आज छोटे बच्चों को जैसे ऑनलाइन पढ़ाई कराई जा रही है वो अवैज्ञानिक है।
पूरे भारत में लाक डाउन के चलते स्कूल कॉलेजों में ऑनलाइन पढ़ाना शुरू कर दिया है कुछ निजी संस्थानों ऐसे प्रचिलित कर रहे हैं मानो बहुत बड़ा विशेष काम कर रहे हैं वे इसे अपने प्रचार का जरिया बना रहे हैं बड़े बच्चे किसी तरह ऑनलाइन पढ़ाई कर लेते हैं लेकिन छोटे बच्चे यानी 1 से लेकर आठवीं तक बहुत आसानी से पढ़ाई नहीं कर पाते हैं ।शिक्षकों में भी बच्चों को सिखाने का भाव कम है अपनी जिम्मेदारी पूर्ण करने का भाव नहीं है। ज्यादातर शिक्षक ऐसे अध्यापन को बहुत गंभीरता से नहीं ले रहे हैं कुछ वादों को छोड़कर राज्य सरकारें या शिक्षा विभाग द्वारा इस तरह पढ़ाई के लिए स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं दिए गए हैं बड़े शहरों में संपन्न विद्यार्थियों के पास तो ऑनलाइन पढ़ाई के पर्याप्त साधन हैं। लेकिन बड़े शहरों के गरीब विद्यार्थियों छोटे शहरों कस्बों और गांवों में अधिकतर विद्यार्थियों के पास ऐसी पढ़ाई हेतु पर्याप्त साधन मौजूद नहीं है। बड़ी संख्या में ऐसे गरीब परिवार हैं जिनके पास स्मार्टफोन नहीं है जिन मां-बाप के पास स्मार्टफोन है वह दफ्तर जाने लगे है । तब फिर इन दिन में बच्चों को स्मार्टफोन कैसे उपलब्ध होंगे । यह एक बहुत बड़ा कारण है ऑनलाइन शिक्षा महंगी है जिससे गरीब परिवारों इसे पंचित रह सकते हैं दिक्कत यह आ रही है कि छोटे बच्चे ऑनलाइन पढ़ाओ से जुड़ाव महसूस नहीं कर रहे हैं उन्हें नई कक्षा की किताबें कापियां उपलब्ध नहीं हुई है। ऐसे में बच्चों को पढ़ाई का यह तरीका लगना स्वाभाविक भी है । छोटे शहरों व कस्बों में जिस तरह पढ़ाई को ऑनलाइन का नाम दिया जा रहा है । वह व्हाट्सएप के माध्यम से हो रही है इस पढ़ाई के अंतर्गत अभिभावकों को व्हाट्सएप पर एक दिन में ही कई पेज भेज दिए जाते हैं। एक साथ इतने पोस्ट देखकर बच्चे डर जाते हैं । ऑनलाइन पढ़ाई हड़बड़ी में कराई जा रही है। इसके सार्थक परिणाम आना मुश्किल है ।मजबूरी के चलते ऑनलाइन अध्यापन किया जा रहा है शिक्षक अगर बच्चों के लिए संवाद नहीं बनाएंगे। तो बच्चों का प्रदर्शन ना केवल घटेगा बल्कि वे मायूस भी हो सकते हैं। बच्चों को काम देना गलत नहीं लेकिन उन्हें बिना योजना आधारित रूप से काम देना गलत है। ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से किसी योजना को बगैर बनाए अंधेरे में तीर चलाया जा रहा है। अनेकों जगह ऐप के माध्यम से शिक्षा दी जा रही है पर तकनीकी कारणों से दूरदराज इलाकों में इसका समुचित फायदा नहीं हो पा रहा है। शिक्षण में तकनीकी उपयोगी है। पर जब तक इसके साथ दिन नहीं जुड़ेगा तब तक इसका सृजनात्मक उपयोग नहीं हो पाएगा। ऑनलाइन पढ़ाई की प्रक्रिया में हमारा ध्यान गांव के बच्चों की तरफ बिल्कुल नहीं होगा। छोटे छोटे बच्चों के लिए ऑनलाइन पढ़ाई को व्यावहारिक और वैज्ञानिक बनाया जाए। विश्वव्यापी आपदा की इस घड़ी में हम सिर्फ इस बात को ही ना सोचे कि पढ़ाई के मामले में बच्चों को हानि हो रही है हमें यह सोचना होगा कि इस नुकसान की भरपाई व्यवहारिक तौर पर कैसे हो सकती है अगर जरूरत पड़े तो बच्चों के पाठ्यक्रम में थोड़ा कम भी हो लेकिन बच्चों को यह विश्वास दिलाया जाए स्कूल खुलते ही ऑनलाइन पढ़ाई नहीं कराई जाएगी। जिससे बच्चों को नैतिक बल मिलेगा , बेहतर ढंग से पढ़ाई कर सकेंगे और स्कूल जाएंगे तो उनके चेहरों पर खुशी महसूस होगी ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली को सिर्फ बच्चों को ठोकने का काम ना किया जाए बच्चों के साथ मिलकर अभिभावकों और शिक्षकों को भी बच्चे इस मामले पर ध्यान देना चाहिए। इन सभी आवश्यक बातों को ध्यान में रखते हुए ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली को सुचारु रुप से चालू करवा के ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंचाने के लिए उपयुक्त माध्यम उपलब्ध कराए जाने चाहिए। साथ ही जैसे स्कूल खुलते हैं बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा से दूर रखकर स्कूली माध्यम से सुचारू रूप से शिक्षा को अमल में लाना चाहिए। जो एक आम जनता के लिए है उपयोग है।