी। अतीक अहमद 24 फरवरी को हुए उमेश पाल की हत्या के मुख्य अभियुक्त हैं।उमेश पाल, राजू पाल हत्याकांड के शुरुआती गवाह थे, लेकिन बाद में मामले की जाँच संभाल रही सीबीआई ने उन्हें गवाह नहीं बनाया था। 28 मार्च को प्रयागराज की एमपीएमएलए अदालत ने अतीक अहमद को उमेश पाल का 2006 में अपहरण करने के आरोप में दोषी पाया और उम्र कैघ्द की सजा सुनाई।

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