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आज शिक्षक दिवस है. आप सब को अनंत बधाइयाँ और शुभकामनाएँ

अवध की आवाज,,ब्यूरो चीफ
गोंडा। गोंडा के कई विद्यालयों में डॉक्टर राधाकृष्ण सर्व पल्ली का जन्मदिन हर्षोल्लास के साथ मनाया गया क्योंकि आज शिक्षक दिवस शिक्षकों के सम्मान का दिवस रहा है इस जहान में आज से नहीं आज से गुरुओं का बहुत बड़ा स्थान रहा है। जन्म दिन पर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को भी बार बार नमन .
आपको शुभकामनाएँ इसके लिए भी कि जीवन में सच्चा गुरु यदि अब तक न प्राप्त हुआ हो तो आगे शीघ्र प्राप्त हो।
शिक्षक दिवस पर अपने सभी निस्वार्थ तपस्वी शिक्षकों और गुरुओं को याद और प्रणाम करते हुए ,माता -पिता ,पूरी प्रकृति ,धरती,समाज, समय और सृष्टि को भी प्रणाम करता हूँ क्योंकि ये सब भी गुरू हैं .सद्गुरू कणाद, ऋषि रैक्व , ऋषि कणाद , नानक ,कबीर , राम कृष्ण परमहंस , बुद्ध , महावीर , अष्टावक्र , गोरखनाथ आदि को , सभी वैज्ञानिकों और दार्शनिकों को जिनकी खोजों ने दुनिया को बेहतर बनाने में मदद की तथा तोत्तोचन किताब के उस महान जापानी गुरु को प्रणाम करता हूँ जिसके स्कूल के हर बच्चे , जो शुरुआत में रिजेक्टेड मान लिए गए थे ,स्कूल से निकलने के बाद बिना किसी विशेष संसाधन के पूरी तरह से प्रस्फुटित होते हैं और जापान के उच्चतम पोज़ीशन तक पहुँचे।
अच्छा गुरु वही हो सकता है जो –
1. जो समाज, प्रकृति और धरती से जितना लेता है उससे अधिक देने का प्रयास करता है और देता है;
2. जो शिष्य के आंतरिक गुणों को पहचान कर उसको उसी दिशा में आगे बढ़ाता है और उत्कृष्टता की ओर ले जाता है ;
3. जो सहज हो , किसी भी प्रकार के दिखावे और अहंकार से परे हो ।
4. जिसकी आँखें खुली हों और उस पर किसी भी प्रकार की पट्टी न बंधी हो ।जिसका चिंतन समग्र , विराट , सार्वभौमिक और होलिस्टिक हो.
5. जो मूल शिक्षा पर ही पूरा ध्यान देता हो न की शिक्षा की पैकिंग और पैकिजिंग पर ।
6. जो हर बच्चे को बीज माने जिसमें ख़ुद गुरु से भी और अब तक सम्भव महानतम व्यक्तित्तवों , महापुरुषों और यहाँ तक कि अवतारों से भी महान बनने की सम्भावना देखे । किसी भी बीज में अब तक सम्भव सभी वृक्षों से बड़ा होने की सम्भावना होती है ।
7. जो सिखाए कि वास्तव में ज्ञानयोग , भक्तियोग और कर्मयोग तीनों ही आपस में एक दूसरे के पूरक हैं और जीवन में पूर्णता और आनंद तभी आता है जब तीनो योगों को समझा और उन पर एक साथ अमल किया जाए .।
समाज को बेहतर बनाने में अच्छे लीडर्स और अच्छे शिक्षकों की बहुत बड़ी भूमिका है .मेरी एक ग़ज़ल के शेर हैं –
