Home > अवध क्षेत्र > जरूरी सावधानी अपनाएं, परिवार को फाइलेरिया से बचाएं : सीएमओ

जरूरी सावधानी अपनाएं, परिवार को फाइलेरिया से बचाएं : सीएमओ

पाथ संस्था के सहयोग से कार्यशाला आयोजित
लखीमपुर। फाइलेरिया दुनिया की दूसरे नंबर की ऐसी बीमारी है जो बड़े पैमाने पर लोगों को दिव्यांग बना रही है। शरीर के जिन अंगों पर फाइलेरिया का प्रभाव होता है, उसकी त्वचा पर इसके जीवाणु तेजी से पनपते हैं । इन जीवाणुओं की संख्या अधिक होने के कारण प्रभावित अंगों में दर्द, लालपन एवं रोगी को बुखार हो जाता है। फाइलेरिया प्रभावित अंगों में शुरूआत में सूजन के लक्षण होते हैं, बाद में यही सूजन स्थायी और लाइलाज हो जाती है। इस बीमारी की गंभीर स्थिति में व्यक्ति मृत के समान हो जाता है। यह बातें मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ. शैलेंद्र भटनागर ने स्वास्थ्य विभाग के तत्वावधान में पाथ संस्था के सहयोग से फाइलेरिया और कालाजार पर आयोजित कार्यशाला के दौरान कहीं। वर्कशाप में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों ने प्रतिभाग किया।
डॉ. भटनागर ने कहा कि फाइलेरिया उन्मूलन के लिए केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम चलाया जा रहा है। फाइलेरिया परजीवी की औसतन आयु 4 से 6 वर्ष की होती है, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को इस अभियान के दौरान लगातार पांच साल तक फाइलेरिया से बचाव की दवा खानी चाहिए, जिससे कि वह फाइलेरिया जैसी घातक बीमारी से बच सके।
एसीएमओ डॉ. अश्वनी सिंह ने कहा कि जब तक किसी व्यक्ति के फाइलेरिया से पीड़ित होने का पता चलता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। इस बीमारी का अभी तक कोई कारगर इलाज नहीं है। इसकी रोकथाम ही इसका सही समाधान है। उन्होंने कालाजार बीमारी के बारे में भी जानकारी देते हुए इसके कारण, लक्षण और उपचार के बार में बताया। उन्हाेंने कहा कि लखीमपुर खीरी और आसपास के जिलों में फाइलेरिया के मरीजों का मिलना चिंता की बात है। एसीएमओ डॉ. केके आदिम ने कहा कि क्यूलेक्स और मैनसोनाइडिस प्रजाति के मच्छरों के जीवन चक्र की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि यह बीमारी मच्छरों द्वारा खासकर परजीवी क्यूलेक्स फैंटीगंस मादा मच्छर के जरिए फैलती है।
जिला मलेरिया अधिकारी डॉ. एसके श्रीवास्तव ने बताया कि फाइलेरिया बीमारी क्यूलेक्स और मैनसोनाइडिस प्रजाति के मच्छरों से होती है। यह मच्छर जब किसी मानव को काटता है तो यह एक पतले धागे जैसा परजीवी मानव शरीर में छोड़ता है। मादा परजीवी, नर परजीवी के संपर्क में आकर लाखों सूक्ष्म फाइलेरिया नामक भ्रूणों को जन्म देती है। यह माइक्रो फाइलेरिया रात के समय में प्रभावी होते हैं। उन्होंने कहा कि फाइलेरिया बीमारी एक छिपा हुआ दुश्मन है, क्योकि इसके लक्षण संक्रमण के 8 से 12 सालों बाद नजर आते हैं। ऐसी स्थिति में मानव शरीर के अंगों हाथ, पैर, स्तन, अंडकोष में सूजन बढ़ने लगती है।
पाथ संस्था के नोडल ऑफीसर डॉ. उदित मोहन ने बताया कि सामान्य लोगों में, जिनके शरीर में फाइलेरिया रोग के कीटाणु नहीं है, दवा सेवन से कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। दवा के सेवन से जब शरीर में फाइलेरिया कृमि मरते हैं तो बुखार, खुजली, उल्टी जैसे लक्षण हो सकते हैं जो स्वतः तीन से चार घंटे में समाप्त हो जाते हैं। इस लक्षण के होने पर इसका सामान्य इलाज किया जा सकता है। इसलिए घबराने की जरूरत नहीं है। हाइड्रोसिल का इलाज संभव है इसके मुफ्त ऑपरेशन की सुविधा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र एवं जिला अस्पताल पर उपलब्ध है। इससे बचाव के लिए घर के आस-पास पानी जमा न होने दें और सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग करें। उन्होंने यह भी बताया कि यह दवा दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती और अत्यन्त गंभीर बीमारी से पीड़ित लोगों को नहीं दी जानी है, लेकिन जो लोग उच्च रक्त चाप, मधुमेह, अर्थराइटिस रोग की दवा का सेवन कर रहे हैं, वह इस दवा का सेवन कर सकते हैं।
कार्यशाला में जिला चिकित्सालय के विशेषज्ञ चिकित्सक, सभी सीएचसी अधीक्षक, सभी बीपीएम, बीसीपीएम, स्टाफ नर्स, लैब टैक्निशियन आदि मौजूद रहे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *