Home > स्थानीय समाचार > भारतीय दर्शन और संस्कृति में समूचे विश्व को परिवार जानने और मानने की दृष्टि है-हृदयनारायण दीक्षित

भारतीय दर्शन और संस्कृति में समूचे विश्व को परिवार जानने और मानने की दृष्टि है-हृदयनारायण दीक्षित


लखनऊ । उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष श्री हृदयनारायण दीक्षित ने कहा कि भारतीय दर्शन और संस्कृति में समूचे विश्व को परिवार जानने और मानने की दृष्टि है। संयुक्त राष्ट्र का गठन बहुत बाद में हुआ। विश्व स्तरीय समस्याओं को एक साथ विचार करने की दृष्टि आधुनिक राष्ट्र राज्य में 1970 के दशक के बाद से चली लेकिन भारत में वैदिक काल से ही विश्व लोकमंगल की दृष्टि है। विधानसभा अध्यक्ष आज रविवार को सुल्तानपुर रोड़ स्थित स्कूल आॅफ मैनेजमेंट साइन्सेस में आयोजित ग्लोबल माडल यूनाइटेड नेशन्स कांफ्रेंस के समापन के अवसर पर बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र का पर्यावरण और विकास पर आधारित पहला सम्मेलन 1992 रियोडीजेनेरो में हुआ था, इसे पृथ्वी सम्मेलन कहा गया। फिर 2000 में संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय न्यूयार्क में कतिपय लक्ष्य तय हुए। 2002 में जोहान्सबर्ग में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 2015 में सतत् विकास की धारणा स्वीकार की गई। सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण तीन विषय इस धारणा में सम्मिलित हुए। भारत सहित पूरी दुनिया के सामने चुनौती है कि पर्यावरण और जैविक विविधिता को क्षति पहुंचाए बिना विकास कैसे हो और इसके सूत्र भारतीय की संस्कृति और वैदिक सभ्यता में विद्यमान है।
उन्होंने अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त की ओर श्रोताओं का ध्यान दिलाया। ऋग्वेद और महाभारत के भी उद्धरण सुनाये और कहा कि आज विश्व मानवता को बचाये जाने की चुनौती है। भारतीय जीवन दृष्टि ही विश्व दृष्टि हो सकती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *