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 आरटीआई कानून बंदोबस्त अधिकारी के ठेंगे पर, सूचना आयुक्त ने ठोंका जुर्माना

निर्धारित समय पर जवाब देने में उदासीनता बरत रहे जनसूचना अधिकारी
लखनऊ। (आरएनएस ),आरटीआई कानून का पालन नहीं करना अधिकारियों के लिए आम बात हो गयी है। सूचना मांगने वाले कार्यकर्ताओं को आरटीआई कानून के तहत सूचना उपलब्ध नहीं कराकर कानून का उल्लंघन करने से बाज नहीं आ रहे हैं इससे आम जनों का शोषण हो रहा है। इसी तरह का मामला मीरजापुर जिले के बंदोबस्त अधिकारी डा. संजय राय से मांगे गये सूचना को अनदेखा करने का मामला सामने आया है। जिस पर संज्ञान लेते हुए सूचना आयुक्त गजेन्द्र यादव ने संबंधित अधिकारी पर 25 हजार रूपये का दण्ड अधिरोपित किया है। सूचना मांगने वाले व्यक्ति सुरेश चंद्र ने आरटीआई के हवाले से बंदोबस्त अधिकारी से सूचनायें मांगी थी। लेकिन आरटीआई कानून को दरकिनार करते हुए उन्होंने सूचना उपलब्ध नहीं कराई। इस पर मामला आयोग में पहुंचा। आयोग में आयुक्त ने पत्रावली का अवलोकन करने के बाद पाया कि वादी को वांछित सूचनायें प्रतिवादी पक्ष द्वाा उपलब्ध कराये जाने में सूचना का अधिकार में प्राविधानित निर्धारित समयावधि का पालन नहीं किया गया है और उसका घोर उल्लंघन हुआ है। यह भी पाया गया कि प्रकरण में प्रतिवादी जनसूचना अधिकारी/बंदोबस्त अधिकारी चकबंदी, मीरजापुर द्वारा जो स्पष्टीकरण पस्तुत किया गया है वादी को सूचनायें निर्धारित समयावधि के अंदर उपलब्ध न कराये जाने के संबंध में कोई उचित आधार व साक्ष्य का उल्लेख नहीं किया गया है। बता दें कि प्रकरण में सुनवाई तिथि 18-12-14 में प्रतिवादी बंदोबस्त अधिकारी/चकबंदी अधिकारी मीरजापुर डा. राय के विरूद्ध अधिनियम के तहत 250 रू. प्रतिदिन के हिसाब से अर्थदण्ड अधिकरोपित करते हुए निर्देर्शित किया गया था कि वे अधिरोपित अर्थदण्ड के संबंध में अपना लिखित स्पष्टीकरण प्रस्तुत कर सकते हैं। इसके लिए प्रतिवादी को समुचित अवसर भी दिया गया। लेकिन प्रतिवादी द्वारा दिये गये स्पष्टीकरण में आयोग ने पाया कि अधिनियम में प्राविधानित निर्धारित समयावधि का पालन नहीं करते हुए नियमों का घोर उल्लंघन किया गया है। समस्त बिंदुओं पर अवलोकन करने के बाद सूचना आयुक्त ने बंदोबस्त अधिकारी पर जुर्माना लगाते हुए तीन किश्तों में वेतन से 25 हजार रूपये मीरजापुर जिलाधिकारी एवं ट्रेजरी आफिसर द्वारा किये जाने के आदेश दिये हैं।
यह भी है समस्या
मीरजापुर जिले में चकबंदी विभाग में बैठे सीओ, एसओसी, डीडीसी व अन्य उच्च अधिकारी आरटीआई ही नहीं आम जनों की समस्याओं के निस्तारण को भी नजरअंदाज करते हैं। रेवेन्यू कोर्ट में चलने वाले मामलों में लंबी अवधि के तारीखें लगाते हैं। जिससे फरियादी हतोत्साहित होकर न्याय की आस ही छोड़ देते हैं और खर्च का बोझ बढ़ने के कारण वह अधिकारियों के दफ्तरों में जाना ही बंद कर देते हैं। इसके बाद अधिकारी मौके की नजाकत को देखते हुए अपना फैसला सुना देते हैं। जानकारी के मुताबिक जिले के चकबंदी कार्यालयों में कई मामले खारिज दाखिल, खेतों में नाली, रास्तों को लेकर कई मामले अधिकारियों के उदासीनता की वजह से वर्षों से लंबित पड़ें हैं। लेकिन फरियादियों की कोई सुनने वाला नहीं है। सबसे चिंताजनक बात तो यह है कि इन शिकायतों की जल्द से जल्द निस्तारित करने के निर्देश हाईकोर्ट व सरकार ने दिये है। लेकिन इन आदेशों का अधिकारियों पर कोई असर नहीं है। गौरतलब है कि हाईकोर्ट के निर्देशानुसार 6 महीने के भीतर खारिज दाखिल करना सुनिश्चत करने का अदेश है। लेकिन अधिकारियों द्वारा इस आदेश को अमल में नहीं लाया जा रहा है और वर्षों से मामले लंबित पड़े हैं। कई आदेश तो ऐसे हैं जिस पर उच्च अधिकारियों ने मामलों को जल्द से जल्द सुनवाई कर निपटाने के निर्देश दिये हैं। लेकिन उच्च अधिकारियों के आदेश-निर्देश को भी ठेंगे पर रख लिया गया है। यहां आम लोगों की समस्याओं का अंबार है। लेकिन सरकार यहां के गरीब जनताओं के समस्याओं के समाधान को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है। ग्रामीण वासियों का कहना है कि चुनाव के समय उनकी सांसद अनुप्रिया पटेल आयीं थी। लेकिन उनकी समस्याओं को सुनने के लिए वह कभी ग्रामीण इलाकों में दौरे नहीं करती है। ग्रामीणों ने कहा कि प्रदेश के नये सीएम योगी आदित्यनाथ जी लखनऊ की तरह यहां भी एक बार दौरा करते तो अधिकारियों द्वारा फरियादियों के उपर किये जा रहे शोषण व भ्रष्टाचार उजागर होते। जो हो यहां के फरियादियों की समस्याओं का निपटारा नहीं हो पाना गत् वर्ष के सरकारों की नाकामयाबी रही है। इसलिए आम जनों ने नये सरकार पर भरोसा जताया है।

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