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मेडिसिन विभाग के डाक्टर दवा प्रतिनिधियों की आड़ में कर रहे वसूली

कम्पनी के ऐजेंट लिख रहे सरकारी पर्चे पर बाहर की दवायें, पूर्व में घटे मामले के बाद भी उर्सला प्रशासन मौन
फाइल बनवाने से लेकर आॅपरेशन कराने तक चल रही वूसली, तीमारदार मजबूर, आये दिन होता है हंगामा
कानपुर नगर | मरीजों के साथ झगडा, दलालों के राज्य, पैसा लेकर आॅपरेशन करना, डाक्टरो की मेज पर दवा कम्पनी के बैठे एमआर द्वारा दवा लिखना यह कानपुर के उर्सला अस्पताल का पुराना ढर्रा है जो लगातार वर्षो से जारी है और इसमें कोई बदलाव नही हो रहा है। पूर्व में उर्सला ओपीड में एक एजेंट को पकडा भी गया था जो मरीजों के पर्चो पर दवाये लिख रहा था, बावजूद इसके आज भी वही ढर्रा चल रहा है। हकीकत तो यह है कि कमीशन की लालच में यहां डाक्टर खुद कंपनी के प्रतिनिधियों को बैठा रहे है जो उनके लिए काम करते है। मरीजों को डाक्टर देखते है और दवाईयां यह ऐजेंट लिखते है और दुकान भी सेट होती है। सारे खेल में मोटा कमीशन डाक्टर की जेब में जाता है। ओपीडी कक्ष में भी दवा कंपनियों के प्रतिनिधि जमंे रहते है। डाक्टर उन्हे पर्चा पकडा देते है। बेचारा मरीज पहले सुविधा शुक्ल देकर फाइल बनवाता है और यह दलाल आॅपरेशन तक का पूरा जिम्मा लेते है। कई मरीजों जिनके आॅपरेशन हुए है बताते है कि उन्होने कितना रूपया आॅपरेशन के लिए दिया है। कई बार इसी बात को लेकर उर्सला में हंगामा और मार-पीट तक हो चुकी है लेकिन अधिकारी मौन है, इसका भी कारण साफ नजर आता है। सरकार के साख को बट्टा लगाते उर्सला के अधिकारी, डाक्टर और कर्मचारी हर प्रकार से मरीजों का खून चूसने में लगे है। जिसे जहां दांव मिलता है वह मरीज तथा उनके साथ आये तीमारदारों को जकड लेता हे। पूर्व में भी एक युवती का ऐसा ही मामला सामने आया था। अस्पताल में मरीजों को बाहर की दवायें ही लिखी जाती है। आॅपरेशन में वसूली तो अब आम बात हो गयी है। मजे की बात तो यह है कि जिलाधिकारी से लेकर मंत्री तक इस मामले को जानते है। मेडिसिन विभाग का हर डाक्टर दवा कंपनियों के प्रतिनिधियों को बैठाता है औरउन्ही के माध्यम से सुविधा शुल्क लेता है। वहीं जुम्मेदार खामोश है तथा हमेशा की तरह जवाब देते है कि ऐसा नही हो रहा है यदि कोई मामला सामने आयेगा तो कार्यवाही की जायेगी, लेकिन जिम्मेदार ही अपनी जिम्मेदारी नही निभा रहे है। कुल मिलाकर मरीजों और तीमारदारों की जेबें उर्सला अस्पताल में आकर खाली हो जाती है, जबकि इलाज के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति होती है। सारी व्यवस्था बाहर की दवाईयों पर टिकी है।

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