नव युग का नव धर्म तलाशो ,नए भीष्म और नए द्रोण; नयी व्यवस्था मैं लिखता हूँ ,राजा – रानी तू भी लिख। एक कहानी मैं लिखता हूँ ,एक कहानी तू भी लिख । बादल बादल मैं लिखता हूँ ,पानी -पानी तू भी लिख . गुरु वह जो हमारी असीमितता का एहसास दिलाए , हमें सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड से जुड़ना(योग ) सिखाए तथा हमारे अंदर छिपी शक्तियों और प्रतिभाओं को पूरी तरह प्रस्फुटित करे और उसे सार्थक दिशा दे और सद्गुरू कैसा होना चाहिए ? कबीर भी सदगुरु के आदर्श उदाहरण हैं जो जीवन में संतुलन सिखाते बताते हैं –
अति का भला न बरसना अति की भली न धूप ,
अति का भला न बोलना अति की भली न चूप ।
और गुरु कैसा होना चाहिए , कबीर ही बताते हैं –
गुरु कुम्हार शिशु कुम्भ है , गढि -गढि काढ़े खोट ,
अंदर हाथ सहारि दे , बाहर -बाहर चोट ।
गुरु जब शिष्य में परिवर्तन के लिए थाप देता है , तो वह चोट अंततः ख़ुद पर ही ले लेता है , शिष्य को सहने के लिए छोड़ नहीं देता । तभी शिष्य समर्पित भाव से ज्ञान की साधना कर पाता है गुरु के प्रति अगाध श्रद्धा से परिपूर्ण होकर ।
और फिर गुरुत्व का कोई आडम्बर नहीं ,कोई मठ या ऑर्गनिज़ेशन या कोई संस्था नहीं , सहज सामान्य व्यक्ति की तरह परिवार में रहते हुए।
कोई गुरु कितना भी आँख बन्द करके ध्यान कराए कभी कभी आँख खोलकर गुरु की हरकतों को भी देख लिया करिए , बहिर्यात्रा भी कर लिया करिए ।अंतर्यात्रा और बहिर्यात्रा दोनों ज़रूरी हैं और दोनों का संतुलन बहुत ज़रूरी है । बिना गुरु के रह लेना छद्म गुरुओं के चंगुल में फँसने से कहीं अच्छा
जब तक गुरु न मिले , धरती , प्रकृति या ब्रह्माण्ड को ही गुरु मन लेना ही श्रेयस्कर है ।‘गुरु और ईश्वर एक हैं उनमें कोई अंतर नहीं है’ , यह बहुत ही ख़तरनाक और भ्रामक वाक्य या विचार है।अगर दोनों एक ही हैं तो दो शब्दों की ज़रूरत क्यों पड़ी । गुरु से ही काम चला लेते या ईश्वर से ही दोनो को सम्बोधित कर लेते ।यह श्लोक जो हमें बचपन से सिखाया पढ़ाया जाता है अक्सर बहुत घातक सिद्ध हुआ है –
गुरूर ब्रह्मा गुरूर विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा,
गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः।
दरअसल यह भ्रम मूलतः अहंकारी और लुटेरे गुरुओं द्वारा फैलाया जाता है । जब गुरु ईश्वर हो गया तो वो जो भी करे सब सही है ! इसी प्रकार लुटेरे राजाओं ने भी विकसित किया कि राजा पृथ्वी पर ईश्वर का स्वरूप है। राजशाही में क्या क्या हुआ सभी जानते हैं ।जनता की आँखें खुलीं तो लोक तन्त्र आया। लोक भी आलोक से बना है जिसका अर्थ देखने और आँखें खुली रखने से है। आशा है गुरु के संदर्भ में भी हम अपनी आँखें खुली रखेंगे । जो भी गुरु हमें केवल आँखें बन्द करना सिखाता हो ,वह और कुछ भी हो सकता है ;गुरु या सद्गुरू नहीं हो सकता।
मैं भक्ति को श्रद्धा की दृष्टि से ही देखता हूँ और निश्चय ही भक्ति एक व्यक्तिगत आस्था का भी प्रश्न है और बहुत अच्छा भी है। लेकिन जब वह अंध भक्ति में बदल जाता है तो वह भक्त के लिए और जिसके लिए अंधभक्ति करता है दोनों के लिए नुक़सानदेह होता है ।

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