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केजीएमयू में तीन साल से बेकार पड़े 300 लैपटॉप  खरीद में घोटाले की जाँच के हुए आदेश 

लखनऊ। राजधानी के किंग जार्ज मेडिकल युनिवर्सिटी का घोटालों से चोली दामन का साथ रहता है। एक बार फिर लैपटॉप खरीद में घोटाले का जिन्न केजीएमयू की बोतल से बाहर निकल आया है। केजीएमयू में 300 लैपटॉप की खरीद में घोटाले की आंच आईटी सेल के प्रभारी से लेकर एग्जाम सेल के कोऑर्डिनेटर तक पहुंच गई है। इसमें लैपटॉप खरीद का प्रस्ताव बनाने से लेकर उसका भुगतान करने वाले अधिकारी फंसते हुए नजर आ रहे है। बताया जा रहा है कि ये सभी लैपटॉप एक्स वीसी प्रो. रविकांत के टाइम ऑनलाइन एग्जाम कराने के लिए खरीदे गए थे। लेकिन इससे एक बार भी ऑनलाइन एग्जाम नहीं कराया जा सका। नए वीसी प्रो. एमएलबी भट्ट के ज्वाइन करने के बाद एग्जीक्यूटिव काउंसिल में ये मुद्दा उठाया गया। इसके बाद से केजीएमयू प्रशासन ने 6 सदस्यीय कमेटी का गठन कर मामले की जांच के आदेश दे दिए है।
प्रो. रविकांत ने 2014 में केजीएमयू वीसी का पद संभाला था। इसके बाद 22 अप्रैल 2014 से सीएमएस, एमएस, डीएमएस और उपकुलसचिव जैसे प्रशासनिक पदों पर अवैध नियुक्तियां हुईं। नियम के मुताबिक देखें तो इन प्रशासनिक पदों पर नियुक्ति करने का अधिकार सिर्फ सरकार का होता है। बाद में कार्य परिषद के सदस्यों की तरफ से वीसी पर अवैध नियुक्तियां करने के आरोप भी लगे। इतना ही नहीं एक्स वीसी रविकांत ने जिरियाट्रिक मेंटल हेल्थ डिपार्टमेंट में प्रोफेसर के पद पर योग्यता रखने वाले डॉ. अब्दुल कादिर जिलानी के स्थान पर डॉ. प्रीति को अपोइन्ट कर दिया था। बाद में इस मामला को लेकर केजीएमयू में विवाद बढ़ने पर यूपी के गवर्नर राम नाईक ने एक्स वीसी रविकांत द्वारा की गई भर्ती को अवैध करार देते हुए उसे कैंसिल कर दिया था।
केजीएमयू में प्रो. शैलेन्द्र कुमार को बीते साल उप कुलसचिव नियुक्त किया गया। जिसपर काफी विवाद हुआ।  इससे बचने के लिए वीसी ने शासन को 30 दिसंबर 2015 को एक लेटर भेजा। जवाब में लिखा गया- ”प्रो. शैलन्द्र की नियुक्ति शासन में बैठे उच्च अधिकारियों के मौखिक निर्देशों के आधार पर की गई है।” वहीं, सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट आदेश है कि किसी भी सरकारी नौकरी या प्रशासनिक पदों पर नियुक्तियां करते समय लिखित आदेश होना जरूरी है। मौखिक निर्देशों पर की जाने वाली नियुक्तियां पूरी तरह से अवैध हैं। बता दें, सीएमएस, एमएस, डीएमएस और उपकुलसचिव जैसे प्रशासनिक पदों पर नियुक्तियां करने का अधिकार केवल सरकार का होता है।
केजीएमयू में साल 2014 -15 में एक्स वीसी रविकांत के टाइम ऑनलाइन एग्जाम कराने के लिए 300 लैपटॉप खरीद का प्रस्ताव बना था। इसे आईटी सेल के वर्तमान प्रभारी डॉ. संदीप भट्टाचार्य और सीपीएमएस सिस्टम डेवलप करने वाले डॉ. आशीष वाखलू ने बनाया था। इसका अनुमोदन एक्स वीसी प्रो. रविकांत और वित्त अधिकारी मुकुल अग्रवाल ने किया था। इसके बाद एग्जाम सेल के मद से प्रभारी प्रो. एके सिंह और डॉ. गिरीश चंद्रा ने लगभग 1.74 करोड़ का भुगतान किया। लैपटॉप लगभग 2 साल पहले तो खरीद लिए गए, लेकिन इनका कोई इस्तेमाल नहीं हुआ। वे आज भी वीसी ऑफिस की बिल्डिंग में बने एग्जाम हाल में रखे हुए है। बताया जाता है कि इन लैपटॉप से ऑनलाइन एग्जाम नहीं कराए जा सकते हैं, क्योंकि इनकी स्पीड काफी कम है। 2017 में नए वीसी प्रो. एमएलबी भट्ट के केजीएमयू ज्वाइन करने के बाद एग्जीक्यूटिव काउंसिल की मीटिंग में लैपटॉप खरीद का मुद्दा उठाया गया। इसके बाद केजीएमयू के वीसी ने मामले की जांच के आदेश दे दिए।
केजीएमयू के सूत्रों के अनुसार, लैपटॉप खरीद में एक बार गलत एजेंसी को भुगतान जारी कर दिया गया था। पता चलाते ही बैंक को लेटर लिख पेमेंट रुकवाया गया। उसके बाद सही एजेंसी को लैपटॉप खरीद के लिए भुगतान किया गया। बताया जाता है कि खरीद का पेमेंट आप्ट्रान को होना था, लेकिन यूपी डेस्को को कर दिया गया। बाद में जांच में गड़बड़ी पकड़ में आने पर इसमें सुधार किया गया। केजीएमयू के डॉ. आशीष वाखलू के मुताबिक, ”एक्स वीसी रविकांत के समय मुझे आईटी सेल का काम देखने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।” ”इस दौरान बताया गया कि केजीएमयू में ऑनलाइन एग्जाम कराए जाने है। इसमें लगभग 300 लैपटॉप की जरूरत पड़ेगी। इसलिए आप लैपटॉप की खरीद के लिए एक प्रस्ताव बनाकर वीसी को भेज दें।” ”इसके बाद एक प्रस्ताव बनाकर उस टाइम वीसी रहे प्रो. रविकांत को भेज दिया। उसके बाद लैपटाप का क्या हुआ? उसके बारे में मुझें कोई जानकारी नहीं है।”

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