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गीता का दर्शन उपनिषद साहित्य की परंपरा का विस्तार है। यहां सन्यास त्याग नहीं है और योग बंधन कारक नहीं

ध्यान योग का भौतिक विज्ञान अध्याय 6 में सन्यास और योग प्राचीन भारतीय अवधारणाएं हैं। सन्यास और योग भारत की तरफ से विश्व संस्कृत को दिए गए अमूल्य उपहार हैं। समाज जीवन में सन्यास व योग की चर्चा अक्सर होती है। संप्रति सन्यास और योग भी बाजार का हिस्सा बने हैं। प्रवचन करता सन्यासी बढ़े हैं। योग से रोग दूर भगाने वाले योग बाबा भी बढे है। अब संन्यास का अर्थ घर त्याग कर होटल टाइप आश्रमों में रहना हो गया है और योग का मतलब व्यायाम या शारीरिक कसरत हो गया है। सन्यास और योग के विचार वैदिक साहित्य में है। पतंजलि ने एक पूरा महा ग्रंथ,, योग सूत्र,, लिखा है। लेकिन संन्यास का विचार संसार की दुख मयता से आया है भारतीय चिंतकों ने मन का गहन विश्लेषण से किया था। महाभारत के रचना काल में चंचल मन की चर्चा थी। उसके पहले उत्तर वैदिक काल में ही मनुष्य जीवन में तमाम रहस्यों का पता लगा लिया था। उपनिषद दर्शन ने संसार को दुखमयता के बीच आनंद का मार्ग भी दिया था गीता का दर्शन उपनिषद साहित्य की परंपरा का विस्तार है। गीता का अंतर संगीत के अध्ययन से प्राप्त जानकारी एवं पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्री हृदय नारायण दीक्षित जी के द्वारा प्रकाशित पुस्तक
पत्रकार सुरक्षा महासमिति
गुड्डू मिश्रा
प्रदेश उपाध्यक्ष

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