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रमजान का तीसरा रोजा हर बुराइयों पर लगाता है लगाम

  अवध की आवाज़
कहोबा चौराहा गोंडा। मंज़िल पर पहुंचना तब आसान हो जाता है जब राह सीधी हो। मज़हबे इस्लाम में रोजा रहमत और राहत का राहबर है। रहमत से मुराद अल्लाह की मेहरबानी से है और राहत का मतलब दिल के सुकून से है। अल्लाह की रहमत होती है तभी दिल को सुकून मिलता है। दिल के सुकून का ताल्ल़ुक चूंकि नेकी और नेक अमल है। इसलिए जरूरी है कि आदमी नेकी के रास्ते पर चले। रोजा बुराइयों पर लगाम लगाता है और सीधी राह चलाता है। पवित्र क़ुरान के पहले पारे अलिफ़ लाम मीम’ की सूरत ‘अलबक़रह’ की आयत नंबर 213 में ज़िक्र है ‘वल्लाहु य़हदी मय्यँशाउ इला सिरातिम मुस्तक़ीम।’ इस आयत का तर्जुमा इस तरह है-‘ और अल्लाह जिसे चाहे सीधी राह दिखाएँ।’ मग़फ़िरत की म़ंजिल पर पहुंचने के लिए सीधी राह है रोजा। मग़फ़िरत मामला है अल्लाह का और जैसा कि मज़कूर आयत में कहा गया है (कि अल्लाह जिसे चाहे सीधी राह दिखाए) उसके पसे-मंज़र यही बात है रोजा सीधी राह है। यानी रोजा रखकर जब कोई शख़्स अपने गुस्से, लालच, ज़बान, ज़ेहन और नफ़्स पर काबू रखता है तो वह सीधी राह पर ही चलता है। जैसा कि पहले भी कहा जा चुका है रोजा भूख-प्यास पर तो कंट्रोल है ही, घमंड, फ़रेब, (छल-कपट), फ़साद (झगड़ा), बेईमानी, बदनीयती, बदगुमानी, बदतमीज़ी पर भी कंट्रोल है। वैसे तो रोजा है ही सब्र और हिम्मत-हौसले का पयाम। लेकिन रोजा सीधी राह का भी है ए़हतिमाम। नेकनीयत से रखा गया रोजा नूर का निशान है। अच्छे और सच्चे मुसलमान की पहचान है।

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