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सीएसआईआर प्लैटिनम जुबिली स्थापना दिवस समारोह का आयोजन

लखनऊ | सीएसआईआर – भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर – आईआईटीआर), लखनऊ में सीएसआईआर प्लैटिनम जुबिली स्थापना दिवस समारोह का आयोजन किया गया। पद्मश्री प्रोफ़ेसर नित्यानंद, डॉ. एस. जे. एस. फ्लोरा एवं डॉ. वीपी कम्बोज ने सीएसआईआर प्लैटिनम जुबिली टेक्नोफ़ेस्ट प्रदर्शनी का उद्घाटन किया । प्रदर्शनी में जल विश्लेषण किट, जलशोधन हेतु ओनीर सहित सीएसआईआर-आईआईटीआर द्वारा विकसित अनेक प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन किया गया, जिसे देखने हेतु अनेक स्कूलों के सैकड़ों छात्र आए । सीएसआईआर-आईआईटीआर, लखनऊ और डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, फ़ैज़ाबाद के बीच वैज्ञानिक सहयोग हेतु एक सहमति ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए ।

प्रोफ़ेसर आलोक धावन, निदेशक, सीएसआईआर-आईआईटीआर और प्रोफ़ेसर मनोज दीक्षित, कुलपति, डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, फ़ैज़ाबाद ने समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए । इस अवसर पर मुख्यु अतिथि, डॉ. एस. जे. एस. फ्लोरा, निदेशक, राष्ट्रीय औषधीय शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (नाईपर), रायबरेली, उत्तर प्रदेश थे। प्रोफेसर आलोक धावन, निदेशक, सीएसआईआर – आईआईटीआर ने मुख्य अतिथिगण को सीएसआईआर द्वारा विकसित तकनीक से संरक्षित पुष्प प्रदान कर स्वागत किया । डॉ. पूनम कक्कड़, मुख्य वैज्ञानिक, सीएसआईआर-आईआईटीआर एवं अध्यक्ष आयोजन समिति ने अतिथिगण का परिचय दिया। इस अवसर पर पद्मश्री प्रोफ़ेसर नित्यानंद, पूर्व निदेशक, सीडीआरआई, लखनऊ की उपस्थिति भी सराहनीय रही ।
मुख्य अतिथि डॉ. एस. जे. एस. फ्लोरा ने “मोनोआइसोएमाइल डीएमएसए, आर्सेनिक विषाक्तता के लिए एक नई औषधि” विषय पर सीएसआईआर स्थापना दिवस व्याख्यान दिया । उन्होंने व्याख्यान में कहा कि पश्चिम बंगाल के पूर्वी भाग और बांग्लादेश में आर्सेनिक विषाक्तता बहुत है, झारखण्ड, बिहार, और असम सहित कई प्रदेशों में यह समस्या पाई गई है और इन क्षेत्रों में भूजल में आर्सेनिक है, जो कि लोगो के शरीर में पहुँचकर नुकसान पहुँचा रही है। इससे गरीब अधिक पीड़ित हैं, क्योंकि उन्हें पीने के लिए शुद्ध जल उपलब्ध नहीं है । कम लाभ के कारण दवा कंपनियों की इस क्षेत्र में पैसा लगाने हेतु रुचि कम है । आर्सेनिक विषाक्तता के इलाज हेतु मोनोआइसोएमाइल डीएमएसए, आर्सेनिक विषाक्तता के लिए एक नई औषधि के विकास पर कार्य चल रहा है । इसके कई चरण पूर्ण हो चुके हैं परंतु अभी कुछ परीक्षण बाकी हैं । प्रोफेसर आलोक धावन, निदेशक, सीएसआईआर-आईआईटीआर ने स्वागत संबोधन में कहा कि वैज्ञानिकों को छात्रों में विज्ञान के प्रति जागृति उत्पन्न करने के प्रयास करना चाहिए, जिससे कि छात्र विज्ञान के महत्व को समझकर शोधकार्यों के प्रति आकर्षित हों । इस अवसर पर निदेशक, सीएसआईआर-आईआईटीआर ने 25 वर्ष सेवा पूर्ण करने वाले स्टाफ़ को सीएसआईआर लोगो युक्त घड़ी और 31 अगस्त, 2017 तक सेवा निवृत होने वाले स्टाफ़ को शाल और प्रमाण पत्र प्रदान कर सम्मानित किया ।
डॉ. वीपी कम्बोज, अध्यक्ष, निदेशक मंडल, बायोटेक कंसोर्टियम इंडिया लिमिटेड, नई दिल्ली तथा पूर्व निदेशक, सीएसआईआर-सीडीआरआई ने समारोह की अध्यक्षता किया । उन्होंने अपने संबोधन में सीएसआईआर के गठन की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला उन्होंने कहा कि प्रारंभ में एक बोर्ड ऑफ साइंटिफिक एंड इन्डस्ट्रीअल रिसर्च की स्थापना ब्रिटिश काल में हुई थी तदुपरांत यही बोर्ड ने सीएसआईआर का रूप धारण किया और आज संपूर्ण भारत में इसकी 37 प्रयोगशालाएं और 39 फील्ड स्टेशन हैं जो अपने विषय क्षेत्र में महत्वपूर्ण अनुसंधान कार्य कर रहे हैं । उन्होंने कहा कि सीएसआईआर – आईआईटीआर द्वारा विकसित सरसों के तेल में बटरयलो के जांच हेतु विकसित सीडी स्ट्रिप, तथा जलशोधन हेतु विकसित तकनीक बहुत उपयोगी है, और सीएसआईआर – आईआईटीआर ने भोपाल गैस संकट और ड्राप्सी जैसी बीमारियों की समस्याओं से निपटने में महत्वपूर्ण कार्य किया है । डॉ. वाई. शुक्ला, मुख्य वैज्ञानिक, सीएसआईआर-आईआईटीआर ने धन्यवाद ज्ञपित किया ।

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