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माहाराणा प्रताप ने गुरूकुल शिक्षा के समय ही बाह्य व आंतरिक आक्रमणों का सामना किया था : महिरजध्वज

लखनऊ। महाराणा प्रताप का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया विक्रमी संवत 1598 को कुम्भड़गढ़ मेवाड़ मे हुआ था। प्रारम्भिक जीवन में ही गुरूकुल शिक्षा के समय मेवाड़ में होने वाले आंतरिक व बाह्य का सामना किया था। यह बातें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक महिरजध्वज  ने रविवार को हुसैनगंज चौराहा स्थित महाराणा प्रताप की प्रतिमा पर मुख्य अतिथि के रूप में माल्यार्पण करते हुए कही।
महापुरूष स्मृति समिति तथा राष्ट्रीय एकता मिशन के संयुक्त तत्वावधान में हुसैनगंज चौराहा पर भारतीय तिथिनुसार महाराण प्रताप व छत्रसाल का जन्म दिवस मनाया गया। महाराणा प्रताप के माल्यार्पण करने के बाद प्रचारक श्री महिरजध्वज जी ने बताया कि मुगल बादशाह अकबर के सेनापति बैरम खां द्वारा अनेक प्रकार की कूटनीतिक रचनाओं द्वारा उन्हें फंसाने की कोशिश की गयी जिसका उन्होंने सामना किया। महाराणा प्रताप के पास मुगल सेना के  मुकाबले बहुत छोटी सेना थी। पड़ोस के राजपूतों ने अकबर से संधि कर ली। यहां तक उनके छोटे भाई शक्ति सिंह भी एक समय अकबर से मिल गये थे। ऐसे में अपने भरोसेमंद साहसिक साथियों के साथ मुगलों द्वारा कब्जा की गयी लगभग 85 फीसदी जमीन वापस ले लिया था। उन्होंने बताया कि एक समय ऐसा आया महाराणा को चितत्तौड़ छोड़कर जंगल में शरण लेना पड़ा। माल्यार्पण कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार सुभाष सिंह ने कहा कि समाज के उपेक्षित वनवासी कोल, भील, नट, बैलगाड़ी लोहार आदि को संगठित कर उस बिसम परिस्थिति में सैन्य संघर्ष के लिए उन्हें तैयार किया। और सेना को संगठित कर राष्ट्र के लिए श्रेष्ठ धनपति भामाशाह ने अपनी व पूर्वजों की पूरी कमाई प्रताप को सहयोग में दी। श्री सुभाष सिंह ने कहा कि महाराणा प्रताप देश के हर युवा व हर व्यक्ति के लिए प्रेरणाश्रोत हैं। माल्यार्पण कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित श्रीमती सुसमा सिंह ने कहा कि महाराणा प्रताप के योगदान को हमें न भूलते हुए आज ही के दिन पैदा हुए बुंदेलखंड शिरोमणि महाराजा क्षत्रसाल ने भी मुगल सेना के शासक व अंग्रजों को भी हराया था और बाजीराव पेशवा के साथ मिलकर देश की सुरक्षा की।
इस अवसर पर महाराणा प्रताप की मूर्ती पर माल्यार्पण करने वालों में डा. हरमेश चौहान, श्रीमती सुषमा सिंह, अनीता रावत, ज्ञानेन्द्र बाबा, ठाकुर राजा रईस खान, आशुतोष सिंह, तारिक दुर्रानी, राष्ट्रवादी आजम खान, अमरेश बासुदेव, सुभाष चड्ढा, उतत्म कुमार साहू, देवेन्द्र सिंह, उनवल राजकुमार व अविनाश प्रताप सिंह प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।

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