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सरकार मंथन कर ले फिर लागू करे 50 वर्ष वाला निर्णय

तुगलगी आदेश के खिलाफ सड़क पर उतरेगी परिषद
लखनऊ,। देश में 1953 के शासनादेश के तह्त औसतन आयु 60 वर्ष मानी जाती थी। आज की तिथि में औसतन आयु तथ्यात्मक और प्रामाणिक तौर पर बढ़कर 70 वर्ष हो गई है। यही कारण है कि 60 वर्ष की औसतन आयु में सरकारी सेवा के लिए 27 वर्ष और आज 70 वर्ष की औसतन आयु में सरकार सेवा के लिए आयु 40 वर्ष निर्धारित है। इस आधार पर विचार न करते हुए सरकार ने तानाशाही भरे रवैये के तह्त राजकीय सेवकों को मात्र 50 वर्श की उम्र ही अक्षम, आयोग्य मानते हुए सेवा निवृत्ति का फरमान जारी कर दिया है। बिना किसी तैयारी, परीक्षण और औचित्य विहिन इस निर्णय का अनुपालन सरकार यर्थाथ के धरातल पर नही कर पाएगी और सरकार के इस निर्णय से प्रदेश का लाखों लाख कर्मचारी हतोत्साहित एवं अपने आप को ठगा महसूस कर रहा है। मात्र बीस दिनों में 18 लाख कर्मचारियों की समीक्षा कहा हो पाएगी। परिशद का प्रतिनिधि मण्डल इस मामले में राज्य सरकार से षीघ्र मुलाकात करेगा।राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद इस औचित्य विहिन आदेश के माध्यम से कर्मचारियों का उत्पीड़न बर्दाश्त नही करेगी जरूरत पड़ने पर सड़क पर उतरेगी।
राज्य कर्मचारी संयुक्त परिशद के अध्यक्ष हरिकिशोर तिवारी, समन्वयक भूपेश अवस्थी, महामंत्री शिवबरन सिंह यादव और वरिष्ठ उपाध्यक्ष यदुवीर सिंह ने मुख्य सचिव के जारी आदेश के उपरान्त एक पत्रकार वार्ता ने पत्रकारों को बताया कि प्रदेश के मुख्य सचिव ने 50 वर्षीय राजकीय सेवकों के बारे में जो स्वैछिक सेवानिवृत्ति और उन्हें सेवानिवृत्त करने सम्बंधी आदेश जारी किया वह अपने राज्य कर्मिकों के प्रति अविश्वास एवं अक्षम बताने वाला आदेश है। उन्होंने कहा कि 1953 के शासनादेश के आधार पर 60 वर्ष की सेवा एवं सेवा में आने की अवधि इसी आधार पर 27 वर्श तय की गई थी। आज जबकि औसतन आयु 70 वर्श हो गई है तो सेवा में आने की अवधि को बढ़ाकर 40 वर्श कर दिया गया है। अब जो तथ्य मुख्य सचिव के आदेष पर सामने आएगे उनमें राज्य कर्मिकों की सेवा अवधि मात्र 10 वर्श ही बचेगी। ऐसे में राजकीय सेवा में आने वाला का क्या भविष्य होगा। क्या वह अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों का निर्वाहन कर पाएगा ? उन्होंने यह भी बताया कि राजकीय सेवा में वर्तमान स्थिति बड़ी भयावह है। जिन अनुपात में जनसंख्या एवं काम बढ़ा उनके विपरीत 1972 के आधार पर स्वीकृत पदो के सापेक्ष लगभग हर विभाग में 40 प्रतिशत पद खाली है। आम जनता से जुड़े विभागों की हालत और भी खराब है। ऐसे में मुख्य सचिव का यह आदेश सरकार और जनता के साथ खुला धोखा है। ऐसा करने से अक्षम एवं अयोग्य के नाम पर कर्मचारियों का उत्पीड़न और शोषण तो होगा ही साथ ही कर्मचारियों के अभाव में विकास कार्य प्रभावित होने के साथ जनता के काम भी रूकेगे।
यही नही उक्त नेताओं ने सरकार को आइना दिखाते हुए कहा कि जब सरकार आईएएस, आईपीएस एवं पीसीएस अफसरों को अक्षम, लापरवाह एवं अयोग्य का आरोप लगाते हुए एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरित कर नई तैनाती दे देती है तो उन्हें इसी आधार पर सेवानिवृत्त क्यो नही करती जबकि उनके तबादले का आधार ही इस आदेश की श्रेणी में आता है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार शासकीय चिकित्सकों की मंषा के विपरीत उनकी सेवानिवृति की अवधि बढ़ाकर 62 वर्ष कर देती है जब इसका चिकित्सक विरोध करते है तो अनिवार्य शब्द हटा लिया जाता है। आज जबकि औसतन आयु प्रामाणिक आधार पर यहाॅ तक की सरकार दस्तावेजों पर भी 70 वर्ष मान ली गई। अति बेहतर चिकित्सा सेवा, चलने के लिए अत्याधुनिक वाहन ने वर्श 1950 से 1980 के बीच वाली स्थिति को बदल दिया है। ऐसे में हर व्यक्ति की कार्य क्षमता बढ़ी है उसके बाद भी इस तरह का आदेश तुगलगी फरमान कर दिया है। सरकार के इस औचित्य विहीन आदेश का राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद विरोध करेगी और अगर कर्मचारियों का आदेश के नाम पर अनावश्यक उत्पीडन हुआ तो सड़क पर उतरेगी।

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