सवांददाता संदीप
बलरामपुर । शिशु मृत्यु दर और बाल्यावस्था मृत्यु दर में कमी लाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की अपर निदेशक श्रुति की ओर से जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी को भेजे गए पत्र में 28 मई से सघन दस्त (डायरिया) नियंत्रण पखवाड़ा (आईडीसीएफ) मनाने के निर्देश दिए हैं। ये पखवाड़ा 9 जून तक चलेगा। पखवाड़े का उद्देश्य डायरिया से होने वाली बाल मृत्यु को खत्म करना है।
डॉ घनश्याम सिंह मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने शुक्रवार को बताया कि पखवाड़े के दौरान जिले के सभी सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में एक कार्नर बनाया जाएगा। इस कार्नर पर काउंसलर ओआरएस व जिंक की गोली का वितरण करने के साथ साथ लोगों को दस्त के प्रति जागरूक भी करेंगे। आशा कार्यकर्ता घर घर जाकर जिस घर में 6 माह से 5 साल तक के बच्चे होगे वहां पर ओआरएस का एक पैकेट देंगी। यदि घर में दस्त से पीड़ित बच्चा है तो वहां आशा कार्यकर्ता ओआरएस के अतिरिक्त पैकेट देने के साथ जिंक की गोली भी उपलब्ध कराएंगी। उन्होने बताया कि सभी आशा कार्यकर्ताओं को सख्त निर्देश दिये गये है कि एक भी घर इस पखवारे के दौरान छूटने ना पाये। जनपद के दूरदराज के क्षेत्रों में ओआरएस और जिंक की गोली के प्रयोग के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए विशेष अभियान चलाया जाएगा।
एसआरएस सांख्यिकी रिपोर्ट 2016 के मुताबिक उत्तर प्रदेश में बाल मृत्यु दर एक हजार में 47 है। पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में दस प्रतिशत मृत्युदर का कारण दस्त ही बताया गया है। पूरे देश की बात करें तो प्रति वर्ष 1 लाख 20 हजार बच्चों की मौत दस्त के कारण हो जाती है। बच्चों की मृत्यु का यह दूसरा बड़ा कारण है। केवल ओआरएस एवं जिंक की गोली से ही दस्त के कारण होने वाली मृत्युदर को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
दस्त होने के सबसे बड़े कारणों में प्रदूषित पेयजल, स्वच्छता, शौचालय का अभाव और कुपोषण को माना गया है। मिशन की ओर से दिए गए दिशा निर्देशों में कहा गया है कि पखवाड़े के तहत चलाए जाने वाले अभियान में ऐसे क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जाए जहां आस-पास उप स्वास्थ्य केंद्र ना हो और जहां पर एएनएम की तैनाती ना हो या फिर वह लंबी छुट्टी पर हो।
पखवाड़े की रणनीति एवं उद्देश्य
-बाल्यावस्था में डायरिया के दौरान ओआरएस और जिंक की गोली के प्रयोग के प्रति जागरूकता लाना।
-5 वर्ष से कम बच्चों के मध्य दस्त के प्रबंधन एवं उपचार हेतु गतिविधियों को बढ़ावा देना। -उच्च प्राथमिक और अतिसंवेदनशील समुदायों में जागरूकता लाना।
-स्वच्छता एवं हाथों को साफ रखने के उपाय बताकर विभिन्न रोगों के प्रति परिवार को सुरक्षित रखना।
-एएनएम द्वारा डायरिया के समुचित उपचार के अलावा व्यक्तिगत और सामुदायिक स्वच्छता पारस्परिक संचार माध्यम से प्रदान करना।