सुरेश कुमार तिवारी
कहोबा चौराहा गोंडा रोजा नेकी का छाता है। जिस तरह छतरी या छाता बारिश या धूप से अपने लगाने वाले की हिफ़ाज़त करता है, ठीक उसी तरह रोजा भी रोजादार की हिफ़ाजत अल्लाह खुद करता है शर्त यह है कि रोज़ा शरई तरीके से रखा जाए।
अहकामे-शरीअत यह है कि रोजा रखने में बुग़्ज़ कपट फ़रेब छल फ़साद झगड़ा झूठ और बेईमानी से बचा जाए। जाहिर है कि कोई शख़्स जब नेक नीयत और अच्छे जज़्बे के साथ रोजा रखता है, अल्लाह की रज़ामंदी हासिल करने के लिए रोजा रखता है यह सोचकर रोजा रखता है कि अल्लाह सब देख रहा है यानी अल्लाह के ख़ौफ का ख़्याल करके रोजा रखता है तो उसमें पाकीज़गी-ए-ख़्यालात पैदा होती है जो नेक अमल के ज़रिए रोजे को उसका रोज़दार क पैरोकार बनाती है। यानी परहेज़गारी के साथ रखा गया रोजा अल्लाह के सामने रोजादार की ईमानदारी का तो तरफ़दार है ही, पाकीज़गी का पैरोकार भी है। परहेज़गारी से रखा गया रोजा ख़ुद सिफ़ारिश बनकर रोजदार के लिए अल्लाह की नेमतों के दरवाज़े खोलता है। पवित्ऱ कुरआन के उनतीसवें पारा की सूरत अलमुरसिलात की इकतालीसवीं/ बयालीसवीं आयतों में ज़िक्र है : ‘इन्नाल मुत्तक़ीना फ़ी ज़िलालिवंं व अयूनिवंं व फ़वाकिहा मिम्मा यशतहन’ यानी ‘बेशक परहेज़गार सायों में और चश्मों में होंगे और मेवों में होंगे जो उनको मऱग़ूब रुचिकर होंगे।’ कुल मिलाकर यह कि नेक अमल और परह़ेजगारी (संयम के साथ रखा गया रोजा रोजदार की दीनदारी की दलील भी है और हिफ़ाजत की अपील भी। चौथा रोजा हिफ़ाज़त का कवच है : अल्लाह की अदालत में रोजा रोजदार का वकील है।